गुरुवार, 21 मई 2020

असली एजेंडा दिखाने की कामयाब कोशिश

                                                                          - अली अहमद फ़ातमी
                                           

अली अहमद फ़ातमी
 इस समय देश संकट से गुज़र रहा है। यह संकट संविधान को लेकर तो है ही, हिन्दू-मुसलमान को लेकर भी है, कुल मिलाकर हिन्दुस्तान को लेकर है। यह देश सदियों से भिन्न धर्म-जात और इंसान का रहा है। सब की अपनी-अपनी संस्कृत है और कुल मिला कर  एक साझी विरासत और समन्वय संस्कृति, जिस पर गर्व करते आये है और आज भी गर्व है। लेकिन कुछ लोग सदियों की इस साझी विरासत को नापसंद करते आए हैं। अपनी अलग विचारधारा रखते रहे हैं। यह विचार धारा उस समय और तीब्र हुई जब अंग्रेज़ों ने ‘बांटो और राज्य करो’ की नीति अपनाई, उस समय भी भारती एकता में विखराव नहीं आया इसलिए कि उस समय हिन्दू-मुसलमान का मुख्य उद्देश्य था आज़ादी हासिल करना और अंग्रेज़ों को देश से निकाल देना। हम अपने उद्देश्य में अपनी एकता के कारण कामयाब हुए, लेकिन आज़ाद होते ही जब बटवारा हुआ तो वह एक नया ज़ख़्म दे गया और वह कुछ लोग जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे थे। उनको बल मिला और देखते-देखते कई संस्थान बन गईं और पूरी निष्ठा से बांटने का काम करती रहीं, जिनमें एक राष्ट्रीय सेवक संघ भी है। 

हिन्दुस्तान की कम पढ़ी लिखी जनता आरएसएस आदि का नाम तो सुनती रही पर उसके पूरे एजेंडे को समझा नहीं जा सका। अब जबकि भाजपा शासन ने इसे पूरे तौर पर लागू करने का निश्चय कर लिया है और तरह-तरह के फ़ैसले कर करके हिन्दू-मुसलमान के बीच नफ़रत की गहरी खाई पैदा कर रही है। साथ ही संविधान के मूल्य सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ कर रही है तो देश में संकट का पैदा हो जाना स्वाभाविक है। 
 ऐसे में धर्म निरपेक्षता पर विश्वास करने वाले बुद्धिीजीवियों, लेखकों आदि ने आरएसएस का अस्ल चेहरा और एजेंडा दिखाने की कामयाब कोशिश कर रहे हैं, इसी सिलसिले की कड़ी है श्री एलएस हरदानिया की यह किताब ‘एजेंडा आरएसएस का उसी ज़बानी’ जिसे उर्दू में हमारे दोस्त उर्दू लेखक व आलोचन प्रो. मुख़्तार शमीम ने बढ़िया अनुवाद करके एक बड़ा काम अंज़ाम दिया है ताकि कोई बात बग़ैर सुबूत के न आने पाये, वह इतिहास में भी गये हैं और धर्म संस्कार व संस्कृत पर भी अच्छी बात की है और फिर नतीज़ा निकाला है कि- ‘इस तरह ये खुद ही साबित हो जाता है कि संघ का नज़रिया मुल्क को तोड़ने वाला है, जोड़ने वाला नहीं। केंद्र में भाजपा की हुकूमत आने के बाद संघ अपने नज़रियात मुल्क पर थोपने के लिए बेचैन है, इससे मुल्क को ख़तरा है।’
  इसी तरह के दिल दुखा देने वाले तथ्य इस किताब में पेश किये गए हैं, जिसे जानना आज हर भारतीय को ज़रूरी है जो हमारे संविधान को असली हिन्दुस्तान को अच्छी तरह समझते हैं। मैं लेखक व अनुवादक दोनों को बधाई देता हूं कि इस संकट के समय हर भारतीय को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। मैं इस किताब का स्वागत करता हूं और इसे पढ़े जाने की अपील करता हूं। 80 पेज के इस उर्दू अनुवाद को शेरी एकेडेमी, भोपाल ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 80 रुपये है। मौलिक किताब हिन्दी में प्रकाशित हुई है, जिसके लेखक एलएस हरदानिया हैं। उर्दू में अनुवाद प्रो. मुख़्तार शमीम ने किया है, और एम. डब्ल्यू. अंसारी ने मुरत्तब किया है।
( गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2020 अंक में प्रकाशित )

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