कोस-कोस सरकार को कोस।
महंगाई की मार को कोस।
चुनकर नेता किसने भेजा,
संसद की तकरार को कोस।
लूट-डकैती हत्या, चोरी
लोकतंत्र की धार को कोस।
कहीं अयाशी, कहीं गरीबी,
जी भर पालनहार को कोस।
नाव डूबो दी रामलाल ने,
नाविक की पतवार को कोस।
कंधे ढीले पहले से थे,
उम्मीदों के भार को कोस।
मोबाइलः 8574006355
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