रविवार, 20 मार्च 2011

साहित्य कैलेंडर नहीं है- फजले इमाम

सात अगस्त १९४० को आजमगढ़ जिले के फूलपुर में जन्मे प्रोफेसर फजले इमाम ने अपनी पढ़ाई की शुरुआतअरबी फारसी भाषा के साथ संस्कृत में की। पंडित देव शुक्ल उन्हें संस्कृत पढ़ाते थे। इन्होने हाई स्कूल इंटर और स्नातक की पढ़ाई जौनपुर में पूरी की। उर्दू इकोनामिक्स में स्नाक्तोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से इन्होने पी एचडी और डी फिल की उपाधि हासिल की। बलरामपुर गोंडा के ऍम एल के डिग्री कोलेज में अध्यापन कार्य शुरू किया। इसके बाद १९८६ तक जयपुर विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे। ११ अप्रैल १९८६ को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन का दायित्व सम्भाला, जहां उर्दू विभाग के हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट भी हुए। प्रोफेसर इमाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय अध्यापक संघ के अध्यक्ष भी रहे। ३१ दिसम्बर १९९४ से २० अप्रैल १९८८ तक आप माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के चैरमैन पद का दायित्व सम्भाला। आपकी उर्दू, हिंदी, फारसी और संस्कृत में लगभग तीन दर्जन किताबे छप चुकी हैं। जिनमे पाकिस्तान का प्रतिरोधी उर्दू साहित्य और साहित्य की झलकी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इम्तियाज़ अहमद गाज़ी ने उनसे कई मुद्दों पर बात की.




सवाल: उर्दू भाषा की दयनीय हालत को लेकर आप क्या सोचते हैं ?



जवाब:: बोलचाल की भाषा में उर्दू का प्रचलन आज भी हमारे समाज में कायम है। आज भी हम बोलचाल में पानी,नाश्ता,पेशाबखाना, आदि का सहज प्रयोग करते हैं। फिल्मों में भी अधिकतर उर्दू शब्दों का प्रयोग होता है। यह व्यावसायिक युग है, एजुकेशन का सम्बन्ध रोज़ी-रोटी से हो गया है। सरकार ने उर्दू भाषा को संरछण नहीं दिया, इसी वजह से उर्दू का विकास नहीं हो सका। आज उर्दू अखबार और पत्रिकाएं कम निकल रही हैं। लोग अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में पढाते हैं, क्योंकि उर्दू को व्यावसायिक रूप में नहीं जोड़ा ग्या। मुलायम सिंह ने अपने पहले कार्यकाल में कुछ उर्दू अध्यापकों की नियुक्ति करके उर्दू को बढ़ावा देने का प्रयास किया था, लेकिन वो सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका।



सवाल: ज़दीद शायरी और रिवायती शायरी को आप कितना अलग समझते हैं ?



जवाब: ज़माने के ऐतबार से लाइन खीचकर बताना कि कहाँ तक रिवायती शायरी का ज़माना है और कहाँ से ज़दीद शायरी का दौर शुरू हुआ है, बहुत मुश्किल है। साहित्य कैलेंडर नहीं है। सामाजिक चेतनावों पर अदब चलता है। मीर और सौदा एक ही दौर के शायर हैं, लेकिन मीर कि शायरी नए दौर कि प्रतीत होती है, जबकि सौदा कि शायरी पुराने दौर कि लगती है। इसलिए ज़दीद और रिवायती शायरी के बीच लकीर खेंचना उचित नहीं है। अल्लामा इकबाल कहते हैं-ज़माना एक,हयात एक,कायनात भी एक, दलीले-कम नजरी किस्से-ए-ज़दिदो कदीम।



सवाल:गज़ल और नज़्म को आप किस प्रकार अलग करते हैं?



जवाब:नज़्म मरकजी होती है, पुरी नज़्म पढ़ने के बाद अंत में बात पुरी होती है। जबकि गज़ल के हर शेर का अपना मतलब होता है। पूरी-पूरी कहानी या नज़्म कि बात को गज़ल के एक शेर में कहा जा सकता है। गज़ल में उपमा,अलंकार,छंद आदि का प्रयोग होता है।



सवाल: अब उर्दू अदब के शायर राजनैतिक पार्टियों में शामिल होने लगे हैं, कैसा लगता है?



जवाब: आप जिनकी बातें कर रहे हैं, वे लालची लोग हैं। उन्हें लगने लगा था कि फिर भाजपा कि सरकार बनेगी और उन्हें इसका लाभ मिलेगा। बशीर बद्र की अपनी अदबी हैसियत कुछ भी नहीं है, मंज़र भोपाली गायाक हैं, मुशायरों तक ही इनकी पहचान है। इनका कोई साहित्यिक स्तर नहीं है। चुनाव नजदीक होने के कारण इन्होने भाजपा के इशारे पर हिमायती कमिटी बनाई थी। आखिर चुनाव से पहले यह कमेटी क्यों नहीं बनायी थी और अब भाजपा के हार जाने के बाद वह कमेटी कहाँ गई। यही वजह है कि इनके भाजपा में शामिल होने पर उर्दू अदब के किसी आदमी ने नोटिस नहीं लिया।



सवाल: वर्त्तमान शायरी से आप कितना संतुष्ट हैं?



जवाब: आजकल शायरी हो ही कहाँ रही है। यह अदबी जवाल का दौर है। जो बेचारे काव्य-शास्त्र नहीं जानते, शायरी के विभिन्न पहलुओं से परिचित नहीं हैं, वही जोड़-तोड़ करके मिशरों से तुकबंदी कर रहे हैं, और बड़े शायर बने हैं। मुशायरों का स्तर बेहद घटिया हो गया है, इनमे जाना, बैठना अदब के खिलाफ है। आजकल हरगली मोहल्ले में शायर पैदा हो गए हैं। जाहिल शायरों की भरमार है। पढ़े-लिखे अच्छे शायरों के संख्या बहुत कम है। आजकल मुशायरों में पढ़ा जाता है- जब से देखा पड़ोस की मुर्गी, मेरा मुर्गा अजान देने लगा.



सवाल:उर्दू आजकल कैसी कहानियाँ लिखी जा रही हैं ?



जवाब:सलाम बिन रज्जाक, जोगिन्दर पाल और तारिक छतारी वगैरह उर्दू कहानियाँ खूब लिख रहे हैं। आजकल की कहानियाँ फसादात, सामाजिक विसमताओं तथा नारी उत्पीडन पर केंद्रित हैं।



सवाल:पिछले कुछ वर्षों से उर्दू रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया जा रहा है, कैसे महसूस करते हैं इसे लेकर?



जवाब: किसी भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद मुमकिन नहीं है। उर्दू का हिंदी में अनुवाद नहीं हो रहा बल्कि रूपांतरण हो रहा है। यह अच्छी बात है, इससे हिंदी भाषी लोग उर्दू की रचनाओं से परिचित हो जायेंगे।



हिंदी दैनिक आज में २९ अगस्त २००४ को प्रकाशित


2 टिप्पणियाँ:

वीनस केसरी ने कहा…

इमाम साहब ने सटीक सवाल के पैने जवाब दिए

साक्षात्कार मुझे कुछ छोटा लगा, शायद हिंदी दैनिक की अपनी सीन=माँ रही हो
फिर भी पढ़ बहुत बढ़िया लगा

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

आपने बहुत सुन्दर प्रश्न उठाये हैं, और उनके जवाब भी उतने ही सुन्दर हैं. आप दोनों को बधाई

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