रविवार, 3 दिसंबर 2017

पं. नेहरू खुद मार्क्सवादी थे: ज़ियाउल हक़

काॅमरेड ज़ियाउल हक़ से इंटरव्यू लेते प्रभाशंकर शर्मा

आजादी आंदोलन से लेकर आज़ादी के बाद भी पत्रकारिता धर्म का संजीदगी से सजोने वाले काॅमरेड ज़ियाउल हक़ साहब ने इलाहाबाद को कई परिदृश्यों में देखा और महसूस किया है। ‘गुफ्तगू’ के उपसंपादक प्रभाशंकर शर्मा और डाॅ. विनय कुमार श्रीवास्तव ने आपसे बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश-
सवाल: पाठकों की तरफ से हम सबसे पहले आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानना चाहेंगे ?
जवाब: इलाहाबाद की हमारी बहुत पुरानी फैमिली है। यहां एक मोहल्ला दोंदीपुर जो रेलवे स्टेशन के पास है, वहां पर हमारा पुराना घर है। मैं 1920 में पैदा हुआ थौ मेरे पिताजी इलाहाबाद के मानिंद वकील थे। मेरे पिताजी का नाम सैयद ज़मीरुल हक़ था। मेरे दो भाई और तीन बहनें थीं, इनमें मैं सबसे बड़ा था। मेरे एक भाई इस समय हयात में हैं, इस समय अमेरिका में रहते हैं।
सवाल: आप अपने जीवन के शुरूआती जीवन के बारे में बताइए ?
जवाब: जब मैं पैदा हुआ, उस समय राजनैतिक चहल-पहल बहुत थी, उसका हमारे उपर और हमारे साथियों पर बहुत असर पड़ा। हम लोग हाईस्कूल के ज़माने से ही राजनीतिक हो गए थे और राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। हमारे बहुत अच्छे विश्वनाथ नरोड़े जी महाराष्ट के थे, सैयद नुरुल हसन जो बाद में मिनिस्टर हो गए थे, हमारे काफी अच्छे दोस्त थे। हमारा एटामाॅसफियर पढ़ने-लिखने के साथ राजनीतिक भी था। हमारे ज़माने मे चंद्रशेखर आज़ाद का वाक्या हुआ था। इस तरह के और भी वाक्यात हुए जिन्होंने हमारे उपर राजनीतिक असर पैदा किया। हम राजनीति में आ गए और माक्र्सवाद से जुड़ाव शुरू हुआ। जीआईसी के बाद यूनिवर्सिटी में आए, यहां पर कम्युनिष्ट पार्टी के बड़े नेता रुद्र दत्त भारद्वाज का प्रभाव मुझ पर पड़ा। उनके कहने पर हमने लगभग 1937-38 में अपना घर छोड़ दिया और राजनीतिक जीवन में सक्रिय हो गए। हमने अपना घर छोड़कर अपने परिवार के साथ बहुत ज्यादती की। उसी समय पार्टी ने हमें दिल्ली बुला लिया और दिल्ली में हम उर्दू अख़बार और फिर अंग्रेजी में काम करने लगे।
सवाल: आपने आज़ादी के पहले और उसके बाद का भी समय देखा है। उन दिनों देश दुनिया का क्या माहौल था ?
जवाब: इलाहाबाद पं. जवाहर लाल नेहरु और पं. सुंदर लाल जी थे, उनके आगे-पीछे घूमने का मौका मिला। उस जनरेशन में पर नेहरु का बहुत असर था। उनकी जीवनी और उनके काम का बहुत असर था, वही हमारे नेता थे।
सवाल: आप कह रहे हैं कि नेहरु जी ही आपके नेता थे, तो आप माक्र्सवादी कैसे हुए ? 
जवाब: पंडित जवाहर लाल नेहरु खुद मार्क्सवादी थे। हमारे साथी लोग उनको मार्क्सवादी मानते थे।
सवाल: आज़ादी के समय इलाहाबाद की क्या दशा थी। उस समय इलाहाबाद का क्या माहौल था ?
जवाब: हम लो सब अपने-अपने संघर्ष और राजनीतिक कार्यक्रम में लगे रहते थे। हम लोग राजनीतिक कार्यकर्ता थे, हमस ब एक दूसरे के साथ मिलते-जुलते रहतेे थे। यहां का राजनीतिक माहौल अच्छा था। यहां पढ़े-लिखे लोग थे। इलाहाबाद की पाॅलिटिक्स का लाइफ अच्छी थी। यहां के नेताओं के अच्छे लेख और भाषण हुआ करते थे।
सवाल: इलाहाबाद का वामपंथ से क्या संबंध रहा?
जवाब: इलाहाबाद में काफी अच्छा वामपंथ था। कांग्रेस के अंदर भी कुछ लोग वामपंथी थे। पं. नेहरु के साथ जेड.ए. अहमद और सज्जाद ज़हीर उनके दफ्तर में काम करते थे जो कि कम्युनिष्ट थे।
सवाल: आप अपने समय के इलाहाबाद और अब के इलाहाबाद में क्या अंतर पाते हैं?
जवाब: तब इलाहाबाद के लोग सामान्यतः ज्यादा सभ्य थे, जिसमें कुछ कमी आ गई है। पहले का इलाहाबाद उस लिहाज से बहुत अच्छा था, तब बहुत मान-दान वाले लोग थे, जिनकी बहुत इज़्ज़त थी। पत्रकारिता के लिहाज से भी तब के ज़माने और अब के ज़माने में अंतर आ गया है। इलाहाबाद में अच्छा लिखने वाले थे।
सवाल: इस समय आप अपनी पार्टी के लिए किस तरह सहयोग कर रहे हैं?
जवाब: हमारी पार्टी सीपीआई का अख़बार ‘न्यू एज़’ है, जिसका मोटो ‘सेव इंडिया’ ‘चेंज इंडिया’ है। यह एक साप्ताहिक समाचार पत्र है। इसका हिन्दी संस्करण ‘मुक्ति संघर्ष’ नाम से है। इस अख़बार में मैं 1952 से काम करता रहा। इसमें मेरे लेख छपते थे, अब मेरी उम्र 98 वर्ष की हो गई है, अब मैं नहीं लिखता हूं।
सवाल: आज की युवा पीढ़ी के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब: अनफाॅच्युनेटली हम कैसे कहें कि देश में कम्यनलिज़्म आ गया है, जो देश में पहले नहीं था। हो सकता है हमारा ख़्याल ग़लत हो, पर बहुत लोग राजनीति में इतने अंधे हो जाते हैं कि कुछ समझ में नहीं आता। ज़माना बहुत बदल गया है।
सवाल:  क्या आप अपने जीवने संबंधित कोई बात बताना चाहेंगे जो आपके मन में रह गई हो ?
जवाब: देश में बंटवारा के दौरान बहुत से लोग देश छोड़कर चले गए, यह दुखद बात हुई। ऐसा कोई मंच होना चाहिए और हो सकता जिसमें मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम लोग ज़्यादा बातचीत कर सकें। आज़ादी और बंटवारे के दौरान मेरे निकट संबंधी, बचपन में जिनका साथ रहा वो बिछड़ गए और कुछ लोग वहां से निकलकर अमेरिका चले गए।
(गुफ्तगू के जुलाई-सितंब: 2107 अंक में प्रकाशित)


1 टिप्पणियाँ:

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय /आदरणीया आपको अवगत कराते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि हिंदी ब्लॉग जगत के 'सशक्त रचनाकार' विशेषांक एवं 'पाठकों की पसंद' हेतु 'पांच लिंकों का आनंद' में सोमवार ०४ दिसंबर २०१७ की प्रस्तुति में आप सभी आमंत्रित हैं । अतः आपसे अनुरोध है ब्लॉग पर अवश्य पधारें। .................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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