शोध करने वालों के लिए ख़ास किताब
- अशोक अंजुम
यूं तो इम्तियाज अहमद गाज़ी के ख़ुद के लेखन के साथ-साथ अनेक पुस्तकें उनके संपादन में निकली हैं। अब उनकी एक नई किताब ‘21वीं सदी के इलाहाबादी’ नाम से प्रकाशित हुई है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है प्रस्तुत पुस्तक में इलाहाबाद की 106 उन प्रतिष्ठित हस्तियों का परिचय है, जिन्होंने वर्तमान में इलाहाबाद को एक विशेष पहचान दी। पुस्तक में संग्रहीत इलाहाबादी वे विशिष्ट व्यक्तित्व हैं जिनका या तो जन्म इलाहाबाद में हुआ है या जिनका कार्यस्थल इलाहाबाद रहा है। श्री गाज़ी ने किताब की भूमिका में स्पष्ट कर दिया है के 21 वीं शताब्दी से पहले के महत्वपूर्ण इलाहाबादी लोगों के बारे में पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है, अतः इस किताब में सिर्फ़ उन लोगों को शामिल किया गया है जो 21वीं शताब्दी में हैं, या रहे हैं। जिन लोगों का निधन सन् 2000 से पहले हो चुका है उनको इस पुस्तक में नहीं रखा गया है।
इम्तियाज अहमद गाज़ी स्वयं एक साहित्यकार हैं, विशेष रुप से उर्दू शायरी में अपना एक विशेष मुकाम रखते हैं, इसलिए लग सकता है कि इन्होंने इलाहाबाद के साहित्यकारों पर ही पुस्तक को केंद्रित रखा होगा, लेकिन वे साहित्यकार के साथ-साथ एक समर्थ पत्रकार भी हैं। इसलिए साहित्य के साथ संगीत, रंगमंच, चिकित्सा, फ़िल्म, खेल, पत्रकारिता, राजनीति आदि क्षेत्रों से चुने हुए विशिष्ट लोगों को भी इस पुस्तक में संजोया है। पुस्तक में साहित्यकारों की बात की जाए तो लक्ष्मीकांत वर्मा, अमरकांत, डॉ. जगदीश गुप्त, शम्सुर्रहमान फारुकी, सैयद अक़ील रिज़वी, डॉ मोहन अवस्थी, मार्कंडेय, नरेश मिश्र, अजीत पुष्कल, कैलाश गौतम, रामनरेश त्रिपाठी, दूधनाथ सिंह, हरीश चंद्र पांडे, डॉ ज़मीर अहसन, नीलकांत, फ़ज़्ले हसनैन, अली अहमद फातमी, श्रीप्रकाश मिश्र, नासिरा शर्मा, रमाशंकर श्रीवास्तव, यश मालवीय, रविनंदन सिंह, डॉ. नायाब बलियावी आदि के नाम आते हैं। कानून की दुनिया से न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त, न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, वी.सी. मिश्र और एस.एम.ए. काज़मी आदि और राजनीति से केसरीनाथ त्रिपाठी, डॉ. नरेंद्र कुमार सिंह गौर, कुंवर रेवती रमन सिंह, श्यामाचरण गुप्ता, अनुग्रह नारायण सिंह आदि। शिक्षा जगत से डॉ जगन्नाथ पाठक, लाल बहादुर वर्मा। फिल्म जगत से अमिताभ बच्चन, समाज सेवा से स्वामी हरिचौतन्य ब्रह्मचारी, सरदार अजीत सिंह पप्पू, लक्ष्मी अवस्थी आदि हैं। चिकित्सा जगत से पद्मश्री डॉ राज बवेजा, डॉ. कृष्णा मुखर्जी, डॉ. एस एम सिंह, डॉ .तारिक महमूद, डॉ पीयूष दीक्षित, डॉ प्रकाश खेतान, डॉ राजीव सिंह वगैरह। संगीत की दुनिया से रवि शंकर, मनोज कुमार गुप्ता, डॉ. रंजना त्रिपाठी आदि। पत्रकारिता की दुनिया से वी. एस. दत्ता, सुशील कुमार तिवारी, धनंजय चोपड़ा, प्रेम शंकर दीक्षित, मुनेश्वर मिश्र, रामनरेश त्रिपाठी, मानवेंद्र प्रताप सिंह, शरद द्विवेदी आदि। रंगमंच से अतुल यदुवंशी, डॉ अनीता गोपेश और मूंछ नृत्य के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ़ ‘दुकान जी’ हैं।
खेल जगत की बात करें तो क्रिकेट से मोहम्मद कैफ, उबैद कमाल और यश दयाल, शतरंज से पी.के चट्टोपाध्याय, स्क्वैश से दिलीप कुमार त्रिपाठी, वालीबॉल से प्रभात कुमार राय, बैडमिंटन से अभिन्न श्याम गुप्ता, हॉकी से पुष्पा श्रीवास्तव, दानिश मुज्तबा, जिमनास्टिक से आशीष कुमार आदि हस्ताक्षर हैं। किताब को हर लिहाज से संपूर्ण तो नहीं कहा जा सकता, कुछ नाम छूट गए, शायर भाग-2 में इसकी पूर्ति संभव हो। लेखक ने बहुत ही श्रमसाध्य कार्य किया है, इसमें दो राय नहीं। इलाहाबाद पर शोध करने वालों के लिए यह पुस्तक निश्चित रूप से यह नायाब तोहफ़ा है।
अंत में किताब की भूमिका के अंतर्गत नासिरा शर्मा जी के शब्दों में कहूंगा कि- ‘इम्तियाज गाज़ी साहब खुद शायर हैं इसलिए उनके दिल में दूसरे लिखने वालों के लिए आदर और सम्मान है। क्योंकि वह पत्रकार भी हैं और संस्थापक ‘गुफ़्तगू’ हैं, तो पत्रकारिता भी उनके मिज़ाज में मौजूद है, जिसकी वजह से उन्होंने इस काम का बीड़ा उठाया। मुझे विश्वास है कि जल्द ही भविष्य में वह इलाहाबाद पर एक और अंदाज़ से कुछ नयी और ज़रूरी किताब सामने लाएंगे। मेरी शुभकामनाएं हमेशा की तरह इस बार भी उनके साथ हैं। 240 पेज की इस सजिल्द पुस्तक को गुफ्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 500 रुपये है।
इफ़को की सफलता के सूत्रधार की जीवनी
- अजीत शर्मा ‘आकाश’
किसी लेखक द्वारा व्यक्ति विशेष के जीवन वृत्तान्त के साहित्यिक लेखन को जीवनी (बायोग्राफी) कहा जाता है। जीवनी में उस व्यक्ति विशेष के जीवन की वास्तविक कहानी होती है, जिससे पाठक को परिचित कराया जाता है। यह प्रामाणिक तथा सम्यक जानकारी पर आधारित होती है। इसमें उस व्यक्ति के गुण दोषमय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। ‘संघर्ष का सुख’ शीर्षक पुस्तक उर्वरक उद्योग की ख्यातिलब्घ सहकारी संस्था ‘इफ़को’ की सफलता के सूत्रधार डॉ. उदय शंकर अवस्थी के जीवन कर्म पर केन्द्रित है, जिसके लेखक अभिषेक सौरभ हैं। इस पुस्तक में लेखक ने अवस्थी के निजी और पेशेवर जीवन को लिपिबद्ध करने का प्रयास किया है, जिसके अंतर्गत अवस्थी के जीवन की सभी छोटी-बड़ी घटनाओं एवं उनके संघर्षों का विस्तारपूर्वक चित्रण करते हुए उनके विषय में यथासम्भव सभी तथ्यों की जानकारी प्रदान की है। पुस्तक को सथनी से बनारस, मंज़िल की तलाश, सहकारिता के संग, इफ़को की कमान, इक्कीसवीं सदी, सशक्त सहकारिता का नया अध्याय, सहकारिता के शिखर पर इफ़को, नैनो उर्वरक, ज़माने से आगे, अनुभव एवं उपसंहार-इन 11 खण्डों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक खण्ड में अनेक उप खण्ड भी हैं। इसमें बताया गया है कि अवस्थी अपनी जीवन-यात्रा के दौरान सम्मुख आयी चुनौतियों का निर्भीकतापूर्वक सामना करते हुए किस प्रकार अपने कर्तव्य पथ पर निरन्तर आगे बढ़ते रहे हैं। राजीव गांधी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक 9 प्रधानमंत्रियों तथा 36 मंत्रियों के शासन में सार्वजनिक क्षेत्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एक कुशल प्रबंधक के रूप में अवस्थी ने अपनी सम्पूर्ण क्षमता का प्रदर्शन किया है। वे 41 वर्ष की उम्र में भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे कम उम्र के सीएमडी बने। उनके विषय में बताया गया है कि वह जब एक बार कुछ करने का मन बना लेते हैं, तो चाहे परिस्थितियां कैसी भी विकट क्यों न हों, वे कभी पीछे नहीं हटते हैं। अपने कार्य-व्यवहार में उन्होंने सदैव सभी के प्रति पूर्ण निष्पक्षता एवं सद्व्यवहार का परिचय प्रदान किया। अपनी जानकारी एवं कुशल नेतृत्व क्षमता के बल पर वह कॉरपोरेट जगत में लीडर बने। अवस्थी के जीवन की अनेक उपलब्धियां हैं, जिनमें से प्रमुखतम उपलब्धि यह है कि उन्होंने 01 अगस्त, 2021 को विश्व का पहला नैनो उर्वरक ‘इफ़को नैनो-डीएपी (तरल)’ प्रस्तुत किया तथा 20 अक्टूबर, 2022 को पूरे विश्व के लिए इस क्रान्तिकारी उत्पाद का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन प्रारम्भ किया।
अवस्थी के एक भाषण में व्यक्त किये गये विचारों से उनका जीवन-दर्शन एवं जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि का परिचय प्राप्त होता है। इस भाषण के कुछ उल्लेखनीय अंश हैं- ‘‘एक साल बीतता है, दूसरा साल शुरू होता है। इस बीतने और शुरू होने के बीच एक कड़ी होती है। और वह कड़ी होती है हम लोगों का संकल्प, हमारा प्रयास, और लगातार उस संकल्प पर काम करने की इच्छा। यह इच्छाशक्ति ही है जो किसी देश को, किसी समाज को और किसी संस्था को ऊँचाई की तरफ़ ले जाती है। हमें सदैव सजग रहना है। हमें हर समय अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करते रहना है।......... हमारे सामने चुनौतियां और अवसर दोनों हैं।’’
‘राग दरबारी’ के रचनाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध कथाकार पद्मभूषण श्रीलाल शुक्ल जी अवस्थी के श्वसुर थे, जिनके 40 वर्षों के सान्निध्य से वह अत्यन्त प्रभावित रहे। अवस्थी को साहित्य एवं कला के प्रति भी अत्यन्त अनुराग था। उनके प्रयासों से इफ़को बोर्ड द्वारा श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में 2011 में ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ़को साहित्य सम्मान’ की स्थापना की गयी। यह सम्मान प्रति वर्ष हिन्दी के एक ऐसे लेखक को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन का चित्रण किया गया हो। इसमें पुरस्कार के तहत ग्यारह लाख रुपये की सम्मान राशि, प्रशस्ति-पत्र और स्मृति चिह्न प्रदान किया जाता है। पुस्तक के विषय में यह भी कहना है कि पुस्तक में जीवनीकार ने कुछ अन्य पक्ष को नज़रअन्दाज़ किया है, जिससे उसके चरित्र में कृत्रिमता सी परिलक्षित होती है। इसके अतिरिक्त कुछ अनावश्यक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करने से भी पाठक को कहीं-कहीं बोझिलता एवं उबाऊपन की अनुभूति होने लगने लगती है। जीवनीकार द्वारा यदि इन तथ्यों को दृष्टिगत रखा गया होता, तो पुस्तक में और अधिक रोचकता एवं स्वाभाविकता परिलक्षित होती। आशा है कि आगामी संस्करण में इन पक्षों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
पुस्तक के मध्य में उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक फ़ोटो हैं, जिनमें राजीव गांधी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक अनेक राजनेताओं तथा माननीय राज्यपाल, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, एवं अनेक मंत्रियों द्वारा तथा सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित एवं पुरस्कृत किये जाते हुए दर्शाया गया है। राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मुद्रण, गेटअप एवं साज-सज्जा अत्यन्त उच्च कोटि की है। 294 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक का मूल्य 795 रूपये है।
वर्तमान सामाजिक परिवेश की कहानियां
लेखक प्रमोद दुबे के कहानी-संग्रह ‘घोंसला’ में सामाजिक परिवेश से जुड़ी 44 कहानियां संग्रहीत हैं, जिनके माध्यम से विविध स्थितियों, परिस्थितियों एवं सामाजिक विसंगतियों का यथार्थ का चित्रण करने का प्रयास किया गया है। इनकी विषय वस्तु में सामाजिक कुरीतियों, गिरते हुए मानव मूल्यों एवं बिगड़ते हुए वर्तमान परिवेश को दर्शाने का प्रयास किया गया है और सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त अनेक विसंगतियों को पाठक के समक्ष लाने की चेष्टा की गयी है। एक अच्छे समाज के निर्माण हेतु कहानीकार द्वारा किया गया प्रयास इनमें परिलक्षित होता है।
गद्य की अन्य विधाओं की भांति हिन्दी कहानी भी आधुनिक युग की देन है। साहित्य की इस रोचक विधा में अधिकतर पाठकों की रूचि होती है। कारण यह कि रूचिकर कथानक, अच्छे संवाद एवं आसपास के ही पात्र एवं उनका चरित्र चित्रण उन्हें भाता है। इसके अतिरिक्त कहानी एक ही बैठक में पढ़ ली जाती है, जबकि उपन्यास, आख्यानों एवं महाकाव्यों को पढ़ने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। लेकिन एक कुशल कहानीकार अपनी कहानी में पात्रों के माध्यम से वह सब कुछ कह जाता है, जो पाठक के मन को आनन्दित करता है। वह पाठकों को अपनी कहानी के साथ निरन्तर बांधे रखता है। संग्रह की भूमिका के अन्तर्गत लेखक का यह कथन कि ‘‘मुझे कहानी लेखन की विधा नहीं आती है।’’ उसे एक रचनाकार के दायित्व से मुक्त नहीं कर देता है। वास्तविकता तो यह है कि महान से महान रचनाकार को भी प्रारम्भ में लेखन विधा नहीं आती है, किन्तु समर्पित होकर स्वाध्याय तथा मनन-चिन्तन द्वारा अपनी विधा में अधिकाधिक ज्ञान अर्जित कर एक दिन वह महान रचनाकार बन जाता है।
‘घोंसला’ संग्रह की कहानियां विविध मनोभाव लिए हुए हैं, जिनमें मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करने का प्रयास किया गया है। कुछ कहानियां घटना प्रधान एवं चरित्र प्रधान हैं, तो कुछ वातावरण प्रधान एवं भाव प्रधान हैं। कहानियों के पात्र देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार निर्मित किये गये हैं। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘घोंसला’ पक्षियों और पर्यावरण की चिन्ता को लेकर लिखी गयी है। संग्रह की कहानियां आज के परिवेश तथा वातावरण की हैं जिनका कथानक रिश्तों में भ्रम, ज़िंदगी की कश्मकश, अत्यधिक महत्वाकांक्षा, परम्परागत वैवाहिक संस्था की कमियां, प्रेम विवाह का अनिश्चित भविष्य, अशिक्षा, जातिवाद और अन्तहीन संघर्ष जैसे विषयों को अपने में समेटे हुए हैं। विषयवस्तु समसायिक होने के कारण रूचिकर प्रतीत होती है। कुल मिलाकर सामाजिक विषयों को उठाने एवं समाज को जागृत करने के उद्देश्य से लिखी गयी ये कहानियाँ सराहनीय कही जायेंगी। संग्रह को पढ़ा जा सकता है। गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित 112 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 150 रूपये है।
सृजनात्मकता को उजागर करती कविताएं
डॉ. मधुबाला सिन्हा के ‘ढाई बूंद’ कविता-संग्रह में 41 रचनाएं सम्मिलित हैं, जिन में प्रमुख रूप से प्रेम के उदात्त मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को उभारने की चेष्टा की है। संग्रह की कविताएं सामान्य स्तर की हैं। वर्ण्य विषय की दृष्टि से इन रचनाओं में श्रृंगार एवं प्रणय, वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन की अनुभूतियों तथा संवेदनाओं, सामाजिक यथार्थ एवं सामाजिक सरोकार, स्त्री के भीतर की कोमल भावनाएँ, तथा आम आदमी की व्यथा आदि को स्पर्श करते हुए दुख-दर्द एवं विषाद को भी समेटने का प्रयास किया गया है। रचनाओं में यत्र-तत्र जीवन में बिखरे हुए अन्य अनेक रंग भी सामने आते हैं। संग्रह की अधिकतर रचनाएँ संयोग एवं वियोग श्रृंगार विषयक हैं।
कविताओं में प्रेम के विभिन्न पक्षों, संबंधों, विसंगतियों तथा व्यक्त और अव्यक्त प्रेम की अभिव्यक्तियों का चित्रण किया गया है तथा वे समय एवं व्यक्ति के द्वन्द्व को उकेरती हुई समाज से संवाद एवं संघर्ष करती सी प्रतीत होती हैं। संग्रह की कुछ कविताओं के अंश प्रस्तुत हैं-दिल की बात/बहुत निराली/भरा हुआ/तो कभी है खाली (‘दिल’)। और मैं भी तो बह ही रही हूँ/नदी की तरह/जन्म जन्मांतर से (‘नदी’)। बिखरे दरके टूटे-फूटे/बदरंग लम्हों में/फिर से/जान भरना चाहती हूँ (‘जीना चाहती हूँ’)। साँप और सीढ़ी का खेल/खेल रही है/जिंदगी (‘खेल’)। बेटी/रात की रानी है/सुबह की मखमली हवा है/गुनगुनी धूप है/जाड़े की (‘बेटी’)। यह जो हम सब झेल रहे हैं/इसी को जीवन कहते हैं क्या (‘जीवन’)। रचनाओं में अधिकतर सरल एवं सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है, किन्तु कहीं-कहीं भाषा एवं व्याकरण एवं वर्तनीगत अशुद्धियाँ परिलक्षित होती हैं। यथा, ख़्यालात, उष्मा, काट लिया कितने काले दिन, शोहरत की लालच, छलनामयी जीवन, सम्वेदनशीलता तथा तुम्हें के साथ तेरा का प्रयोग किया जाना आदि। अनेक स्थानों पर ‘न’ के स्थान पर ‘ना’ का प्रयोग किया गया है। कहा जा सकता है कि संकलन की रचनाएँ मनोभावों को व्यक्त करने में काफ़ी हद तक सफल रही हैं। महिला लेखन के क्षेत्र में कवयित्री का यह प्रयास स्वागत योग्य तथा सृजनशीलता सराहनीय है। सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित 104 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 250 रूपये है।
लोकप्रिय फ़िल्म अभिनेत्री साधना की दास्तान
सुविख्यात लेखक प्रबोध कुमार गोविल से हिंदी जगत भली-भांति परिचित है। उपन्यास, कहानी संग्रह, संस्मरण एवं लघुकथाओं आदि की उनकी अनेक पुस्तकें पाठकों के समक्ष आ चुकी हैं। ‘‘ज़बाने यार मनतुर्की’’ सन 1960 के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं विलक्षण प्रतिभाशाली फ़िल्म अभिनेत्री साधना की फ़िल्मी अभिनय-यात्रा एवं जीवन संघर्षों से पाठकों को परिचित कराने वाली उनकी एक अनूठी पुस्तक है। लेखक प्रबोध कुमार गोविल के अनुसार साधना की जीवनी सिंधी और अंग्रेज़ी भाषा में पहले प्रकाशित हुई थी, जिसके विषय में साधना ने कहा था- मैंने शोहरत, दौलत और चाहत हिन्दी से पाई है, मुझे अच्छा लगेगा अगर मेरी कहानी हिन्दी में आए। वर्ष 2015 में उनकी मृत्यु के पांच साल बाद उनकी ये इच्छा पूर्ण करने के लिए यह पुस्तक लिखी गयी। पुस्तक का शीर्षक ‘‘ज़बाने यार मनतुर्की’’ एक फ़ारसी कहावत ‘‘ज़बाने यारे मनतुर्की ओ मनतुर्की नमी दानम’’ का एक अंश है, जिसका अर्थ है, ‘‘मेरे दोस्त की ज़बान तुर्की है और में तुर्की ज़बान जानता नहीं’’। शीर्षक से यह ध्वनित होता है कि साधना के जीवन एवं उसके मनोभावों को उनके दर्शक, प्रशंसक तथा फ़िल्मी दुनिया के लोग समझ नहीं पाये।
कथावस्तु के अनुसार पुस्तक को 19 शीर्षकों में विभक्त किया गया है, जिनके माध्यम से उनकी सम्पूर्ण कहानी कही गयी है। साधना (1941-2015) का पूरा नाम साधना शिवदासानी था। वर्ष 1960 में उनकी पहली ही फिल्म ‘लव इन शिमला’ सुपरहिट हुई। फ़िल्मों का यह दौर नरगिस और मधुबाला की लोकप्रियता के उतार का दौर था। वर्ष 1960 का फ़िल्मी दशक एक प्रकार से साधना के ही नाम था। ख़ूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्री साधना के अभिनय की अवधि लगभग पन्द्रह साल रही। पुस्तक बताती है कि कोई लोकप्रिय कलाकार चोटी का फिल्मस्टार ऐसे ही नहीं बन जाता, बल्कि इसके लिए प्रतिभा, लगन और ज़ुनून की ज़रूरत होती है। वह नयी पीढ़ी की फ़ैशन आइकॉन बन गयीं। उनका केश विन्यास ‘साधना कट’ हेयर स्टाइल के रूप में शहर-शहर, बस्ती-बस्ती, गली-गली और घर-घर में लोकप्रिय हो गया। दरअसल साधना का माथा बहुत चौड़ा था उसे कवर किया गया बालों से, उस स्टाइल का नाम ही पड़ गया “साधना कट”। फ़िल्मों में पहना गया उनका चूड़ीदार पायजामा भी देश भर का फ़ैशन बन गया। साधना को थायरॉयड की बीमारी हो गयी थी, जिसके कारण वह अपने गले में बँधी पट्टी को छिपाने के लिए वह गले में दुपट्टा बाँध लेती थी। उस दौर की लड़कियों ने इसे भी फैशन के रूप में लिया था। साधना की मेकअप आर्टिस्ट पंडरी जुकर का साधना के बारे में कहना था, कि उन्हें मेकअप की ज़रूरत कहाँ थी ? वो तो वैसे ही दमकती थीं।
पुस्तक में लिखा है कि अपनी सफल फ़िल्मों में साधना ने हिन्दी और उर्दू के मेल से उपजी एक ऐसी तहज़ीब का माहौल बनाया, जिसे अपने बोलने-चालने, पहनने-ओढ़ने में नयी पीढ़ी दिल से अपनाने लगी। संवाद अदायगी में उनकी आवाज़ का उतार-चढ़ाव, वाक्यों पर ज़ोर देने का तरीका भी उनकी पहचान बना। लेकिन, साधना का शुरुआती समय जितना शानदार था उनका अन्तिम समय उतना ही दुःख भरा था। पति आरके नय्यर की मृत्यु के बाद वह जिस घर में रहती थीं उस पर कोर्ट केस हो गया था। लम्बे संघर्ष के बीच 25 दिसंबर 2015 को साधना का निधन हो गया था। एक्ट्रेस के अंतिम संस्कार में भी कम ही लोग पहुंचे थे।
सम्पूर्ण उपन्यास अत्यन्त सधी हुई एवं प्रवाहमयी भाषा एवं रोचक शैली में लिखा गया है। पढ़ते समय पाठकों के समक्ष साधना के जीवन से जुड़ी हर एक घटना सामने आती-जाती रहती है और पाठक उसमें डूब-सा जाता है। जिज्ञासा एवं कौतूहलवश वह एक के बाद दूसरा पन्ना पढ़ता जाता है। पुस्तक का मुद्रण एवं अन्य तकनीकी पक्ष उच्चकोटि का है। कवर पृष्ठ आकर्षक है। बोधि प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित 144 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 150 रुपये है।
समाज और ज़िन्दगी की शायरी
शुजाउद्दीन शाहिद के काव्य संग्रह ‘सौग़ात मोहब्बत की’ में उनकी ग़ज़लों के अलावा कुछ कविताएं और मुक्तक संकलित हैं, जो समाज की आज की स्थिति को दर्शाती हैं। रचनाओं का वर्ण्य विषय प्रमुखतः आज के जीवन की आपाधापी एवं भाग-दौड़, सामाजिक विसंगतियाँ, अन्तर्मन की पीड़ाएं एवं आज के सरोकार आदि हैं। साथ ही, प्रेम तथा श्रृंगार विषयक रचनाएं भी हैं। शायर की सोच से जुड़ी हुई शायरी अपने अन्दर और बाहर के दर्द को बयां करती है। इस काव्य संग्रह में रचनाकार ने वर्तमान युग की विसंगतियों को सामने लाने का प्रयास किया है। संग्रह की रचनाओं में वर्तमान युग की विसंगतियों एवं सामाजिक विडम्बनाओं को उकेरने का प्रयास किया गया है। जीवन में व्याप्त संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किये गये हैं। श्रृंगार एवं प्रेम विषयक रचनाएं शायर के अन्तर्मन के भावों को प्रकट करती हैं। ग़ज़लों के कुछ उल्लेखनीय शेर प्रस्तुत हैं -‘बोलकर झूठ बच गये हम भी/ काम अपने ये सियासत आई।, ‘सुलगती आग का एहसास तो है/ धुआं क्यों जिस्म से उठता नहीं है।’, ‘एक ही घर में रहें बरसों मुलाकात न हो/ लोग इस शहर में ऐसे भी जिया करते हैं।’ कविताओं एवं नज़्मों में भी ज़िन्दगी के बारे में शायर की सोच उजागर होती है। कुछ प्रमुख अंश इस प्रकार हैं -‘ कतार बस की ट्रेनों में भीड़ क्या कहिये/ तुम्हारा शहर अजब सा शहर है क्या कहिये।’ (तुम्हारा शहर), ‘कितने चेहरे हैं मुस्कुराहट के/ मुस्कुराहट है रूह की ख़ुशबू।’ (मुस्कान)
ग़ज़ल-व्याकरण की दृष्टि से कुछ ग़ज़लों में ऐबे तनाफ़ुर, ऐबे शुतुरगुरबा के अतिरिक्त कहीं-कहीं क़ाफ़िया दोष तथा भरती के शब्द जैसे दोष हैं। वर्तनीगत एवं प्रूफ़ सम्बन्धी अशुद्धियों की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। फिर भी, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि काव्य संग्रह की रचनाएं सराहनीय हैं। पुस्तक पठनीय है। परिदृश्य प्रकाशन, मुंबई द्वारा प्रकाशित 104 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 125 रुपये मात्र है।
(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2023 अंक में प्रकाशित )
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें