रविवार, 22 अप्रैल 2012

रोज़ एक शायर में आज- वीरेन्द्र जैन



ज़ख्म खाने को सदा तैयार होना चाहिये ,
तीर नज़रों का सदा उस पार होना चाहिये |

गर खुदा ना ही मिले तो भी मुझे परवा नहीं ,
साथ मेरे बस मेरा दिलदार होना चाहिये |

डूबती हैं कश्तियाँ साहिल पे भी आके कभी 
झूठ कहते हैं कि बस मझधार होना चाहिये |

वक़्त का है ये तकाज़ा हम ज़मीं तलाश लें ,
अब हमें इस पार या उस पार होना चाहिये |

बेवफाई और रुसवाई का ये आलम है क्यूँ ,
इश्क के मौसम को कुछ गुलज़ार  होना चाहिये |

----

चार दीवारी से बाहर कभी आ कर देखो ,
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो |

मंदिरों मस्जिदों की फिर न जरुरत होगी ,
इश्क के सजदे में तुम सर को झुका कर देखो |

यूँ पिघलना नहीं आसान है कतरा कतरा ,
चाँद के साथ कोई रात बहा कर देखो |

मायने तुमको समझने हों अगर घर के तो 
आसमां के तले शब कोई बिता कर देखो |

बेबसी पे मेरी यूँ हंसने हंसाने वालों ,
दिल कभी तुम भी किसी से तो लगा कर देखो |

पत्थरों के भी पिघल जाते हैं दिल , ना मानो 
दास्ताँ मेरी किसी बुत को सूना कर देखो |

पत्तियां गिरती हैं खुशबु हमेशा रहती हैं ,
फूल तुम कोई किताबों में दबा कर देखो |
------

फूल महके जो प्यार के हर सू 
दीप खुशियों के जल उठे हर सू |

इश्क की जब हवा बहे हर सू 
एक नई दुनिया तब दिखे हर सू |

चाँद उतरा फलक से है शायद 
उसकी आहट सुनाई दे हर सू |

उसने कर ली दो बातें जो मुझसे 
मेरे ही चर्चे हो रहे हर सू |

बस गया है नज़र में तू ऐसे 
तेरी सूरत दिखे मुझे हर सू |

यूँ तो सब कुछ ही पाया है फिर भी 
मुझको तेरी कमी खले हर सू |

सब्ज़ बागों पे छाई वीरानी 
रंग पतझड़ के ही दिखे हर सू |

शाम के ढलते ही मेरे दिल में ,
मेले यादों के फिर लगे हर सू |

दर्द और ग़म की इन्तहां है बस 
बदली अब पीर की छंटे हर सू |

ये फिज़ा खुशनुमा सी लगती है 
रंग उल्फत के हैं सजे हर सू |

2 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

....:):)))

Tribhawan Kaul ने कहा…

Bhahut Umda Likha hai. Wah.

एक टिप्पणी भेजें