सोमवार, 13 अगस्त 2018

परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद

                                               
 
                         
                                                                                 - मुहम्मद शहाबुद्दीन ख़ान
                             
 शहीद वीर अब्दुल हमीद हमारे देश का एक जांबाज और बहादुर देशभक्त सिपाही थे, जिसकी बहादुरी के किस्से हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध मे न केवल पाकिस्तान के हमले का जवाब दिया बल्कि अविजित माने जाने वाले अमरीकी पैटन टैंकों (लोहे का शैतान) को भी खत्म कर दिया था। परमवीर चक्र जीतने वाले एकमात्र मुस्लिम वीर योद्धा सिपाही अब्दुल हमीद का जन्म गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में पहलवान मोहम्मद उस्मान के घर 1 जुलाई 1935 को हुआ था, इनका परिवार काफी गरीब था। उनके यहां परिवार की आजीविका को चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था, लेकिन अब्दुल हमीद का मन इस काम मंे बिल्कुल नहीं लगता था, उनका मन तो बस कुश्ती दंगल और दावं पेंचों में लगता था। लाठी चलाना, कुश्ती लड़ना और बाढ़ में नदी को तैर कर पार करना उनके मुख्य शौक थे। फौज में भर्ती होकर देश सेवा करना उनका सपना था। सन 1954 में सेना में भर्ती हो गए। सन 1962 भारत-चीन युद्ध में उन्होंने अपनी बहादुरी और अचूक निशानेबाजी से साथियों का दिल जीत लिया और उन्हे पांच वर्षो तक सेना के एंटी-टैंक सेक्शन में काम करने के बाद उन्हें अपनी कम्पनी का क्वार्टरमास्टर स्टोर्स का चार्ज दिया गया साथ ही उनकी चीन युद्ध मेे वीरता और समझदारी को देखते हुए 12 मार्च 1962 मे सेना ने हमीद को लांसनायक अब्दुल हमीद बना दिया।
 सन 1965 के भारत-पाक युद्ध में वे अपनी सेना की कंपनी क्वाटर मास्टरी का नेतृत्व कर रहे थे, तभी 9 सितम्बर 1965 की रात पाकिस्तान ने अचानक ही भारतीय सेना की चैकी पर हमला बोल दिया। इस हमले की अगुवाई अमरीका के अविजित पैटन टैंकों की एक टुकड़ी कर रही थी। अचानक हुए इस हमले से लड़ने के लिए अब्दुल हमीद की कम्पनी के पास केवल राइफल्स और गन माउन्टेड जीप थी। हालात की नज़ाकत समझते हुए अब्दुल हमीद अपनी गनमाउन्टेड जीप से पंजाब के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर के लिए रवाना हुए, जहां उताड़ गांव मे युद्ध हो रहा था। आखिरी ख़त इस मोर्चे पर जाने से पहले वीर हमीद ने अपने भाई के नाम लिखा और उस खत मे उन्होंने लिखा की सेना की पल्टन में उनकी बहुत इज़्ज़त होती है, जिनके पास कोई चक्र होता है। देखना झुन्नून हम जंग मे लड़कर इंशाअल्लाह कोई न कोई चक्र ज़रूर लेकर लौटेंगे। उन्होंने अपनी उसी गन से पाकिस्तानी टैंकों पर निशाना लगाना शुरू किया और एक के बाद एक-एक करके 3 टैंक खत्म कर दिए। परंतु, चैथे टैंक पर निशाना लगाते वक्त उनकी जीप पर एक गोला आकर गिरा जिसमें वह बुरी तरह जख्मी हो गए फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुश्मन के टैंकों को हमला करते रहे। लगातार 9 घंटे चली इस मुठभेड़ में पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह हराकर भगाने के बाद 10 सितम्बर 1965 को अब्दुल हमीद ने अपनी अंतिम सांस ली थी। अतः उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र और भारतीय सेना का सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। 
गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2018 अंक में प्रकाशित


2 टिप्पणियाँ:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंग दान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

मेरी लघुकथा ने कहा…

देश के साथ पंजाब के लिए बहुत ही गौरव की बात, इस शहीद की समाधि भी पंजाब बार्डर पर जिस जगह हर साल उनकी याद में मेला लगता है। लोग शहीद को नमन करते हैं

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