शुक्रवार, 11 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज - ममता किरण



खुदकुशी करना बहुत आसान है
जी के दिखला , तब कहूँ इनसान है।

सारी दुनिया चाहे जो कहती रहे
,
मैं जिसे पूजूँ वही भगवान है।


चंद नियमों में न ये बँध पाएगी
,
ज़िंदगी की हर अदा ज़ी शान है।


टिक नहीं पाएगा कोई सच यहाँ
,
झूठ ने जारी किया फ़रमान है।


भीगा मौसम कह गया ये कान में
,
क्यों तेरे
दिल की गली वीरान है।

जब से चिड़िया ने बनाया घोंसला
घर मेरा तब से बहुत गुंजान है।

(2)

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है
, वही सब को नचाता है।

बहुत से ख़्वाब लेकर गांव से वो शहर आया था

मगर दो जून की रोटी
, बमुश्किल ही जुटाता है।

घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला की हो

ये मन भी खूब है
, रह रहके, उम्मीदें बँधाता है।

मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी

घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।


बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से

उन्हीं रस्मों रिवाजों
, को अभी तक वो निभाता है।

किसी को ताज मिलता है
, किसी को मौत मिलती है
हमें अब प्यार में देखें
, मुकद्दर क्या दिलाता है।

(3)

बाग जैसे गूँजता है पंछियों से
घर मेरा वैसे चहकता बेटियों से।


घर में उसका चाँद आया जानकर वो

छुप के देखे चूड़ियों की कनखियों से।


मेरी मज़िल क्या है मुझको क्या ख़बर अब
कह रहा था फूल इक दिन पत्तियों से।

दिल का टुकड़ा दूर सीमा पर डटा है
सूना घर चहके है उसकी चिट्ठियों से।

बंद घर उसने जो देखा खोलकर

टुकड़ा टुकड़ा धूप आई खिड़कियों से।


इक शज़र खुद्दार टकरा कर ही माना
सामना उसका हुआ जब आँधियों से।

ख्वाब में देखा पिता को तो लगा य
ूं
हो सदाएँ मंदिरों की घंटियों से।


फ़ोन वो खुशबू कहाँ से ले के आए

वो जो आती थी तुम्हारी चिट्ठियों से।
मोबाइल नंबरः 9891384919

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें