बुधवार, 7 जून 2023

महरानी की ग़ज़लां में समाज का दर्द

पुस्तक ‘मेरी तल्खियां’ के विमोचन अवसर पर बोले छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजी



प्रयागराज। नरेश महरानी की ग़ज़लों में समाज का लगभग प्रत्येक पहलू स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, इनकी ग़ज़लों में समाज का दर्द स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने समाज की जिन विडंबनाओं और खूबियों को देखो है, उसी को शायरी का विषय बना लिया है। यही वजह कि इनकी ग़ज़लें आज के समय में पूरी तरह से प्रासंगिक होती दिखाई देती हैं। अपनी अति व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर इन्होंने अदब को दिया है। जिसका परिणाम है कि इनका ग़ज़ल संग्रह ‘मेरी तल्खिायां’ प्रकाशित होकर समाज के सामने आ गया है। यह बात 04 जून 2023 को ‘गुफ़्तगू’ की ओर सिविल लाइंस स्थित बाल भारती स्कूल में नरेश महरानी के ग़ज़ल संग्रह ‘मेरी तल्खियां’ के विमोचन अवसर पर छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी मोहम्मद वजीर अंसारी ने कही। श्री अंसारी ने कहा कि नरेश महरानी जैसे कलमकार आज से समय की जरूरत हैं। ऐसी किताब का समाज में स्वागत किया जाना चाहिए।

 सी.एम.पी. डिग्री कॉलेज में हिन्दी की विभागाध्यक्ष डॉ. सरोेज सिंह ने कहा कि नरेश महरानी ने समय का बहुत अच्छा उपयोग करते हुए रचानाकर्म किया है। जिसका परिणाम है कि इनकी पुस्तक प्रकाशित होकर समाज के सामने आ गई है। जो संवेदनशील नहीं होता, वह इंसान नहीं हो सकता। बेहद व्यस्त व्यापारी होने के साथ-साथ इनके अंदर संवेदनशीलता बहुत अधिक है, इसकी वजह यह है कि इनके अंदर एक कवि बैठा हुआ है। नरेश महरानी  आज के समय के बेहतरीन और काबिले-कद्र शायर हैं। 

 डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कहा कि आज के समय में जब लोगों का शब्दों से नाता टूट रहा है, ऐसे में किसी रचनाकार की किताब ्रप्रकाश में आती है तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। महरानी की ग़ज़लों में जगह-जगह ख़बरनवीसी दिखाई देती है, ऐसा लगता है कि ये अपनी ग़ज़लें के जरिए ख़बरें लिख रहे हैं। इन्होंने अपनी ग़ज़लों के जरिए समाज की अच्छी पड़ताल की है।

 गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि ग़ज़लों को छंद की तलवार से काटने की कोशिश नहीं करना चाहिए। ग़ज़ल के लिए छंद ज़रूरी है, लेकिन सिर्फ़ छंद ही ग़ज़ल नहीं हो सकती। नरेश महरानी इसी मानक को परिपूर्ण करते हुए बड़ी बात अपनी ग़ज़लों के कथन में कहते हैं। इन्होंने जिन चीज़ों को समाज में देखा है उसे ही अपनी ग़ज़ल का विषय बनाया है। डॉ. वीरेंद्र तिवारी ने कहा नरेश महरानी की ग़ज़लें अपने कथ्य में पूरी तरह से सफल हैं, आज ऐसी ही ग़ज़लें कहे जाने की आवश्यकता है। नरेश महरानी ने कहा मैंने समाज में जो भी देखा और समझा है, उसे अपनी ग़ज़लों में बांध दिया है। अब पाठक को फैसला करना है कि मेरी ग़ज़लें कैसी हैं।

दूसरे सत्र में मुशायरे का आयोजन किया गया। अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’, अनिल मानव, प्रभाशंकर शर्मा, नीना मोहन श्रीवास्तव, धीरेंद्र सिंह नागा, हकीम रेशादुल इस्लाम, अफसर जमाल, संजय सक्सेना, शिबली सना, कमल किशोर, तलब जौनपुरी, कविता महरानी, नाज़ ख़ान, सुजीत जायसवाल, मसर्रत जहां, राजेंद्र यादव, तस्कीन फ़ात्मा, अजय वर्मा ‘साथी’, राकेश मालवीय आदि ने कलाम पेश किया। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।


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