बुधवार, 16 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज- अतुल जैन सुराना


कुदरत की रहमो इनायत, होती हैं बेटियां।
खुदा की सच्ची इबादत, होती हैं बेटियां।।
मां-बाप की आबरू गरूर, हसरते और बंदिशे।
नाज़ुक कंधो पर क्या क्या, सहती हैं बेटियां।।
दो ख़ानदानांे की इनसे, होती है रोशनाई।
फिर भी बेटो से जाने क्यों, छोटी हैं बेटियां।।
इनकी रूह भी पिघलती है, ज़ज्बो की आंच से।
नहीं महज हाड़ मांस की, बोटी हैं बेटियां।।
इंसान की हैवानियत से, देखो खुदा भी दंग है।
जब कोख में मां की वजू़द, खोती हैं बेटियां।।
जानता है हर कोई, पर मानता नहीं कोई।
कि हीरा है गर बेटा तो, मोती हैं बेटियां।।
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फासले भी तरकीब, होते है पास जाने की।
सोये हुये अहसास उनमें, फिर से जगाने की।।
बेमोल समझते हैं जो, अब उनको जरूरत है
दूर रहकर अपनी जरा, कीमत बताने की।।
तमन्ना है उनके लिये, जो भूल बैठै हैं यादो को।
कि यादो में जाकर उनकी, जरा उनको सताने की।।
बैठे है यंू ही रूठकर, बस तुम्हारे इंतजार में
पूरी इजाजत है तुम्हें सनम, हमको मनाने की।।
मेरा वजूद अक्स है, अब तेरे वजूद का।
जहमत तो कर दिल का जरा, आईना उठाने की।।
तेरे आंसू रखेगें रोशन, मुझे तेरी जिन्दगी में।
चाहे कर कोशिश हजार, तू मुझको भुलाने की।
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सुरूर-ए-इश्क से वो, ऐसे बेहाल हो गये।
कि शर्म से रूखसार भी, यूं लाल हो गये।।
मुस्कुराहट जो लिपटी मिली, हया के नकाब में।
तबदील हकीकत मंे मेरे ,सब ख्याल हो गये।।
वो अदायें वो शोखियां, वो नज़ाकत मेहबूब की।
खुदा कसम इनायतो से हम, निहाल हो गये।।
हुस्न में उनके कुदरत का, ग़जब नूर था।
कि दिल मे हमारे हसरतो के, धमाल हो गये।।
डूबकर उनकीं आंखो के, गहरे समंदर में।
बेजा कोशिश और बचने के, सवाल हो गये।।
हावी थी इस कदर, उनके आगोश की जुम्बिश।
कि वजूद खोकर भी हम, मालामाल हो गये।।
मोबाइल नंबरः 9755564255

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