गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

रोज़ एक शायर में- मुनव्वर राना



लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुसकुराती है।

मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिन्दी मुसकुराती है।
उछलते-खेलते बचपन में बेटा ढूंढती होगी,
तभी तो देखकर पोते को दादी मुसकुराती है।
तभी जाकर कहीं मां-बाप को कुछ चैन पड़ता है,
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुसकुराती है।
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है,
कली जब सो के उठती है तो तितली मुसकुराती है।
हमें ऐ जि़न्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है,
मसायल में घिरी रहती है फिर भी मुसकुराती है।
बड़ा गहरा तअल्लुक है सियासत से तबाही का,
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुसकुराती है।

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