मंगलवार, 1 मई 2012

रोज़ एक शायर में आज- जयकृष्ण राय तुषार


हमीं से रंज ज़माने से उसको प्यार तो है।
चलो कि रस्मे मोहब्बत पे ऐतबार तो है।
मेरी विजय पे न थी तालियां न दोस्त रहे,
मेरी शिकस्त का इन सबको इंतज़ार तो है।
हज़ार नींद में एक फूल छू गया था हमें,
हज़ार ख़्वाब था लेकिन वो यादगार तो है।
गुज़रती टृेनें रुकीं खिड़कियों से बातें हुईं,
उस अजनबी का हमें अब भी इंतज़ार तो है।
तुम्हारे दौर में ग़ालिब,नज़ीर मीर सही,
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है।
अब अपने मुल्क का सूरत ज़रा बदल तो सही,
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अखि़्तयार तो है।
हमारा शह्र तो बारूद के धुएं से भरा,
तुम्हारे शह्र का मौसम ये खुशगवार तो है।
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तेरी तस्वीर मेरे मुल्क हर जानिब से अच्छी है,
तुझे कश्मीर,शिमला या कि हरियाना लिखा जाए।
अदब की अंजुमन में अब न श्रोता हैं, न दर्शक हैं,
ग़ज़ल किसके लिए, किसके लिए गाना लिखा जाए।
जो शायर मुफ़लिसों की तंग गलियों से नहीं गुज़रा,
वो कहता है ग़ज़ल में जाम-ओ-मीना लिखा जाए।
ये दरिया,झील, पर्वत,वादियों को छोड़कर आओ,
किताबों में दबे फूलों का मुरझाना लिखा जाए।
मुझे बदनामियों का डर है, तुमसे कुछ नहीं कहता,
शह्र को छोड़कर जाउं तो दीवाना लिखा जाए।
बहुत सच बोलकर मैं हो गया तनहा जमाने में,
किसे अपना करीबी किसको बेग़ाना लिखा जाए।
बदलते दौर में शहज़ादियों की जिक्र मत करना,
किसी मज़दूर की बेटी को सुल्ताना लिखा जाए।
शह्र का हाल अब अच्छा नहीं लगता हमें यारो,
अब अपनी डायरी में कुछ तो रोज़ाना लिखा जाए।
मोबाइल नंबरः 09005912929

1 टिप्पणियाँ:

MS-CIT ने कहा…

good !!!!!!!!!!!

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