अफसाना -ए- हयात का उनवाँ तुम्हीं तो हो
तारे नफ़स है जिस से ग़ज़लख्वाँ तुम्हीं तो हो
रोशन है तुम से शमए शबिस्ताने आरज़ू
मेरे नेशाते रूह का सामाँ तुम्हीं तो हो
आबाद तुमसे ख़ान -ए-दिल था मेरा मगर
जिसने किया है अब उसे वीराँ तुम्हीं तो हो
कुछ तो बताओ मुझसे कि आख़िर कहाँ हो तुम
नूरे निगाहें दीद -ए- हैराँ तुम्हीं तो हो
मैँ देखता हूँ बज़्मे नेगाराँ में हर तरफ
जो है मेरी निगाह से पिनहाँ तुम्हीं तो हो
करते हो बात बात में क्यों मुझसे दिल्लगी
जिसने किया है मुझको परीशाँ तुम्हीं तो हो
क्योँ ले रहे हो मेरी मोहब्बत का इम्तेहाँ
लूटा है जिसने मेरा दिलो जाँ तुम्हीँ तो हो
है मौसमे बहार में बेकैफ ज़िंदगी
मश्शात- ए- उरूसे बहाराँ तुम्हीं तो हो
"बर्क़ी" के इंतेज़ार की अब हो गई है हद
उसके तसव्वुरात में रक़साँ तुम्हीं तो हो
तारे नफ़स है जिस से ग़ज़लख्वाँ तुम्हीं तो हो
रोशन है तुम से शमए शबिस्ताने आरज़ू
मेरे नेशाते रूह का सामाँ तुम्हीं तो हो
आबाद तुमसे ख़ान -ए-दिल था मेरा मगर
जिसने किया है अब उसे वीराँ तुम्हीं तो हो
कुछ तो बताओ मुझसे कि आख़िर कहाँ हो तुम
नूरे निगाहें दीद -ए- हैराँ तुम्हीं तो हो
मैँ देखता हूँ बज़्मे नेगाराँ में हर तरफ
जो है मेरी निगाह से पिनहाँ तुम्हीं तो हो
करते हो बात बात में क्यों मुझसे दिल्लगी
जिसने किया है मुझको परीशाँ तुम्हीं तो हो
क्योँ ले रहे हो मेरी मोहब्बत का इम्तेहाँ
लूटा है जिसने मेरा दिलो जाँ तुम्हीँ तो हो
है मौसमे बहार में बेकैफ ज़िंदगी
मश्शात- ए- उरूसे बहाराँ तुम्हीं तो हो
"बर्क़ी" के इंतेज़ार की अब हो गई है हद
उसके तसव्वुरात में रक़साँ तुम्हीं तो हो
आमद-ए गुल है मेरे आने से
और फसले ख़िज़ाँ है जाने से
मैं चला जाऊँगा यहाँ से अगर
नहीं आऊँगा फिर बुलाने से
तुम तरस जाओगे हँसी के लिए
बाज़ आओ मुझे रुलाने से
हो गया मैं तो ख़नुमाँ -बरबाद
फ़ायदा क्या है दुख जताने से
उस से कह दो कि वक़्त है अब भी
बाज़ आ जाए ज़ुल्म ढाने से
वरना जाहो हशम का उसके यह
नक़्श मिट जाएगा ज़माने से
हम भी मुँह मे ज़बान रखते हैँ
हमको परहेज़ है सुनाने से
या तो हम बोलते नहीं हैं कुछ
बोलते हैं तो फिर ठेकाने से
एक पल में हुबाब टूट गया
क्या मिला उसको सर उठाने से
अशहब-ए ज़ुल्मो जौरो इसतेहसाल
डर ज़माने के ताज़याने से
क़फ़से-उंसरी को घर न समझ
कम नहीं है यह ताज़ियाने से
रूह है क़ैद जिस्म-ए ख़ाकी में
कब निकल जाए किस बहाने से
हँस के बिजली गिरा रहे थे तुम
है जलन मेरे मुस्कुराने से
क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह
सिर्फ़ मेरे ही आशियाने से
लम्ह-ए फिक्रिया है यह बर्क़ी
सभी वाक़िफ हैं इस फ़साने से
और फसले ख़िज़ाँ है जाने से
मैं चला जाऊँगा यहाँ से अगर
नहीं आऊँगा फिर बुलाने से
तुम तरस जाओगे हँसी के लिए
बाज़ आओ मुझे रुलाने से
हो गया मैं तो ख़नुमाँ -बरबाद
फ़ायदा क्या है दुख जताने से
उस से कह दो कि वक़्त है अब भी
बाज़ आ जाए ज़ुल्म ढाने से
वरना जाहो हशम का उसके यह
नक़्श मिट जाएगा ज़माने से
हम भी मुँह मे ज़बान रखते हैँ
हमको परहेज़ है सुनाने से
या तो हम बोलते नहीं हैं कुछ
बोलते हैं तो फिर ठेकाने से
एक पल में हुबाब टूट गया
क्या मिला उसको सर उठाने से
अशहब-ए ज़ुल्मो जौरो इसतेहसाल
डर ज़माने के ताज़याने से
क़फ़से-उंसरी को घर न समझ
कम नहीं है यह ताज़ियाने से
रूह है क़ैद जिस्म-ए ख़ाकी में
कब निकल जाए किस बहाने से
हँस के बिजली गिरा रहे थे तुम
है जलन मेरे मुस्कुराने से
क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह
सिर्फ़ मेरे ही आशियाने से
लम्ह-ए फिक्रिया है यह बर्क़ी
सभी वाक़िफ हैं इस फ़साने से
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इतना न खींचो हो गया बस
टूट न जाए तारे नफस
शीरीं बयानी उसकी मेरे
घोलती है कानों में मेरे रस
खाती हैं बल नागिन की तरह
डर है न लेँ यह ज़ुलफें डस
उसका मनाना मुशकिल है
होता नहीं वह टस से मस
वादा है उसका वादए हश्र
अभी तो गुज़रे हैँ चंद बरस
फूल उन्हों ने बाँट लिए
मुझको मिले हैं ख़ारो ख़स
सुबह हुई अब आँखें खोल
सुनता नहीँ क्या बाँगे जरस
उसने ढाए इतने ज़ुल्म
मैंने कहा अब बस बस बस
बर्क़ी को है जिस से उम्मीद
उसको नहीं आता है तरस
टूट न जाए तारे नफस
शीरीं बयानी उसकी मेरे
घोलती है कानों में मेरे रस
खाती हैं बल नागिन की तरह
डर है न लेँ यह ज़ुलफें डस
उसका मनाना मुशकिल है
होता नहीं वह टस से मस
वादा है उसका वादए हश्र
अभी तो गुज़रे हैँ चंद बरस
फूल उन्हों ने बाँट लिए
मुझको मिले हैं ख़ारो ख़स
सुबह हुई अब आँखें खोल
सुनता नहीँ क्या बाँगे जरस
उसने ढाए इतने ज़ुल्म
मैंने कहा अब बस बस बस
बर्क़ी को है जिस से उम्मीद
उसको नहीं आता है तरस
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उसने कहा था आऊँगा कलगिनता था मैं एक एक पल
कल आया और गुज़र गया
आया नहीं वह जाने ग़ज़ल
देख रहा हूँ उसकी राह
पड़ गए पेशानी पर बल
पूछ रहा हूँ लोगों से
झाँक रहे हैं सभी बग़ल
बोल उठा मुझसे यह रक़ीब
मेरी तरह अब तू भी जल
कोई नहीं है उसके सिवा
करे जो मेरी मुश्किल हल
आती है जब उसकी याद
मन हो जाता है चंचल
उसका ख़ेरामे- नाज़ न पूछ
खाती हो जैसे नागिन बल
सोज़े दुरूँ जब लाया रंग
शम-ए मुहब्बत गई पिघल
आ गया अब वह लौट के घर
उसका इरादा गया बदल
अहमद अली ‘बर्क़ी’ है शाद
उसकी तबीयत गई सँभल
3 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब............
शुक्रिया.
GUFTGU KE LUTF KA MAMNOON
IS KI IS BARQI NAWAAZI KO SALAM
MUKHLIS
AHMAD ALI BARQI AZMI
GUFTGU KE LUTF KA MAMNOON HOON
IS KI IS BARQI NAWAAZI KO SALAM
MUKHLIS
AHMAD ALI BARQI AZMI
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