गुफ्तगू ने ‘ रोज़ एक शायर ’ के तहत रोज़ाना किसी एक शायर की गज़लें उसके तस्वीर के साथ शेयर करने की शुरूआत की है। सभी मित्रों से निवेदन है कि अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें, साथ ही अपनी प्रतिनिधि ग़ज़लें और फोटो भेज दें,ताकि बारी-बारी सबकी ग़ज़ल पोस्ट किया जा सके। शुरूआत हम एहतराम इस्लाम की ग़ज़ल से कर रहे हैं।
अग्नि-वर्षा है तो है, हां!बर्फ़बारी है तो है।
मौसमों के दरमियां इक जंग जारी है तो है।
जि़न्दगी का लम्हा-लम्हा उसपे भारी है तो है।
क्रान्तिकारी व्यक्ति,कुछ हो,क्रांतिकारी है तो है।
मूर्ति सोने की निरर्थक वस्तु है उसके लिए,
मोम की गुडि़या अगर बच्चे को प्यारी है तो है।
खूं-पसीना एक करके हम सजाते हैं इसे,
हम अगर कह दें कि यह दुनिया हमारी है तो है।
रात कोठे पर बिताता है कि होटल में कोई,
रोशनी में दिन की, मंदिर का पुजारी है तो है।
अपनी कोमल भावना के रक्त में डुबी हुई,
मात्र ‘श्रद्धा’ आज भी भारत की नारी है तो है।
है तो है दुनिया से बे परवा परिन्दे शाख़ पर,
घात में उनकी कहीं कोई शिकारी है तो है।
आप छल बल के धनी हैं, जीतिएगा आप ही,
आपसे बेहतर मेरी उम्मीदवारी है तो है।
देश की संपन्नता कितनी बढ़ी है, देखिए,
सोचिये क्यों? देश की जनता भिखारी है तो है।
दिल्लियों, अमृतसरों की भीड़ में खोयी हुई,
देश में अपने, कहीं कन्याकुमारी है तो है।
‘एहतराम’अपने ग़ज़ल-लेखन को कहता है कला,
आप कहते हैं उसे जादूनिगारी है तो है।
2 टिप्पणियाँ:
उस्ताद शायर भाई एहतराम जी की उम्दा और प्रतिनिधि गज़ल उपलब्ध करवाने के लिए शुक्रिया . आपको और एहतराम जी को बधाई
डॉ दिनेश 'शम्स'
उम्दा शुरुआत, एक उम्दा शायर के उम्दा कलाम से की गई है
बधाई स्वीकारें
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