रविवार, 15 मई 2011
नई लेखनी तरही गज़ल की बेहतरीन पेशकश
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर से नई लेखनी नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रवेशांक छपकर आया है. जो खासकर हिंदी गज़लकारों के लिए बेहतरीन मंच है. हालांकि इसके पहले भी तरही गज़लों की पत्रिकाएं निकली हैं और उससे बहुत सारे लोग जुड़े भी हैं. लेकिन आर्थिक तंगी के कारण बंद हो गई हैं. इसके लिए काफी हदतक खुद गज़लकार ही जिम्मेदार हैं. ये लोग पत्रिका को पसंद करते हैं, उसके लिए गज़लें भी भेजते हैं. मगर पत्रिका के खरीदार नहीं बनाना चाहते, पत्रिका उन्हें मुफ्त में चाहिए. सिर्फ वाहवाही से पत्रिका नहीं चल सकती. इसलिए अगर गज़लकार पत्रिका खरीदकर पढ़े हो बेहतर होगा.
नई लेखनी की शुरुआत एक सराहनीय कदम है, इसमें कोई शक नहीं. खुदा से दुआ है कि इसकी उम्र लंबी हो. पत्रिका के प्रवेशांक के लिए उसका पावन मन देखा है तरह दिया गया था. इस तरह पर 200 से अधिक गज़लकारों की ग़ज़लें छपी हैं. अगले अंक के लिए फूल ही फूल नहीं जीवन में, कांटे भी स्वीकार करो तरह दिया गया है. इस तरह में स्वीकार काफिया है. अगले अंक के लिए गज़ल भेजने की अंतिम तारीख 15 जून 2011 है. पत्रिका के संपादक शिवनाथ बिस्मिल हैं. सम्पादकीय कार्यालय का पता है-
शिवनाथ बिस्मिल
प्रधान संपादक- नई लेखनी
उज्जवल प्रेस
333-ए सिक्लापुर, कालेज रोड
बरेली-243005
मोबइल नंबर- 09319052727
गुरुवार, 12 मई 2011
हेमला श्रीवास्तव के भाव निर्झर
---------------------- इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ----------------------------------
अभिव्यक्ति ज़ाहिर करने का सबसे अच्छा माध्यम कविता अथवा शायरी को माना जाता है. विद्वानों का कहना है कि जिसे कविता लिखने समझने का सलीका नहीं आता, उसे जीने का सलीका भी ठीक ढंग से नहीं आता. इसी परिदृश्य में काव्य सृजन बेहद अहम हो जाता है. सृजन को लेकर सुमित्रानंदन पन्त जी ने कहा-
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा ज्ञान
निकलकर अधरों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान.
तमाम ऐसे लोग हैं, जो सृजन तो करते हैं लेकिन न तो उसे कहीं छपवाते हैं और न ही किसी को सुनाते हैं. बल्कि कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि अपने निकटतम लोगों को भी काव्य सृजन के बारे में नहीं बताते. इसके बावजूद कभी न कभी जीवन में ऐसा अवसर आता है जब वे अपने काव्य सृजन को लोगों के सामने लाने का निर्णय लेते हैं. हेमला जी ऐसी ही एक कवयित्री हैं, जिन्होंने लगातार कविता का सृजन किया है. पेशे से अध्यापिका रहीं हेमला जी ने सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी कविताओं को पुस्तक का रूप देने का मन बना लिया.जीवनभर कविताओं का सृजन करके अपने तक ही सीमित रखने वाली कवियत्री का सृजन जब लोगों के सामने आ गया है, निश्चित रूप से काव्य प्रेमी इसका स्वागत करेंगे.
हेमला जी का सृजन बहते पानी की तरह है. पहाड़ों से निकले स्वच्छ जल को जिस तरफ भी रास्ता मिलता है, चल पड़ता है.उसे किसी विशेष रस्ते की ज़रूरत नहीं होती. उसे तो बस बहते रहना है और लोगों की प्यास बुझाना है,उनकी ज़रूरतें पूरी करनी है. इसी तरह हेमला जी की कविताएँ किसी विधा विशेष से बधीं नहीं हैं. उन्होंने तो बस अपनी अभिव्यक्ति को कागज पर उकेर दिया है. ऐसी कवितायें पढकर काव्य प्रेमी प्रफुल्लित होने के साथ ही जीवन की सच्चाई से रूबरू हो जाते हैं, उसे लगता है कि यह कविता उसी के लिए लिखी गई है, फरमाती हैं-
किस्मत तो लिखी थी मेरी सोने की कलम से
पर इसका क्या करें कि स्याही में ज़हर था.
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने इलाहाबाद में एक मजदूरनी पत्थर तोड़ते हुए देखा तो उनके अंदर का कवि जाग उठा और तोडती पत्थर जैसी कालजयी कविता का सृजन किया. हेमला जी ने भूख से बेहाल बचपन और उसके आगे मजबूर ममता अपनी कविता का विषय बनाया-
गीत गूंगे हो गए हैं, लेखनी स्तब्ध है,
आह भी सहमी हुई है ,शब्द भी निःशब्द है.
रोते आँचल के तले हैं,भूख से बेहाल बचपन
हो गई मजबूर ममता,बेचने को अपना यौवन.
कवि दूसरों के दुःख को लेकर अपने सुख बांटता है और इसी में अपने जीवन को सार्थक समझता है-
तुम पूनम की रातें लेकर अन्धकार मुझको दे देना,
मैं भावों के दीप जलाकर,अपनी दीवाली करुँगी.
तुम सागर के मोती लेकर,खाली सीप मुझे दे देना,
मैं अपने अश्कों से उन खाली सीपों की गोंद भरूंगी.
हेमला जी की यह पुस्तक निश्चित रूप से चर्चा का विषय बनेगी.काव्य जगत में इसे हाथों हाथ लिया जाएगा, ऐसी उम्मीद है.
पुस्तक का नाम: भाव निर्झर
कवयित्री: हेमला श्रीवास्तव
पृष्ठ: 160, कीमत: 51 रुपये
प्रकाशक: गुफ्तगू पब्लिकेशन
123 ए/1, हरवारा, धूमनगंज
इलाहाबाद-211011
बुधवार, 11 मई 2011
गुफ्तगू: जून 2011 अंक
३
3- खास ग़ज़लें: अकबर इलाहाबादी,फ़िराक गोरखपुरी,मजरूह सुल्तानपुरी,दुष्यंत कुमार
3- खास ग़ज़लें: अकबर इलाहाबादी,फ़िराक गोरखपुरी,मजरूह सुल्तानपुरी,दुष्यंत कुमार
4- आपकी बात
5-6- सम्पादकीय: कवि सम्मलेन के मंच पर हास्य कलाकार
ग़ज़लें
7- मुनव्वर राना,इब्राहीम अश्क
8-अतीक इलाहाबादी,मनोहर विजय
9-वाकिफ अंसारी, लोक सेतिया तन्हा,आचार्य भगवत दुबे,वृन्दावन राय सरल
10- दरवेश भारती,केशव शरण,ऋषिपाल धीमान, एम एफ नज़र
11-देवेश देव,अजय अज्ञात
12-नरेश निसार,शम्मी शम्स वारसी,किशन स्वरूप
13-सजीवन मयंक,इरशाद अहमद,शिबली सना, सहर बहेरवी
14-हुमा अक्सीर,सिब्तैन परवाना,अखिलेश निगम अखिल
41-अशोक पाण्डेय गुलशन
कवितायें
15-कैलाश गौतम,अविनाश सिंह चौहान
16-रुबीना, जसप्रीत कौर जस्सी
17- अंजलि राना,विमल कुमार वर्मा, विवेक श्रीवास्तव
18-आकांक्षा यादव, जाल अंसारी
19-20- तआरूफ: अलका प्रकाश
21-23- इंटरव्यू: एहतराम इस्लाम
24-28- हम अपने गांव की गलियों में सावन छोड़ आये हैं- मुनव्वर राना
29-30- तबसेरा: आधी हकीकत आधा फ़साना,पसंगा,लंबे दिन लंबी रातें,सुभाष सेनानी
31- तबसेरा:सहजगीता
32-पत्रिकाओं के विशेषांक
33-34- चौपाल: साहित्यिक पुस्तकों की कीमत इतनी अधिक क्यों
35-36- शख्सियत: सुभाष राय
37-39-कहानी: खामोश रिश्ता-हेमला श्रीवास्तव
40-41- अदबी ख़बरें
42-इल्मे काफिया
43-47- कृष्ण भूषण श्रीवास्तव की कवितायें
48- ज़मीर अहसन की ग़ज़लें
परिशिष्ट: सुरेश चंद्र श्रीवास्तव
49-50- तआरूफ: सुरेश चंद्र श्रीवास्तव
51-शिल्प का कसाव विशेष मायने रखता है- नन्दल हितैषी
52- सकारात्मक सन्देश देती कवितायें-शैलेष वीर गुप्त
53-80- सुरेश चंद्र श्रीवास्तव की कवितायें
सदस्यता लें
संदेश (Atom)