मंगलवार, 1 मई 2012

कवि सम्मेलन के मंच पर चुटकुलेबाज

 
वर्तमान समय में कवि सम्मेलन और चुटकुला सम्मेलन में fark  करना बेहद मुश्किल हो गया है। देशभर में होने वाले हास्य कवि सम्मेलनों ने सूरत ही बिगाड़कर रख दी है। सूरतेहाल यह हो गया है कि जो आदमी एक लाइन तक की कविता नहीं लिखने जानता, किताबों में पढ़कर और टीवी चैनलों के कार्यक्रम देखकर चुकटलों को याद कर लेता है और फिर हास्य कवि सम्मेलनों के मंच पर सुना रहा है और खुद को कवि कह रहा है,  विडंबना यह है कि एक ही चुटकुले कई कवि अलग-अलग मंचों पर सुना रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि ऐसे लोगों को कवि के रूप में मान्यता देने का काम भी कवि और साहित्यकार ही कर रहे हैं। आम पब्लिक का क्या है, लोग सुनने के लिए जाते हैं, जो उनके सामने प्रस्तुत किया जाता है उसे सुनकर चले आते हैं। हास्य-कवि सम्मेलनों के आयोजक भी इसके लिए उतने जिम्मेदार नहीं हैं। आमतौर पर जब किसी को कवि सम्मेलन कराना होता है तो कवियों को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी किसी न किसी कवि को ही दी जाती है। लगभग हर शहर में ऐसे चार-छह कवि हैं जो सिर्फ़ यह पता लगाने में जुटे रहते हैं कि कौन व्यक्ति किस वक़्त कवि सम्मेलन या मुशायरा कराने जा रहा है। पता लगते ही आयोजक के आगे-पीछे घूमने लगते हैं कि ताकि कवियों को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी उसे सौंप दी जाए। यह जिम्मेदारी मिलते ही उसकी बांछें खिल जाती हैं और वह श्रेष्ठ व अच्छी शायरी करने के आधार पर कवियों का चयन नहीं करता बल्कि वह ऐसे लोगों को आमंत्रित करता है जो उनको बुलाने के बदले उन्हें अपने शहर में उतने ही पारिश्रमिक पर उसे आमंत्रित करें। यहां यह जानने की आवश्यकता किसी को नहीं होती है कि जिस कवि को बुुलाया जा रहा है वो कवि या चुटकुलेबाज। जब इस बारे में आयोजक से बात की जाती है तो वह इसके लिए कवियों को आमंत्रित करने वाले का नाम बता देता है और जब कवियों को आमंत्रित करने वाले कवि से पूछा जाता है तो वह यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि क्या करें इन्हीं को लोग पसंद करते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, अच्छी शायरी सुनने वालों की तादाद आज भी बहुत है जब लोगों के सामने चुटकुले प्रस्तुत किये जाएंगे तो लोग कर ही क्या सकते हैं।
पिछले दिनों इलाहाबाद में होली के मौके पर हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। उसमें हरियाणा से एक कवि को बुलाया गया था और जोर-शोर से प्रचार किया गया कि ये देश के बहुत बड़े हास्य कवि हैं। कवि सम्मेलन में हजारों की भीड़ भी जुटी, सारे कवियों के पढ़ने के बाद उस बहुत बड़े कवि को आखि़र में पढ़वाया गया। कवि सम्मेलन के मंच पर खड़ा होकर कवि महोदय ने लगभग 15 लतीफे और एक दस साल पुरानी कविता सुनाई और चल दिए। वहीं कई लोग आपस में चर्चा करते हुए सुने गए कि ऐसे लोगों को कवि कहना चाहिए या चुटकुलेबाज। हैरानी की बात यह है कि उस कवि महोदय ने जो कविता सुनाई वह कविता आयोजक संस्था द्वारा उसी दिन विमोचित की कई स्मारिका में भी प्रकाशित हुई थी। तुर्रा ये कि ऐसे महान कवि महोदय को जो पारिश्रमिक दिलाया गया वह अन्य सारे कवियों के कुल पारिश्रमिक से भी अधिक था। उस तथाकथिक चुटकुलेबाज कवि महोदय के अलावा अन्य तमाम कवियों ने भी हास्य-व्यंग्य की कविताएं सुनाईं, जिसे लोगों से बड़े चाव से सुना भी। इसलिए यह दलील समझ से परे है कि लोग चुटकुला सुनने आते हैं। ऐसे मामलों पर जब पर्दे के पीछे बात की जाती है तो हर कोई इसकी आलोचना करता है लेकिन खुलकर बोलने को कोई तैयार नहीं है। ख़ासकर मंच पर पढ़ने वाले कवियों में कमी यह है वे सिर्फ़ अपना फायदा देख रहे हैं, यही वजह है कि जब कोई कवि इसका विरोध करता है तो उसे एक-दो मुशायरों का लालच देकर उसका मंुह बंद करा दिया जाता है।
इस तरह के मामले साहित्य के लिए बेहद गंभीर हो गए हैं, क्योंकि यह बानगी भर है, अधिकतर जगहों पर ऐसे ही हो रहा है। कवि सम्मेलन के जिन मंचों को महादेवी,फि़राक़,निराला, पंत और नीरज जैसे कवियों ने सुशोभित किया है, वही मंच अब चुकटलेबाजों के सुपुर्द किये जा रहे हंै, ऐसे में जो लोग वास्तव में कविताएं लिख रहे हैं, वो कहां जाएंगे। और दूसरी ओर आम जनता के बीच यह मैसेज जा रहा है कि अब कविता लिखने वालों का अकाल पड़ गया है इसलिए अब कवि सम्मेलनों के मंच चुटकुलेबाजों के सुपुर्द हो गए हैं। ज़रूरत इस बात है कि बड़े कवि जिनके बात को नोटिस किया जाता है वे आगे आएं आयोजकों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि मंचों पर अच्छी कविता लिखने-पढ़ने वालों को ही आमंत्रित किया जाए। इसके साथ ही कवियों को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को दी जाए तो धंधेबाज न होकर साहित्य की अच्छी समझ रखने वाला हो। देशभर में ऐसे एक दर्जन से अधिक बड़े कवि-शायर हैं जो वास्तव में अच्छी शायरी कर रहे हैं और जिनके नाम पर लोग आते हैं, ऐसे कवि-शायर यदि मंच पर पढे़ जाने वाले चुटकुलों का विरोध करें तो काफी हद तक बात बन सकती है। लेकिन यहां भी समस्या वही है कि खुलकर सामने आने की हिम्मत कोई नहीं कर रहा है। साहित्य और कविता की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाया जाना बेहद ज़रूरी है।

 नाजि़या ग़ाज़ी
 संपादक-गुफ्तगू
                                    
                                                     

1 टिप्पणियाँ:

sharad ने कहा…

chand
lamhon main hi
ud gai
dulhan ke hothon ki
laali !
raksha
saude
main
dalali !!

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