बुधवार, 2 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज- वीनस केसरी


दुश्मनी खुलकर जताता है बताओ क्या करूं।
दोस्ती वो यूं निभाता है बताओ क्या करूं।
उसकी सारी गलतियां अच्छी लगे हैं अब मुझे,
घर में केवल वो कमाता है बताओ क्या करूं।
मेरी मजबूरी जताता है वो पहले और फिर,
नोट के बंडल दिखाता है बताओ क्या करूं।
खेत बेचे, बैल बेचे, मां के गहने और मकां,
फिर भी लाला रोज आता है बताओ क्या करूं।
फिर खिलौने ले के आया, उसका है धंधा यही,
मेरा मुन्ना रूठ जाता है बताओ क्या करूं।
जिससे हमने प्यार चाहा तो हमारी पीठ पर,
वार करके मुस्कुराता है बताओ क्या करूं।
हम तो ‘वीनस’ काफि़यों में ही उलझ कर रहे गये,
बह्र में वो मुस्कुराता है बताओ क्या करूं।
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क्या मिला है क्या मिलेगा, अश्क के व्यापार में।
हर घड़ी जी लो मुहब्बत से, खुशी से प्यार से।
जीतने के सब तरीके सीख कर मैं जब लड़ा,
जि़न्दगी ने इक सबक सिखला दिया है हार से,
हम किताबे जि़न्दगी के उस वरक को क्या पढ़ें,
जो शुरू हो प्यार से औ’ खत्म हो तक़रार से।
सरहदों से बांट कर जब खाहिशों के दिन ढले,
रातभर आवाज़ देता है कोई उस पार से।
प्यार,खुशियां, दोस्ती, अख़लाक ले आना ज़रा,
मेल देकर गर ख़रीदें जा सके बाज़ार से।
आपकी मोहब्बत ने हमको क्या हंसी तोहफे दिए,
खाहिशें लाचार सी औ’ ख़ाब कुछ बेजार से।
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खो गई उसकी सदा इन वादियों के बीच में।
और मैं भी खो गया इन खाइयों के बीच में।
क्या हुआ, कैसी ख़बर आई सभी हैरान हैं,
कैसी मातम पुरसी इन शहनाइयों के बीच में।
इस कदर बिखरे हुए हैं सबके मन के आईने,
फूल जैसे झर गए हों क्यारियों के बीच में।
त्ुमने अपनी बात कह दी हमने सब कुछ सुन लिया,
सारी बातें कह हो गईं खामोशियों के बीच में।
पेड़ तहज़ीब-ओ-अदब के कट रहे हैं, चुप के साथ,
कौन आये घरघराती आरियों के बीच में।
मोबाइल नंबरः 09453004398

2 टिप्पणियाँ:

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर है चकाचक भी।

Saurabh ने कहा…

एक पूरी सदी सी बीत गयी लगती है कुछ महीनों में. मिसरों में शब्दों का दम कितना-कितना गहन हुआ है ! ’तब-अब’ के सापेक्ष इसे महसूसना वाकई रोमांचित करता है !

पेड़ तहज़ीब-ओ-अदब के कट रहे हैं, चुप के साथ,
कौन आये घरघराती आरियों के बीच में


कहना न होग, ऊँची परवाज़ के पहले हंस एक अच्छी दौड़ लगाता है. उस कोशिश को उसके जज़्बे के साथ बधाई.. .

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