अज़ीम देशभक्त थे शौकतउल्लाह अंसारी
- सरवत महमूद खान
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शौकतउल्लाह अंसारी |
डॉ. शाह शौकतउल्लाह अंसारी का शुमार ग़ाज़ीपुर के ऐसे लोगों में होता है, जिन्होंन उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी अपना जीवन देश को आज़ाद कराने और देश के साथ जिले को विकसित कराने में लगा दिया। आज़ादी के बाद तुर्की के काउंसलर नियुक्त किये गये थे, फिर वियतनाम भेजा गया था। इसके बाद सूडान के राजदूत बनाये गये। उन्हे अंतरराष्ट्रीय कमीशन के चेयरमैन भी बनाया गया था। बाद में उन्हें उड़ीसा का राज्यपाल बनाया गया था, जीवन के अंतिम पल तक इसी पद पर कार्यरत थे। इन्होंने अंतिम दम तक हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया है। जिसकी वजह से पूरे देश में इनकी एक अलग पहचान है। वे शिष्ट, सदाचारी और अमनपसंद व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी दानशीलता के किस्से शहर में मशहूर है। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए इनको कई बार जेल जाना पड़ा था।
डॉ. शौकत का जन्म 1908 में ग़ाज़ीपुर शहर के मियांपुर मुहल्ले में हुआ था। आप के वालिद अमजदुल्लाह अंसारी का शुमार गाजीपुर शहर के बहुत ही सम्मानित लोगों में होता था। इन्होंने अपने पुत्र शौकतउल्लाह को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पेरिस (फ्रांस) भेज था। जहां से शिक्षा पूरी करके लौटने के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल हो गए। उन दिनों इनका पूरा ख़ानदान पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका में शामिल था। आप डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी (अध्यक्ष इंडियन नेशनल कांग्रेस 1927 ई) के भांजे थे। अपने बहुमुखी प्रतिभा एवं शीर्ष नेताओं से घनिष्ठ संबंध के कारण आपकी गणना वरिष्ठ नेताओं में होने लगी। मुस्लिम राष्ट्रवादी नेताओं में आपका शुमार किया जाता था।
आपकी शादी 25 सितंबर 1936 को जोहरा अंसारी ( पुत्री नवाब असगर यार जंग) से हुई थी। जोहर अंसारी डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी की भतीजी थीं। हिन्दू-मुस्लिम एकता को कायम रखने और फिरकापरस्सती को खत्म करने के लिए उन्होंने ‘आल इंडिया मुस्लिम मजलिस’ का गठन किया। पंडित जवाहरलाल नेहरु से इनकी बहुत घनिष्ठता थी। नेहरू जी उन्हे अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे। इसलिए रसड़ा लोकसभा क्षेत्र से 1957 में कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया। उस समय इस लोकसभा सीट में गाजीपुर जनपद की दो विधानसभाओं कासिमाबाद और मुहम्मदाबाद का क्षेत्र भी शामिल था। इस चुनाव में डॉ. शौकत सरजू पाण्डेय (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ) से चुनाव हार गए थे। डॉ. शौकत ने धर्म-निरपेक्षता की एक मिसाल छोडी थी। कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान जुमा की नमाज का वक़्त हो गया था, सहयोगीयों ने सुझाव दिया कि जुमे की नमाज भी अदा कर लीजिए साथ ही मस्जिद से लोगों वोट देने की अपील भी कर दीजिए। इस पर डॉ. शौकत ने कहा कि नमाज तो वह ज़रूर अदा करेंगे, लेकिन वोट की अपील नही करेंगे क्योंकि यह धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है।
डॉ. शौकत वर्ष 1960 में वियतनाम और फिर सूडान के राजदूत बनाए गए और वहां से वापसी के बाद सन 1966 में उड़ीसा के राज्यपाल नियुक्त किए गए। 26 दिसम्बर 1972 को आपका दिल्ली में इंतिक़ाल हो गया था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कब्रिस्तान में आपको सुपुर्दे-खाक किया गया था। इनके बडे पुत्र डॉ. वहजत मुख्तार अंसारी लंदन में रहते है, जबकि मंझले पुत्र सतवत मुख्तार अंसारी और छोटे पुत्र तलअत मुख्तार अंसारी अमेरिका के निवासी हैं। गाजीपुर में उनके निवास स्थान ‘शौकत मंजिल’ (मुहल्ला-मियांपुरा शहर गाजीपुर ) को उनकी पत्नी और लड़कों ने मदरसा दीनीया को दान कर दिया था, जो आज भी उन्ही के नाम से मन्सूब है।
( गृफ़तगू के जुलाई-सितम्बर 2023 अंक में प्रकाशित)
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