समर की शायरी में परिपक्वता की झलक
- अजीत शर्मा ‘आकाश’
‘मोहब्बत का समर’ शायर डॉ. इम्तियाज़ ‘समर’ की ग़ज़लों का संग्रह है। पुस्तक की ग़ज़लें पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम है। कथ्य एवं शिल्प दोंनों की दृष्टि से शायरी में परिपक्वता झलकती है। शायरी के तमाम ख़ूबसूरत पहलू पाठकों के समक्ष उजागर होते हैं। ग़ज़ल आज के दौर की अत्यन्त लोकप्रिय विधा है। दो मिसरों में पूरी बात समेट लेने का हुनर इसी विधा के पास है। हर शायर का अपना एक अलग अंदाज़ और रंग होता है, जिससे उसकी विशेष पहचान बनती है। अपने इस गज़ल-संग्रह के माध्यम से डॉ. इम्तियाज़ ‘समर’ संजीदा और ग़ज़ल-विधा की पर्याप्त जानकारी रखने वाले ग़ज़लकार रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। संकलन की रचनाएं ग़ज़ल की कसौटी पर खरी उतरती हैं। ग़ज़ल का बह्र में होना ही उसकी मूलभूत शर्त होती है, जिसे शायर ने बख़ूबी निभाया है। संग्रह की ग़ज़लों में विषयवस्तु की दृष्टि से विविधता है। शायर ने इनमें ज़िन्दगी के सभी रंगों को समेटने का प्रयास किया है। जीवन के अनुभव और संत्रास भी ग़ज़लों में दिखायी देते हैं। आज का दौर शायर को चिन्तित करता है। अच्छे-बुरे हालात, रिश्तों का निर्वाह, मानवीय संवेदनाएं, आम आदमी की पीड़ा-इन सबका ज़िक्र ग़ज़लों में किया गया है। इनके अतिरिक्त प्यार, मुहब्बत की भावनाओं को उजागर करती हुई ग़ज़लें भी हैं। कहा जा सकता है कि बड़ी सादगी और सच्चाई के साथ स्वाभाविकता से जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करने का प्रयास किया गया हैं।
ग़ज़ल संग्रह के कुछ उल्लेखनीय अंश प्रस्तुत हैं मुहब्बत की बात करते हुए अशआर- ‘मचलने लगा है दिल अब ख़ुशी से/मोहब्बत हमें हो गयी है किसी से।’ कितनी ख़ुशियों ने दिल पे दस्तक दी/इक तुम्हारे क़रीब आने से।’ आज के सियासी हालात का चित्रण-‘मुक़द्दर के सिकन्दर हो गये हैं/जो दरिया थे समन्दर हो गये हैं।’ आज के दौर का इंसान-‘बिक गया इंसाफ़ सिक्कों के एवज़/मुंसिफ़ों के लब पे ताले पड़ गये।’ आम आदमी का चित्रण-‘कांधों पे अपने टाट का बिस्तर लिये हुए/देखो वो जा ररहा है कोई घर लिये हुए।’ मशक्क़्त ख़ूब करता है, लहू दिन भर जलाता है/कहीं तब जाके इस महंगाई में वो घर चलाता है।“ ग़ज़लों में कहीं-कहीं कुछ दोष भी दृष्टिगत होते हैं।, यथा- ऐबे-तनाफ़ुर (स्वरदोष-मिसरे में किसी शब्द के अंतिम अक्षर की उसके बाद वाले शब्द के पहले अक्षर से समानता), तक़ाबुले रदीफ़ (मतले के अलावा किसी शे’र के दोनों मिसरों का अन्त समान स्वर पर होना) आदि। कुछ ग़ज़लों में भरती के शब्द भी आये हैं। इसके अतिरिक्त पुस्तक में रह गयी प्रूफ़ सम्बन्धी त्रुटियों के कारण कुछ स्थानों पर व्याकरण एवं वर्तनीगत अशुद्धियाँ भी परिलक्षित होती हैं, यथा- बेहीसी, मुशिफ, पुछिए, ऊर्दू, दिजिए, ख़्याल, रूत्बा आदि। पुस्तक का मुद्रण एवं गेट अप अच्छा है। कवर पृष्ठ आकर्षक है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘मोहब्बत का समर” पठनीय एवं सराहनीय ग़ज़ल संग्रह है। 128 पृष्ठों की इस पुस्तक को गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य रू0 200/- मात्र है।
उदय प्रताप के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का झरोखा
कई दशकों से हिन्दी काव्यमंच के अग्रगण्य और सफलतम कवि 91 वर्षीय शब्द साधक उदय प्रताप सिंह को अभिनंदित कर उन्हें जन्मशती सम्मान प्रदान किये जाने के अवसर पर ‘इटावा हिन्दी सेवा निधि’ द्वारा ‘उदय उमंग’ पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इसके माध्यम से उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। कविवर उदय प्रताप सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद के गढ़िया ग्राम के चौधरी परिवार में 18 मई, 1932 को हुआ। उनका जीवन पहले एक अध्यापक, बाद में प्राचार्य के रूप में प्रारम्भ हुआ। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी को उनका विद्यार्थी होने का गौरव प्राप्त है। उन्हीं के निवेदन एवं अनुरोध पर उदय प्रताप जी ने वर्ष 1989 एवं 1991 में दो बार मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ कर भारी बहुमत से विजय प्राप्त की। लोकसभा के पश्चात् वे राज्यसभा के सम्मानित सदस्य रहे। इसके बावजूद अपने साहित्यकार और कवि के ऊपर उन्होंने राजनीति को कभी हावी नहीं होने दिया। उदय प्रताप सिंह अंग्रेजी के प्राध्यापक थे, किन्तु हिन्दी में काव्य-रचना की। वह आज भी हिन्दी काव्य मंचों की शोभा हैं। कवि सम्मेलनों के मंचों पर उनकी गरिमायी उपस्थिति सफलता की एक आश्वस्ति मानी जाती रही है। उदय प्रताप ने हिन्दी कविता की वाचिक परम्परा को समृद्ध किया है।
‘उदय उमंग’ में गोपालदास नीरज, बेकल उत्साही, बालकवि बैरागी, सोम ठाकुर, मुनव्वर राणा, डॉ. रमाकांत शर्मा जैसे स्वनामधन्य एवं मूर्धन्य कवियों तथा साहित्यकारों के संस्मरणात्मक आलेख संग्रहीत हैं, जो उनके जीवन, कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हें। कविवर बेकल उत्साही ने उन्हें अनूठा रचनाकार तथा अछूती सोच का व्यक्ति बताया है। स्वनामधन्य कविवर गोपालदास नीरज ने उन्हें एक समन्वयवादी विचारक बताया है, तो सोम ठाकुर उन्हें भाव पुरूष कहते हैं। मैनपुरी जनपद के निवासी कवि एवं साहित्यकार डॉ. रमाकांत शर्मा ने उन्हें ‘हमारी माटी के अक्षय वट’ कहते हुए अपने संस्मरणात्मक आलेख में उदय प्रताप का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व दर्शाया है। आलेख में उन्होंने बताया है कि वे अपने छात्र जीवन में उदय प्रताप जी के निकट सानिध्य में रहे हैं तथा उन्हें निकट से देखा एवं समझा है। कविवर उदय प्रताप सिंह का अंग्रेज़ी, हिन्दी एवं उर्दू का ज्ञान अद्भुत है। उन्होंने साहित्य का गहन अध्ययन किया है। उनकी साहित्यिक एवं प्रेरक कविताएं श्रोताओं को सम्मोहित कर लेने की सामर्थ्य रखती हैं। अपने विचारों एवं लेखन में कविवर उदय प्रताप सिंह सदैव समाजवादी, समन्वयवादी तथा प्रगतिशील विचारधारा के पोषक रहे। उनका सदैव मानना रहा है कि कवि जनता का होता है, किसी सरकार का नहीं होता। भाव पक्ष की दृष्टि से उनकी कविताएँ साम्प्रदायिक सद्भाव को पोषित करती हैं। उनकी कविताओं के विषय आमजन के सरोकारों से सीधे जुड़े होते हैं। कविताओं में मानवीय संवेदना के जीवन्त चित्र उपलब्ध होते हैं।
पुस्तक के काव्य खण्ड के अन्तर्गत उनकी ग़ज़लों एवं छन्दों के साथ ही बांच के देख, पत्तियाँ, चिड़िया बैठ गई, चांदनी, शिशु जी की स्मृति में, होली, भुजबन्धन ढीले कर दो, उमर ख़ैयाम हो जाए, मयख़ाने नहीं आए शीर्षक कविताएं सम्मिलित हैं, जो यह दर्शाती हैं कि काव्य के शिल्प पक्ष पर उनकी कितनी गहरी पकड़ है। आज भी वे अपने चिन्तन, लेखन के प्रति समर्पित हं् तथा हिन्दी साहित्य की सेवा में निरन्तररत हैं। उनकी कविताओं के कुछ अंश प्रस्तुत हैं -‘अब उसकी मुहब्बत का हम कैसे यकीं कर लें/मौसम के मुताबिक़ जो ईमान बदलता है।’, ‘मोबाइलों के दौर के आशिक को क्या पता/रखते थे कैसे ख़त में कलेजा निकाल के।’, ‘न तेरा है न मेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है/नही समझी गई यह बात तो नुक़सान सबका है।’, ‘जो आनन्द अमीरी में है, उससे अधिक फ़क़ीरी में/ दरबारों में सर ऊँचा कर पाते हैं हम लैसे लोग।’ श्रृंगार का छन्द- काले घुँघराले केश घेरे नवनीत मुख/बादलों में चादहवीं क चाँद लगती थी वह/यौवन की नदी का उफ़ान बाँधे देहयष्टि/तोड़ती हुई-सी तटबाँध लगती थी वह।’
पुस्तक का प्रकाशन अत्यन्त सराहनीय कार्य है, किन्तु हिन्दी की साहित्यिक संस्था द्वारा प्रकाशित होने के बावजूद पुस्तक में यत्र-तत्र शब्दों की वर्तनीगत अशुद्धियां हैं, जो खटकती हैं, यथा- स्वस्थ्य पृ.-11, कवियत्रियों पृ.-15, आशिर्वाद पृ.-19, आश्वस्ती पृ.-47 आदि। अनुस्वार सम्बन्धी त्रुटियों की अनेक स्थानों पर हैं। इसके अतिरिक्त प्रूफ़ रीडिंग में पुस्तक के सम्पादक द्वारा अत्यन्त असावधानी बरती गयी है, जिसके कारण अनेक अशु़द्धयाँ रह गयी हैं। बावजूद इसके इस प्रकार की पुस्तकों का प्रकाशन अत्यन्त सराहनीय कार्य है। ‘उदय उमंग’ पुस्तक इटावा हिन्दी सेवा निधि, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित की गयी है, जिसके सम्पादक डॉ. कुश चतुर्वेदी हैं।
पठनीय एवं संग्रहणीय श्रेष्ठ कहानी-संग्रह
डॉ. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार एवं यशपाल पुरस्कार से सम्मानित, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश एवं अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत कुशल कथा-शिल्पी राम नगीना मौर्य की नवीनतम कथा-कृति ‘आगे से फटा जूता’ अपने समय के सच का बयान करती हुई नयी भाव-भूमि, तथा नए तेवर की कहानियों का संग्रह है। राम नगीना मौर्य अत्यन्त संवेदनशील एवं चिन्तनशील आधुनिक कथाकार अपनी एक अलग पहचान बना चुके हैं। पुस्तक के प्रारम्भ में ‘अपनी बात’ के अन्तर्गत लेखक ने पूर्व प्रकाशित अपने कहानी संग्रहों की समीक्षाओं के अंशों तथा पाठकों की प्रतिक्रियाओं को सविस्तार उद्धृत किया है, जिनके माध्यम से इनकी कथागत विशेषताएं परिलक्षित होती हैं। उनका ‘आगे से फटा जूता’ श्रेष्ठ कहानी-संग्रह बन पड़ा है। पुस्तक में ‘ग्राहक देवता’, ‘पंचराहे पर’, ‘लिखने का सुख’, ’सांझ-सवेरा’, ‘उठ ! मेरी जान’, ‘ढाक के वही तीन पात’, ‘ग्राहक की दुविधा’, ‘ऑफ स्प्रिंग्स’, ‘गड्ढा’, ‘परसोना नॉन ग्राटा’ तथा आगे से फटा जूता’ शीर्षकों से उनकी 11 यथार्थपरक कहानियां सम्मिलित हैं। इन कहानियों में वर्तमान समय की विसंगतियों तथा सामाजिक एवं राजनीतिक विद्रूपताओं तथा विडम्बनाओं को चित्रित करने का सफल प्रयास किया गया है। कहानियां रुचिकर और प्रासंगिक है, जिनके माध्यम से मध्य वर्ग के लोगों का संत्रास एवं ऊहापोह खुलकर सामने आता है।
प्रस्तुत संग्रह का नामकरण ‘आगे से फटा जूता’ कहानी के आधार पर किया गया है। लेखक ने अपनी इस कहानी की रचना-प्रक्रिया की चर्चा भी विस्तारपूर्वक एवं रोचक ढंग से की है। प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी दीन-हीन व्यक्ति अथवा लेखक की कहानी होगी, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है। इस कहानी में एक नया प्रयोग करते हुए एक सेमीनार हॉल में आये प्रतिभागियों के जूतों की आपस में बातचीत करायी गयी है, जिसके माध्यम से कथाकार ने समाज का आइना प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। एक नवीन कथा शैली पाठकों के समक्ष उजागर होती है। संवादों की दृष्टि से भी कहानियों में अच्छे प्रयोग किये गये हैं। पात्रों की संवाद शैली अद्भुत है। कहानी की आवश्यकतानुसार संवादों में चुटिलता एवं रोचकता का भी समावेश रहता है, जो पात्रों में निरन्तर जीवन्तता बनाये रखते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आगे से फटा जूता कहानी संग्रह के माध्यम से राम नगीना मौर्य अत्यन्त सफल कथाकार के रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित होते हैं। बहरहाल, कहानियों का यह श्रेष्ठ संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय है। नये कहानी लेखकों के लिए यह अत्यन्त प्रेरक सिद्ध हो सकता है। रश्मि प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित 132 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 220/- रूपये है।
पठनीय एवं सरहनीय ग़ज़ल संग्रह
क़ुर्बान ‘आतिश’के ग़ज़ल संग्रह ‘सुलगता हुआ सहरा’ में उनकी 116 ग़ज़लें संकलित हैं। कथ्य एवं शिल्प, दोनों ही दृष्टियों से संग्रह की ग़ज़लें श्रेष्ठ एवं सराहनीय हैं। संग्रह की ग़ज़लें शिल्प की कसौटी पर खरी उतरती हैं। ग़ज़ल की मुलभूत पहचान इसकी छन्दबद्धता और लयात्मकता है। ग़ज़ल कहने के बहुत से क़ायदे-क़ानून तथा ऐब-हुनर हैं जिनके बारे में शायर को अच्छी जानकारी है तथा शायर ने इनको ध्यान में रखा है। शायर ने बह्र-विधान के बारे में सतर्कता और सावधानी का परिचय दिया है। यही कारण है कि लेखन में सरलता, सहजता तथा रवानी परिलक्षित होती है। ग़ज़लें कथ्य की दृष्टि से भी सराहनीय हैं। आज के समाज और उसके बदलते परिवेश के प्रति गहरी चिंता जाहिर करते हुए शायर ने सामाजिक तथा राजनीतिक विसंगतियों पर प्रहार किया है। साथ ही एक ऐसी ख़ूबसूरत और हसीन दुनिया की तलाश करने की कोशिश की है, जहां इंसानियत, प्रेम और सच्चाई हो। जहां इंसान एक दूसरे का संगी-साथी हो और एक दूसरे के सुख-दुख का सहभागी बने। शायर एक ओर सामाजिक विसंगतियों को लेकर चिंतित हैं, वहीं आज की स्वार्थपरक राजनीति से भी खिन्न भी दिखाई पड़ता है। संग्रह के माध्यम से रचनाकार ने ग़ज़लों को बहुत ही सशक्त और आम आदमी से जुड़ा हुआ बना दिया है। आज के नेताओं की सियासत और उनकी स्वार्थपरता को कुछ इस तरह व्यंजित किया है-‘जिस घड़ी धुंध सोच लेती है/सुब्ह का जिस्म नोच लेती है।’,ःतेरी फ़रियाद क्या सुनेगा वह/आसमां पर दिमाग़ है जिसका।’, ‘तीरगी और फैलती ही गई/उसने कंदील वह जलाई है।’, ‘वो हवा बह रही है हर जानिब/एक दहशत बनी है हर जानिब।’ आज के आदमी की स्वार्थवृत्ति का चित्रण-‘मिलते हैं हर क़दम पर अब बैर करने वाले/क्या उठ गये जहाँ से सब ख़ैर करने वाले।’ समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय -‘यह मुझसे आज कैसी आज़माइश हो रही है/शिकस्ता जिस्म पर पत्थर की बारिश हो रही है।’
संकलन की ग़ज़लों में कहीं-कहीं ऐबे तनाफ़ुर, ऐबे शुतुरगुर्बा जैसे कुछ सामान्य दोष भी रह गये हैं।, कहीं-कहीं भर्ती के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। प्रूफ़ रीडिंग तथा भाषा-व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी हैं, यथा-स्तिम, प्याम, ख्याल हूकूमत आशीकी, करिशमा आदि। कुल मिलाकर, शायर की रचनाधर्मिता एवं सृजनात्मकता की दृष्टि से ग़ज़ल संग्रह पठनीय एवं सराहनीय है। 144 पृष्ठों की यह पुस्तक को मंत्री मण्डल सचिवालय (राज्य भाषा विभाग) बिहार के अनुदान से प्रकाशित की गयी है, जिसका मूल्य 225 रुपये है।
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रहस्यवाद की छाया से युक्त रचनाएं
‘अपने शून्य पटल से’ पुस्तक में रचनाकार स्व. बालकृष्ण लाल श्रीवास्तव की 53 काव्य रचनाएं सम्मिलित हैं, जिन्हें रमेश चन्द्र श्रीवास्तव ‘रचश्री’द्वारा संकलित एवं सम्पादित किया गया है। यह पुस्तक एक प्रकार से रचनाकार को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत की गयी है। पुस्तक में लेखक के लगभग सभी सगे-संबन्धियों, नाते-रिश्तेदारों द्वारा उनके भूमिका आलेखों द्वारा भावपूर्ण स्मरण किया गया है। भूमिका आलेख संक्षिप्त एवं विस्तृत, दोनों ही स्वरूपों में लिखे गये हैं, जिनके माध्यम से उनके व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए उन्हें अपनी ओर से भाव-पुष्प अर्पित किये गये हैं। पुस्तक के अन्त के पृष्ठों में सभी परिवारीजनों के फ़ोटो भी हैं। काव्य रचनाओं के वर्ण्य विषय के अन्तर्गत प्रेम, हास्य, करूणा के भाव सम्मिलित हैं। कुछ रचनाओं के माध्यम से दहेज, तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों एवं दुनिया के छल-छद्म पर प्रहार भी किया गया है। कहीं-कहीं व्यंग्य भी है। इनके अतिरिक्त प्रकृति-प्रेम तथा हृदयगत अन्य भावनाओं का निरूपण भी रचनाओं में दृष्टिगत होता है। पुस्तक में प्रमुख रूप से अध्यात्म एवं ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था के भावों से युक्त रचनाओं को स्थान प्रदान किया गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अध्यात्मप्रेमी एवं ईश्वरवादी पाठकों के लिए यह पुस्तक रुचिकर लगेगी।
कुछ रचनाओं के अंशः- ‘प्रेम सम्बन्धी अवधारणा- एक एहसास है, दिल के जो पास है/हम सभी प्रेम कहते हैं उसकोमगर/जानते ही नहीं उसमें क्या खास है (एक एहसास है)। उनकी यादों के पल दो पल, इतनी तेजी से आते हैं/ तन को रोमांचित कर देते, मन को विह्वल कर जाते हैं (यादों के पल)। इनके अतिरिक्त सिन्दूरः दहेज, संसार, प्रीति के दीप, उसी का वजूद, वहाँ क्यों होती प्रज्ञा मौन, पथ पाएगा कभी भटकता आदि काव्य रचनाएं भी उल्लेखनीय कही जा सकती हैं। निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा द्वारा 116 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 350 रुपये है।
( गुफ़्तगू के अप्रैज-जून 2023 अंक में प्रकाशित )