सोमवार, 6 अगस्त 2012

चंद्रशेखर आज़ाद पार्क (कंपनी बाग) में काव्य गोष्ठी

अजय कुमार, सौरभ पांडेय, डा. सूर्या बाली ‘सूरज’,इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, नित्यानंद राय और वीनस केसरी

पिछले वर्ष 30 अक्तूबर 2011 को ‘गफ्तगू कैम्पस  काव्य प्रतियोगिता’ का आयोजन किया गया था। जिसकी अध्यक्षता मशहूर शायर मुनव्वन राना ने की थी। इस साल हिन्दी दिवस के अवसर पर यह आयोजन किया जाना है। आयोजन की तैयारियों के लिए 05 अगस्त 2012 को बैठक हुई। तैयारियों के चर्चा के बाद काव्य पाठ भी हुआ। सबसे पहले पिछले वर्ष के प्रतिभागी अमन दीप सिंह ने कविता सुनाई-
मेरी ख़ामोशी को, मेरी आवाज़ बनाउंगा
तू ठहर जरा देख
कैसे कांटों से मैं
साज बनाउंगा।
एक अन्य प्रतिभागी आनन्द कुमार आदित्य ने कहा-
देख तेरी जुल्फों के साये को
सावन की घटायें शरमा जाती हैं
हंस दे जो तू कभी दिल से
फूलों की डालियां भी झुक जाती हैं।
वीनस केसरी का शेर यूं था-
सिहर जाता हूं ऐसा बोलता है।
वो बस मीठा ही मीठा बोलता है।    
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा-
मैं हर कौम की रौशनी चाहता हूं।
खुदा की कसम दोस्ती चाहता हूं।
रहें जिसमें मां की दुआयें भी शामिल,
यक़ीनन मैं ऐसी खुशी चाहता हूं।
डा. सूर्या बाली ‘सूरज’ की ग़ज़ल उल्लेखनीय रही-
कभी जब दिल से दिल का ख़ास रिश्ता टूट जाता है।
तो फिर लम्हों में सदियों का भरोसा टूट जाता है।
भले जुड़ जाये समझौते से, पहले सा नहीं रहता,
मुहब्बत का अगर इक बार शीशा टूट जाता है।
नित्यानंद राय की कविता इस प्रकार थी-
ख़ास कुर्सियां, ख़ास परिवार
आम की राजनीति, ख़ास की सरकार।
सौरभ पांडेय की रचना को हर किसी ने पसंद किया-
रात की ऐय्यारियां हैं, दिन चढ़ा परवान है।
एक शहज़ादा चला बनने नया सुल्तान है।
आदमी, या वस्तु है या आंकड़ों का अंक भर,
या किसी परियोजना का तुक मिला उन्वान है।
अजय कुमार की कविता सराही गई-
किससे कहें समस्या अपनी
डेमोक्रेसी नेता की पत्नी
लोकतंत्र पर शर्म है आती
भारत मां की फट रही है छाती 



डा. सूर्या बाली ‘सूरज’, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी,नित्यानंद राय, वीनस केसरी, आनंद कुमार आदित्य, विशेष कुमार, अमनदीप सिंह

1 टिप्पणियाँ:

Saurabh ने कहा…

एक संज़ीदा कोशिश मुकाम पाने की राह पर है. नये हस्ताक्षरों के लिये बहुत सुगढ़ कोशिश हो रही है, भाई साहब.
कल की साँझ न केवल मन के लिये सुखदायी रही बल्कि साहित्य के आकाश में अपनी परवाज़ को तौलने को बेक़रार नये परिंदों के लिये राह तय करती भी दिखी. इस साँझ का यह रूप खासा संतुष्टिदायी लगा. कुछ नये रचनाकार मात्र कर्मी नहीं बल्कि साहसी कर्मी भी हैं, यह देखना-जानना अधिक रोचक रहा.
नव-हस्ताक्षरों द्वारा पढ़ी गयीं रचनाओं में कुछ तो बहुत ही संभावनाओं भरी थीं.

एक सुझाव : ऊपर वाले चित्र में नामावलि सुधार चाहती है. बन सके तो दुरुस्त करलें.
सधन्यवाद

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