मंगलवार, 14 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कैलाश गौतम की भोजपुरी कविता


सिर फुटत हौ, गला कटत हौ, लहू बहत हौ, गान्ही जी
देस बंटत हौ, जइसे हरदी धान बंटत हौ, गान्ही जी।
बेर बिसवतै ररूवा चिरई रोज ररत हौ, गान्ही जी
तोहरे घर क रामै मालिक सबै कहत हौ, गान्ही जी।
हिंसा राहजनी हौ बापू, हौ गुन्डई, डकैती हरउै
देसी खाली बम बनूक हौ, कपड़ा घड़ी बिलैती, हउवै
छुआछूत हौ, उंच नीच हौ, जात-पांत पंचइती हउवै
भाय भतीजा, भूल भुलइया, भाषण भीड़ भंड़इती हउवै
का बतलाई कहै सुनै में सरम लगत हौ, गान्ही जी
अइसन तारू चटकल अबकी गरम लगत हौ, गान्ही जी
गाभिन हो कि ठांठ मरकही भरम लगत हौ, गान्ही जी।
जे अललै बेइमान इहां उ डकरै किरिया खाला
लम्बा टीका, मधुरी बानी, पंच बनावल जाला
चाम सोहारी, काम सरौता, पेटैपेट घोटाला
एक्को करम न छूटल लेकिन, चउचक कंठी माला
नेना लगल भीत हौ सगरों गिरत परत हौ गान्ही जी
हाड़ परल हौर अंगनै अंगना, मार टरत हौ गान्ही जी
झगरा क जर अनखुन खोजै जहां लहत हौ गान्ही जी
खसम मार के धूम धाम के गया करत हौ गान्ही जी
उहै अमीरी उहै गरीबी उहै जमाना अब्बौ हौ
कब्बौ गयल न जाई जड़ से रोग पुराना अब्बौ हौ
दुसरे के कब्जा में आपन पानी दाना अब्बौ हौ
जहां खजाना रहल हमेसा उहै खजाना अब्बौ हौ
कथा कीर्तन बाहर, भीतर जुआ चलत हौ, गान्ही जी
माल गलत हौ दुई नंबर क, दाल गलत हौ गान्ही जी
चार गलत, चउपाल गलत, हर फाल गलत, हौ गान्ही जी
ताल गलत, हड़ताल गलत, पड़ताल गलत हौ गान्ही जी।
घूस पैरवी जोर सिफारिश झूठ नकल मक्कारी वाले
देखतै देखत चार दिन में भइलैं महल अटारी वाले
इनके आगे भकुआ जइसे फरसा अउर कुदारी वाले
देहलैं खून पसीना देहलैं तब्बौं बहिन मतारी वाले
तोहरै नाव बिकत हो सगरों मांस बिकत हौ गान्ही जी
ताली पीट रहल हौ दुनियां खूब हंसत हौ गान्ही जी
केहु कान भरत हौ केहू मंूग दरत हौ गान्ही जी
कहई के हौ सारे धोवाइल पाप फरत हौ गान्ही जी।
जनता बदे जयन्ती बाबू नेता बदे निसाना हउवै
पिछला साल हवाला वाला अगला साल बहाना हउवै
आजादी के माने खाली राजघाट तक जाना हउवै
साल भरे में एक बेर बस रघुपति राघव गाना हउवै
अइसन चढ़ल भवानी सीरे ना उतरत हौ गान्ही जी
करिया अच्छर भंइस बरोब्बर बे लिखत हौ गान्ही जी
एक समय क बागड़ बिल्ला आज भगत हौ गान्ही जी।





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