ज़ख्म खाने को सदा तैयार होना चाहिये ,
तीर नज़रों का सदा उस पार होना चाहिये |
गर खुदा ना ही मिले तो भी मुझे परवा नहीं ,
साथ मेरे बस मेरा दिलदार होना चाहिये |
डूबती हैं कश्तियाँ साहिल पे भी आके कभी
झूठ कहते हैं कि बस मझधार होना चाहिये |
वक़्त का है ये तकाज़ा हम ज़मीं तलाश लें ,
अब हमें इस पार या उस पार होना चाहिये |
बेवफाई और रुसवाई का ये आलम है क्यूँ ,
इश्क के मौसम को कुछ गुलज़ार होना चाहिये |
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चार दीवारी से बाहर कभी आ कर देखो ,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो |
मंदिरों मस्जिदों की फिर न जरुरत होगी ,
इश्क के सजदे में तुम सर को झुका कर देखो |
यूँ पिघलना नहीं आसान है कतरा कतरा ,
चाँद के साथ कोई रात बहा कर देखो |
मायने तुमको समझने हों अगर घर के तो
आसमां के तले शब कोई बिता कर देखो |
बेबसी पे मेरी यूँ हंसने हंसाने वालों ,
दिल कभी तुम भी किसी से तो लगा कर देखो |
पत्थरों के भी पिघल जाते हैं दिल , ना मानो
दास्ताँ मेरी किसी बुत को सूना कर देखो |
पत्तियां गिरती हैं खुशबु हमेशा रहती हैं ,
फूल तुम कोई किताबों में दबा कर देखो |
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दीप खुशियों के जल उठे हर सू |
इश्क की जब हवा बहे हर सू
एक नई दुनिया तब दिखे हर सू |
चाँद उतरा फलक से है शायद
उसकी आहट सुनाई दे हर सू |
उसने कर ली दो बातें जो मुझसे
मेरे ही चर्चे हो रहे हर सू |
बस गया है नज़र में तू ऐसे
तेरी सूरत दिखे मुझे हर सू |
यूँ तो सब कुछ ही पाया है फिर भी
मुझको तेरी कमी खले हर सू |
सब्ज़ बागों पे छाई वीरानी
रंग पतझड़ के ही दिखे हर सू |
शाम के ढलते ही मेरे दिल में ,
मेले यादों के फिर लगे हर सू |
दर्द और ग़म की इन्तहां है बस
बदली अब पीर की छंटे हर सू |
ये फिज़ा खुशनुमा सी लगती है
रंग उल्फत के हैं सजे हर सू |
2 टिप्पणियाँ:
....:):)))
Bhahut Umda Likha hai. Wah.
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