सोमवार, 29 सितंबर 2025

 ग़ज़ल लेखन की दिशा में सार्थक प्रयास

                                                                   -अजीत शर्मा ‘आकाश’       

  


रचनाकार ‘ख़ुरशीद खैराड़ी के ग़ज़ल संग्रह ‘दुआएं बेअसर हैं’ में उनकी 90 ग़ज़लें संग्रहीत हैं, शिल्प की दृष्टि से गज़लकार ने इस विधा के मानदण्डों को पूरा करने का प्रयास किया है। क़ाफ़िया, रदीफ़ एवं बह्रों को लेकर सतर्कता एवं सावधानी का परिचय प्रदान किया गया है। उर्दू के कुछ कठिन शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, पाठकों की सुविधा के लिए जिनका अर्थ ग़ज़ल के नीचे फ़ुटनोट में दिया गया है। कथ्य की दृष्टि से पुस्तक के वर्ण्य-विषय प्रेम-श्रृंगार, आज के युग की विडम्बना, सामयिक समस्याएं-भूख, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, सियासत, अन्याय, उत्पीड़न, शोषण एवं अत्याचार का विरोध, जीवन की विसंगतियाँ, पीड़ाएं, चिन्ताएं और उनका समाधान इत्यादि हैं। पुस्तक का कथ्य हमारे समय के समाज के अनेक पहलुओं को स्पर्श करते हुए जीवन के प्रति आशावाद के दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है। कुछ ग़ज़लों के कथ्य में आधुनिक बोलचाल एवं व्यवहार की झलक भी प्रतिबिम्बित होती है।

 पुस्तक में संग्रहीत कुछ ग़ज़लों के अंश इस प्रकार से हैंः-गुदगुदाती है हवा फागुन की/तेरा एहसास लिये बैठे हैं।......हिज्र की रात गुज़रती ही नहीं/एक लम्बी सी टनल लगती है।...... लियाक़त मेरी जानता है वो कामिल/मेरे ही मुताबिक़ मुझ रोल देगा।...... हाँ कठिन था मगर कट गया/ चलते-चलते सफ़र कट गया। सवाल पत्थर, जवाब पत्थर, चुका रहा है हिसाब पत्थर। ...... जाल गर्मी का बिछाया धूप ने/ जानलेवा ज़ुल्म ढाया धूप ने।...... हर इक बशर है परेशाँ हर इक जिगर बेकल/न शाम है न सवेरा निज़ाम काला है।’ ग़ज़ल-संग्रह में कर रहा, फ़क़त तू, वीर रानी, ढाल लिया, जैसे प्रयोगों के कारण ग़ज़लों में ऐबे तनाफ़ुंर एवं कहीं-कहीं तक़ाबुले रदीफ़ के दोष भी परिलक्षित होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थानों पर वर्तनीगत विशेषकर अनुस्वार सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी हैं, जिन्हें प्रूफ़ रीडिंग के माध्यम से दूर किया जा सकता था। कुल मिलाकर ग़ज़ल विधा के विकास एवं उन्नयन की दिशा में रचनाकार द्वारा किया गया यह सृजन कार्य सराहनीय कहा जा सकता है। गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित 112 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 300 रूपये है।


‘पत्थर बोले देर तलक’ सराहनीय ग़ज़ल संग्रह


शायर अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ की पुस्तक ‘पत्थर बोले देर तलक' उनका दूसरा ग़ज़ल-संग्रह है, जिसमें उनकी 112 ग़ज़लें संग्रहीत हैं। संग्रह की इन ग़ज़लों में अत्यन्त संजीदगी से उन्होंने अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति करने का प्रयास किया हैं। कथ्य की दृष्टि से पुस्तक में संग्रहीत ग़ज़लें आधुनिक युगबोध, समसामयिक विषयों, आम आदमी की पीड़ाएं, वर्तमान समय की विडम्बनाएं, बढ़ते हुए शहरीकरण तथा गाँवों की तस्वीर, प्रकृति और पर्यावरण की चिन्ता, राजनैतिक गिरावट जैसे आधुनिक और सामाजिक बिन्दुओं को चित्रित करने के साथ ही सामाजिक सरोकारों की पैरवी भी करती हैं। ग़ज़लों में भारतीय जीवन के रंग तथा परम्पराओं को दर्शाते हुए मिथकों का प्रयोग भी किया गया है। इसके साथ ही इनमें प्रेम, श्रृंगार, रूमानियत की बात भी कही गयी है। भाषाई स्तर पर इन ग़ज़ल रचनाओं की भाषा गंगा-जमुनी तहज़ीब की सरल, सहज एवं बोधगम्य है। सामान्य बोलचाल के शब्दों के साथ ही पदचाप, परिमाप, क्षरण, नक़दीकरण, मधुप जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग किया गया है, तो रेंट, किचन, गिटार, मैथ, टॉपिक जैसे प्रचलित अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग भी है। हिन्दी मुहावरों का प्रयोग भी कहीं-कहीं है। पुस्तक में संग्रहीत ग़ज़ल-रचनाओं के कुछ उल्लेखनीय अंश प्रस्तुत हैं-

बहुत ख़ामोश रहती हैं हवाएँ/कटा जब से यहाँ बरगद पुराना।...... इक बड़ा हाशिया रह गया/जाने क्या अनलिखा रह गया।...... आऊँगा मैं इक दिन वापस/घर-दीवार सजाये रखना।...... मोबाइल से ख़त की लुटिया डूब गई/क़ासिद का भी अब नज़राना बन्द हुआ।...... कहूँ कैसे गया वो दूर मुझसे/अभी मुझमें वो थोड़ा-सा बचा है।

    ग़ज़ल-व्याकरण की दृष्टि से देखा जाए तो रचनाकार ने ग़ज़ल-विधा की मूलभूत शर्तों का भली-भाँति पालन किया है, तथा इस ओर अपनी विशेष सजगता का परिचय प्रदान किया है, तथापि कुछ रचनाएँ दोषयुक्त भी परिलक्षित होती हैं। यथा- ऐबे-तनाफ़ुर- मिसरे में किसी शब्द के अंतिम अक्षर की उसके बाद वाले शब्द के पहले अक्षर से समानता, यथा- कर$रहा, खेत$तेरे, हार$रहे, लग$गया, किस$सितारे, सुगम$मेरा, मगर$रात आदि। तक़ाबुले रदीफ़- ग़ज़ल के मतले के अतिरिक्त किसी और अन्य शेर के पहले मिसरे में अन्त में यदि ऐसी मात्रा (ध्वनि) हो जो रदीफ़ की मात्रा (ध्वनि) से मेल खाए तो शेर में तकाबुल-ए-रदीफैन का दोष आ जाता है। संकलन की ग़ज़ल सं0 3, 4, 21, 39, 43, 44 आदि में यह दोष है। ऐबे-शुतुरगुरबा- एक ही शे’र में जब किसी को दो संबोधन जैसे- ’आप और ’तुम’या ‘तुम’ और ‘तू’ दिए जाएँ तो यह शुतुरगुरबा दोष कहलाता है। पुस्तक की ग़ज़ल सं0 10, 17, 35, 44, 50, 53, 84, 112 आदि में यह दोष है। किसी भी हालत में रचनाकार को इससे बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त ‘कि’, ‘दोस्तो’ जैसे भरती के शब्दो से भी बचा जाना चाहिए। भाषा-व्याकरण के अनुसार कर$के का प्रयोग अशुद्ध माना गया है।

 कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ का यह ग़ज़ल संग्रह पठनीय एवं सराहनीय है। ग़ज़ल विधा को ऐसे संवेदनशील एवं सशक्त रचनाकारों से बहुत आशाएँ एवं अपेक्षाएँ रहती हैं। लिटिल बर्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित 130 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 360 रूपये है।


     दोहा सृजन का सार्थक प्रयास


 रीता सिवानी की पुस्तक ‘जीवन का उत्कर्ष’ उनके द्वारा लिखे गये दोहों का संग्रह है। संग्रहीत दोहे सामान्य कोटि के हैं, जिनका वर्ण्य विषय आध्यात्मिक, सामाजिक एवं समकालीन समयबोध है। आज के मानव में भौतिक सुख-समृद्धि की अत्यधिक चाहत, बढ़ता हुआ बाज़ारवाद, पर्यावरण और जीवन की चुनौतियों आदि को दोहों का वर्ण्य विषय बनाया गया है। साथ ही स्त्री-विमर्श के सामाजिक यथार्थ को भी दोहों में सम्मिलित किया गया है। पुस्तक में अधिकतर दोहे धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के लिखे गये प्रतीत होते हैं। देखने में दोहा-लेखन बहुत आसान प्रतीत होता है, किन्तु शिल्प की दृष्टि से इसे रचने में बहुत सावधानी बरतनी होती है। वस्तुतः काव्यशास्त्र के अनुसार दोहा चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक शास्त्रीय छन्द है, जिसके पहले और तीसरे विषम चरणों में 13 तथा दूसरे और चौथे सम चरणों में 11 मात्राएँ होती हैं। सम चरण तुकांत होते हैं एवं इनका अंत दीर्ध लघु से होता है। प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंशः- भक्ति भाव से कीजिए, मन से उनका ध्यान/छप्पन भोगों के नहीं भूखे हैं भगवान।...... पॉलिथीन से हो रहा, है दूषित संसार/चलिए इसके त्याग पर हम सब करें विचार।......रंग हरा देता हमें, हरियाली का सार/सुखमय जीवन के लिए, हरा रखो संसार।......एक बार की हार से होना नहीं निराश/निश्चित होगी जीत भी, करते रहो प्रयास। ......अपने सुख की चाह में, अपनों से ही घात/बद से बदतर हो रही, रिश्तों की औक़ात।

 संग्रह का कथ्य विविधता लिए हुए है एवं इसका भाव पक्ष सराहनीय है। कुल मिलाकर दोहों के सृजन एवं विकास की दिशा में रचनाकार की सृजनशीलता एवं रचनाधर्मिता सराहनीय है तथा दोहा सृजन की दिशा में इसे एक सार्थक प्रयास कहा जा सकता है। गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित 220 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 200 रुपये है।


नव रचनाकारों के लिए उपयोगी पुस्तक


 ग़ज़ल-रचनाकारों को इस विशिष्ट विधा की सम्यक् जानकारी का होना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य माना गया है, जिससे इस विधा के स्वरूप में विकृति का समावेश न होने पाये। पूर्व में इस विषय से सम्बन्धित हिन्दी भाषा में लिखी गयी पुस्तकों का नितान्त अभाव था, जिसके कारण हिन्दी में ग़ज़ल कहने वालों को विशेष कठिनाई का अनुभव होता था। बाद में इस बिन्दु को दृष्टिगत रखते हुए ग़ज़ल के शास्त्रीय स्वरूप की जानकारी रखने वाले लेखकों एवं शायरों द्वारा ग़ज़ल व्याकरण को लेकर हिन्दी भाषा में पुस्तकें लिखी गयीं, जो ग़ज़ल-लेखन सीखने वालों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई।

  अनुपिंदर सिंह अनूप की प्रस्तुत पुस्तक ‘ग़ज़ल का गणित’ ग़ज़ल व्याकरण से सम्बन्धित है। इसमें ग़ज़ल-लेखन की शुरूआत करने वाले नये रचनाकारों को बह्रें सीखने का तरीका बताने का प्रयास किया गया है। लेखक के अनुसार नये ग़ज़ल लेखकों के बह्रों के डर को कम करने के लिए यह आसान पुस्तक लिखी गयी है। इसके अन्तर्गत मशहूर फ़िल्मी गीतों या रिकार्डिड ग़ज़लों की धुन पर तथा गीत गुनगुनाकर या गा कर लिखना सिखाया गया है। इसके साथ ही बह्रों की नाप-तौल के लिए शेअरों की तक़तीअ करना भी बताया है। पुस्तक के प्रारम्भ में गुरू/लघु की जानकारी दी गयी है। ‘ग़ज़ल क्या है’ के अन्तर्गत क़़ाफ़िया-रदीफ़ आदि तकनीकी शब्दों की जानकारी है। ग़ज़ल की बह्र में प्रयुक्त होने वाली गिनती तथा बह्र क्या है, इस विषय में प्रारम्भिक जानकारी दी गयी है।

      पुस्तक के मुख्यांश में प्रचलित बह्रों के अन्तर्गत हज़ज, रमल, खफ़ीफ, मज़ारिआ, मुजतस, कामिल, रजज़, मुतकारिब, मुतदारिक जैसी बह्रों का संक्षिप्त सामान्य परिचय एवं इनमें रचित विभिन्न फ़िल्मी गीतों के उदाहरण दर्शाये गये हैं। अन्त में सम्बन्धित बह्र का उदाहरण देते हुए उसकी तक़तीअ/पड़ताल करने का तरीक़ा भी बताया गया है। लेखक ने विभिन्न शेरों के उद्धरणों के साथ ग़ज़ल के शास्त्रीय स्वरूप के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है। इस दृष्टि से ग़ज़ल के नव रचनाकारों के लिए एतद् विषयक उपयोगी सामग्री इस आलेख में समाहित की गयी है। ग़ज़ल की बह्रों के विषय में भी पुस्तक के अन्तर्गत बताते हुए विस्तृत जानकारी के लिए अरूज़ या छन्द के किसी ग्रन्थ की सहायता लिये जाने हेतु भी कहा गया है। कुल मिलाकर नव ग़ज़लकारों के लिए ग़ज़ल का गणित पुस्तक को उपयोगी कहा जा सकता है। अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 140 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 199 रूपये है।

(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2025 अंक में प्रकाशित )


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