शनिवार, 4 अगस्त 2012

कवि दंपति का एक साथ जाना रुला गया


                                                   - नाजि़या ग़ाज़ी
इलाहाबाद में एक महीने के अंदर ही एक कवि दंपति इस दुनिया से विदा हो गए। यह घटना जहां साहित्य के एक बड़ी छति है, वहीं दिवंगत परिवार के लिए गहरे सदमे की बात है। इस दंपति के बच्चों पर जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है। ऐसे में इन बच्चों के लिए सिर्फ यही प्रार्थना की जा सकती है कि ईश्वर इन्हें ऐसा दुख सहन करने का सामथ्र्य दे। जिस दंपति के निधन की बात की जा रही है वे हैं सुरेन्द्र नाथ ‘नूतन’ और कुसुम श्रीवास्तव। कुसुम श्रीवास्तव कवयित्री थी, जिनका एक काव्य संग्रह ‘पगडंडी सांसों की’ प्रकाशित हुआ और काफी चर्चा में रहा, हालांकि विवाह से पहले उन्होंने ‘वर्तिका’ नामक पत्रिका का संपादन भी किया था। श्रीमती श्रीवास्तव का नौ जुलाई 2012 को लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ। इस दंपति के दो पुत्र व एक पुत्री है। पु़त्री का विवाह कानपुर में हुआ है। एक पुत्र अमेरिका और दूसरा दिल्ली में नौकरी करता है। मां के निधन का समाचार सुनकर पूरा परिवार एकजुट हुआ था, अभी मां की यादों में गुमशुम थे, ’तेरही’ की रस्म करने के बाद परिवार अपने आपको को दुख से उबारने की कोशिश करा रहा था। तभी 04 अगस्त की सुबह भले-चंगे दिखने वाले सुरेन्द्र नाथ ‘नूतन’ का निधन हो गया। शायद वे अपनी पत्नी ने बिछड़ने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाये और पत्नी से मिलने के लिए स्वर्गलोग की यात्रा का निर्णय ले ही लिया।
लंबी उन्मुक्त काया, उन्नत और प्रशस्त ललालट, चश्मे के भीतर पारखी नेत्र, वाॅलीबाल और लेखनी के क्रीड़ा करने वाले हाथ, मधुरवाणी, हल्का सांवला वर्ण, मृदुल व्यवहार आदि के संयोग से जिस व्यक्ति की छवि उभरती थी, उस व्यक्ति का नाम था सुरेंद्र नाथ ‘नूतन’। सन 1930 में इलाहाबाद के फूलपुर कस्बे के एक कायस्थ परिवार में जन्मे श्री नूतन ने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हासिल की और हिन्दी साहित्य सम्मेलन से ‘साहित्य रत्न’ की भी उपाधि अर्जित की। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वालीबाॅल टीम के कैप्टन बने और कालान्तर में प्रदेश और देश का भी प्रतिनिधित्व किया। 1962 में इनका काव्य संग्रह ‘मधूलिका’ प्रकाशित हुआ। अमेरिका प्रवास के दौरान उन्होंने खंड काव्य ‘वीरांगना झलकारी’ लिखा, वर्ष 2000 में काव्य संग्रह ‘तैरते दीप’, 2003 में खंड काव्य ‘वीर मंगल पांडेय’ 2005 में मुक्तक संग्रह ‘मोगरे के फूल’, 2007 में गीत संग्रह ‘पंख खोलते गीत’ और 2010 में उनका समग्र साहित्य ‘चलती है पीछे-पीछे परछाईं मेरी’ प्रकाशित हुआ। साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ का अक्तूबर-दिसंबर-2011 अंक श्री सुरेन्द्र नाथ ‘नूतन’ विशेषांक रूप में प्रकाशित हुआ है। इस अंक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी के विभागध्यक्ष डाॅ. राम किशोर शर्मा, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. हरिराज सिंह, डाॅ. सुरेंद्र वर्मा, अमरनाथ श्रीवास्तव और गुफ्तगू पत्रिका के मुख्य संरक्षक इम्तियाज अहमद गाजी के समीक्षात्मक लेख भी प्रकाशित हुए थे, इन लेखों में इन विद्वानों ने नूतन जी के रचना संसार का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी उनके बारे में लिखते हैं-‘स्वाभाव के सरल, हंसमुख और मिलनसार श्री नूतन जी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी हैं, अपनी सौम्य और संतुलित अभिव्यक्ति से वह लोगों को सहज ही आकर्षित करते हैं। कहने को तो कवि संवेदनशील होता है पर संवेदना की गहराई में जाकर उसकी मीमांसा करना उसे कारकों और उससे उपजी प्रतिक्रिया को सशक्त शब्दों में रंगना उनकी विशेषता है।’ नूतन जी के साहित्यिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता उनका खंड काव्य ‘वीर मंगल पांडेय’ इंदौर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल हुआ है। वे कवि सम्मेलनों में भी काफी लोकप्रिय रहे, यहां तक कि लालकिले से भी काव्य पाठ करने का गौरव भी उन्हें हासिल था, जिसकी कामना हर वो कवि करता है जो कवि सम्मेलनों में सक्रिय है। मंच पर जब वे खड़े होकर गीत गाने लगते ‘पिन डृाप साइंलेंट’ का माहौल हो जाता, लोग ध्यान मगन होकर उनके तरन्नुम और गीतों का आनंद लेते।
नूतन जी को कविता विरासत में मिली। उनके चाचा अमर वर्मा और उनकी बुआ विद्यावती कोकिल हिन्दी जगत के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। इनके विवाह से परिवार में एक और कवयित्री जुड़ गई थीं- कुसुमलता श्रीवास्तव, जो स्नेहलता ‘स्नेह’ की ननद थीं। इस प्रकार दो कविता परिवारों का संगम था सुरेंद्र नाथ ‘नूतन’ का परिवार। नूतन जी देश के जाने-माने गीतकार तो थे ही, इसके अलावा इन्होंने खंड काव्य भी लिखा और मुक्तक भी मंचों पर गीत भी गाए तो ग़ज़लों पर खूब जोरआजमाईश की।
अगर सिर्फ गीतों की बात की जाये तो प्रिय के रूप में और उनका सौन्दर्य का चित्रण अद्भुत है। प्यार की सरिता मन के सितार टूट जाने की आशंका बराबर बनी रहती है। प्रिय को पाकर उल्लासित मन एक गीत की कुछ पंक्तियां इसका उदाहरण हैं-
कजरारे बादल की डोेली में सज सरस फुहार आ गई
या फूलों के किसी देश में घूंघट काढ़ बहार आ गई।
एक और गीत एक नमूना देखा जा सकता है-
वह जो प्रतिबिम्ब है जल में
वही तो जल में झंकृत है
अगर तुम ध्यान से देखो
वही अंतर में अंकित है।
जहां आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनकी कविताओं का प्रसारण समय-समय पर होता रहा वहीं उनके साहित्य सृजन को देखते हुए कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। अंत में कृष्ण बिहारी ‘नूर’ के एक ग़ज़ल के कुछ अशआर उनकी श्रद्धंाजलि स्वरूप -
जिन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं।
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।
जि़न्दगी मौत तेरी मंजिल है,
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।
अपनी रचनाओं में वो जिन्दा है,
‘नूर’ दुनिया से तो गया ही नहीं।
                                                        

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