प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर गुफ़्तगू का वेबिनार
प्रयागराज। गुफ़्तगू की ओर से 30 जुलाई की शाम मुंशी प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर वेबिनार का आयोजन किया गया, वेबिनार का विषय था ‘प्रेमचंद की कहानियां के पात्र आज कितने प्रासंगिक’। मशहूर कथाकार ममता कालिया ने कहा कि किसे पता था कि प्रेमचंद के होरी धनिया और हल्कू आज पहले से भी दीन दशा में हमारे समाज में दिखाई देंगे। कम से कम तब वे जीवित तो थे। आज बेचारे पेड़ों पर लटके हुए हैं खुदकुशी करने को मजबूर हैं।
प्रयागराज। गुफ़्तगू की ओर से 30 जुलाई की शाम मुंशी प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर वेबिनार का आयोजन किया गया, वेबिनार का विषय था ‘प्रेमचंद की कहानियां के पात्र आज कितने प्रासंगिक’। मशहूर कथाकार ममता कालिया ने कहा कि किसे पता था कि प्रेमचंद के होरी धनिया और हल्कू आज पहले से भी दीन दशा में हमारे समाज में दिखाई देंगे। कम से कम तब वे जीवित तो थे। आज बेचारे पेड़ों पर लटके हुए हैं खुदकुशी करने को मजबूर हैं।
मशहूरश की मौजूदा हालात में मुंशी प्रेमचंद के किरदारों को लौटने में पचास शायर मुनव्वर राना के मुताबिक दे साल से अधिक लग जाएंगे, देश का माहौल नफ़रत से भरा हुआ बना दिया गया है। ऐसे में वे पात्र फिर से नहीं लौटने वाले। प्रेमचंद के गरीब, मजदूर, लाचार पात्र भी उनकी कहानियों में बादशाह की तरह मुख्य किरदार में होते थे, जिनका आज के समाज में लौटना लगभग नामुमकिन है।
फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां और उनके सारे पात्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे अपने रचना समय में थे। वक़्त बदलने के साथ बदलाव तो बहुत हुए हैं, लेकिन जो ज़मीनी लेवल पर हर क्षेत्र में बदलाव होना चाहिए, वो नहीं हुआ है। किसानों की हालत बहुत ज्यादा वैसी है, मजदूरों की भी वैसी ही है। गांव में आप चले जाइए, तो जो व्यवस्थाएं हैं, जाति को लेकर, रुतबे को लेकर, वो ऑलमोस्ट लगभग वैसी ही हैं। कहने को तो कागज़ों पर काफी कुछ हुआ है, लेकिन स्थितियां कुल मिलाकर वैसी ही हैं। तो मुझे लगता है कि प्रेमचंद के सारे पात्र आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। मेरा मानना है कि अमर रचनाकार जो भी होता है, वह समय से परे होता है।
इम्तियाज अहमद गाजी ने कहा कि प्रेमचंद के पात्र आज भी समाज में हमारे सामने खड़े हैं, उनकी समस्याएं कम होने के बजाए दिनो-दिन बढ़ती जा रही हैं। जिन लोगों की जिम्मेदारी इनकी समस्याएं कम करने की है, वे लोग उनकी समस्याओं में इज़ाफ़ा कर रहे हैं, यह हमारे लिए बहुत ही दुखदायी है।
मासूम रज़ा राशदी के मुताबिक पूस की रात का बेचैन हल्कू हर गांव में आज भी अनिद्रा का शिकार है। हर ईदगाह में अपनी बूढ़ी दादी के लिए चिमटा खरीदता हामिद आज भी नज़र आता है, अपने किसी संबंधी की लाश सड़क किनारे डाल कर कफन के नाम पर चंदा उगाहते घीसू और माधव हम सब ने कभी न कभी अवश्य देखे हैं। आप को झूट बोलना पड़ेगा यदि आप ये कहें कि आपने सद्गति प्राप्त किसी दुखी चमार को कभी नहीं देखा और बेटों वाली विधवा फूलमति किस घर में नहीं है आज? ईमानदारी से दिल पर हाथ रखिए और खुद से पूछिये, ये तो कुछ बानगी भर है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का हर चरित्र मानव समाज के हर काल खंड में जीवित और प्रासंगिक है और रहेगा।
फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां और उनके सारे पात्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे अपने रचना समय में थे। वक़्त बदलने के साथ बदलाव तो बहुत हुए हैं, लेकिन जो ज़मीनी लेवल पर हर क्षेत्र में बदलाव होना चाहिए, वो नहीं हुआ है। किसानों की हालत बहुत ज्यादा वैसी है, मजदूरों की भी वैसी ही है। गांव में आप चले जाइए, तो जो व्यवस्थाएं हैं, जाति को लेकर, रुतबे को लेकर, वो ऑलमोस्ट लगभग वैसी ही हैं। कहने को तो कागज़ों पर काफी कुछ हुआ है, लेकिन स्थितियां कुल मिलाकर वैसी ही हैं। तो मुझे लगता है कि प्रेमचंद के सारे पात्र आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। मेरा मानना है कि अमर रचनाकार जो भी होता है, वह समय से परे होता है।
इम्तियाज अहमद गाजी ने कहा कि प्रेमचंद के पात्र आज भी समाज में हमारे सामने खड़े हैं, उनकी समस्याएं कम होने के बजाए दिनो-दिन बढ़ती जा रही हैं। जिन लोगों की जिम्मेदारी इनकी समस्याएं कम करने की है, वे लोग उनकी समस्याओं में इज़ाफ़ा कर रहे हैं, यह हमारे लिए बहुत ही दुखदायी है।
मासूम रज़ा राशदी के मुताबिक पूस की रात का बेचैन हल्कू हर गांव में आज भी अनिद्रा का शिकार है। हर ईदगाह में अपनी बूढ़ी दादी के लिए चिमटा खरीदता हामिद आज भी नज़र आता है, अपने किसी संबंधी की लाश सड़क किनारे डाल कर कफन के नाम पर चंदा उगाहते घीसू और माधव हम सब ने कभी न कभी अवश्य देखे हैं। आप को झूट बोलना पड़ेगा यदि आप ये कहें कि आपने सद्गति प्राप्त किसी दुखी चमार को कभी नहीं देखा और बेटों वाली विधवा फूलमति किस घर में नहीं है आज? ईमानदारी से दिल पर हाथ रखिए और खुद से पूछिये, ये तो कुछ बानगी भर है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का हर चरित्र मानव समाज के हर काल खंड में जीवित और प्रासंगिक है और रहेगा।
वरिष्ठ रंगकर्मी ऋतंधरा मिश्रा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे कालजयी कहानीकार व नाटककार हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी के कौशल से अनेक कहानियों व नाटकों की रचना की। इन रचनाओं ने जनमानस को आंदोलित करने के साथ-साथ समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व भी किया। जहां तक वर्तमान समय की बात है, उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज के शोषित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते हैं। प्रेमचंद का साहित्य अपने समय, समाज और परिस्थितियों से गहरा जुड़ा हुआ है। जहां कफन में वे धार्मिक परंपराओं व गरीबी को निशाना बनाते हैं। रंगभूमि में औद्योगिकीकरण की समस्या को बखूबी दर्शाते हैं। गरीबी और शोषण का जीवंत चित्रण सवा सेर गेंहू और पूस की रात में किया गया है। मंत्र कहानी के द्वारा भी उन्होंने एक आम आदमी की मानसिकता को बहुत अच्छी तरह दर्शाया है जो अपने साथ बुरा होते हुए भी दूसरों का भला चाहता है। कर्मभूमि में उन्होंने राजनीतिक विकृतियों के साथ साथ सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं के विरोध के संघर्ष को भी दिखाया है।
शगुफ्ता रहमान ‘सोना’ ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनकी रचनाओं के बिना हिंदी साहित्य में साहित्य की चर्चा करना अधूरा प्रतीत होता है। आज भी उनकी कहानियों के पात्र समाज के प्रत्येक वर्ग, अमीर-गरीब, धर्म, ऊंच-नीच, भ्रष्टाचार आदि पर प्रहार करते हैं। ‘पंच परमेश्वर’ में जुम्मन शेख और अलगू चैधरी का किरदार अनुकरणीय है। ‘ईदगाह’ में गरीबी के कारण हामिद का चिमटा खरीद कर लाना मन को झकझोर देने वाला है। ‘नमक का दरोगा’, ‘पूस की रात’, ‘ठाकुर का कुआं’, ‘गुल्ली डंडा’ आदि कहानियों के पात्र समाज को आईना दिखाते हैं। कहानियों के पाश्चात्य विधा को जानते हुए भी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में मूल रूप से अपने परिवेश से जुड़े पात्रों के माध्यम से अन्ध परंपराओं पर चोट कर मानवीय मूल्यों को समाज के समक्ष आदर्श रुप प्रस्तुत किए हैं। जो भारतीय समाज के लिए अनुकरणीय है। डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियां सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि यथार्थ के धरातल पर दार्शनिकता और भावनात्मक लक्ष्य को लेकर लिखी गयी हैं, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वह अपने काल में थीं, जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। प्रेमचंद ने जीवन की कठोर वास्तविकता, गरीबी, सामाजिक भेदभाव, अंध-संस्कार, धार्मिक ढोंग, जातिवाद, नारियों की दयनीय दशा, न्याय का अभाव, घूसखोरी, राष्ट्रीय आंदोलन और सामाजिक रूढ़िवादिता, अशिक्षा, कुटिल राजनीतिक कुचक्र जैसे तमाम विषयों को कहानी का विषय बनाया और अपनी शैल्पिक विशेषताओं, भाषा की गंभीरता, सशक्त संवाद, प्रवाहमयी शैली, चरित्र चित्रण से कहानियों को अद्वितीय बना दिया। उनकी कहानियों को पढ़ते समय कथा के पात्र स्वयं पाठक के मन पर ऐसा गहरा असर छोड़ते हैं कि लगता है कि वह स्वयं उस कहानी का पात्र हो गया हो। जो दिल और दिमाग दोनों पर अपनी अमिट थाप छोड़ती हैं।
अर्चना जायसवाल सरताज के मुताबिक हिदी साहित्य जगत मुंशी प्रेमचंद के बिना अधूरा है, समाज के हरेक वर्ग का ऐसा सटीक व सारगर्भित चित्रण मुंशी जी ने अपनी रचनाओं में किया है कि आज भले ही प्रेमचंद जी हमारे बीच में नहीं, मगर उनकी कथाओं के सभी पात्र मूल रूप में मौजूद हैं। साथ ही कहानियों का मूल भाव भी उसी रूप में आज भी प्रासंगिक व स्वीकार्य है। मुंशी जी की शब्द-भाषा इतनी सरल व सुग्राह्य है कि पाठक चाहे कम से कम पढ़ा हो या विद्वान से विद्वान हो पढ़ते वक्त तल्लीन व भावुक होकर एक-एक शब्द को पी जाना चाहता है। कई बार पढने के बाद भी इनकी रचनाओं को बार-बार पढ़ने का जी चाहता है। शायद इसलिय की इनकी हर बात आज के समय नमे भी प्रासंगिक लगती हैं।
दयाशंकर प्रसाद ने कहा कि ‘पूस की रात’ के पात्र हल्कू की तरह से ही किसान मजबूर होकर आज मजदूर बन गए हैं। ‘आधार’ कहानी की विधवा पात्र अनूपा भारतीय समाज में व्याप्त अनमेल विवाह पर प्रहार करती हुई आदर्श की स्थापना करती है ‘नमक का दरोगा’ के पात्र बंशीधर जैसा ईमानदार दरोगा के सामने पंडित अलोपीदीन जैसे प्रतिष्ठित जमींदार भी झुकने को मजबूर हो गए। प्रेमचंद की विभिन्न कहानियों के पात्र आज भी समाज में किसी न किसी रूप में सजीव परिलक्षित होते हैं। प्रभाशंकर शर्मा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के पात्र मानवीय मूल्यों का उजला पक्ष हैं और उनके पात्र सिर्फ कल्पना मात्र नहीं हैं बल्कि वह सामाजिक बुराइयों पर पूरा प्रहार करते नज़र आते हैं। यही वजह है कि आज भी मुंशी प्रेमचंद के पात्रों को भुलाया नहीं जा सकता। चाहे वह धनिया हो या बुधिया, होरी या ईदगाह का हमीद। मुंशी प्रेमचंद के पात्र जरा भी बनावटी नहीं बल्कि परिवेश से लिए गए पात्र थे वह इस तरह कहानियों व उपन्यास में उभर कर सामने आते थे। जैसे हम पाठक स्वयं में उस चरित्र को महसूस कर रहे हों। प्रेमचंद ने अपने पात्रों में पूरा मनोवैज्ञानिक पहलू उजागर किया है पात्र के हिसाब से ही उनकी भाषा का चयन और परिदृश्य होता था। डाॅ. ममता सरुनाथ ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों के पात्र अगर हम नज़र घुमा कर देखें तो आज भी हमारे इर्द-गिर्द दिखाई पड़ जाते हैं। कितनी ही स्त्रियां आज भी निर्मला की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं। कितने ही हल्कू होरी और धनिया आज भी अपनी लाचारी और बेचारगी भरे जीवन जीने पर मजबूर हैं। कुछ तो ऐसे हैं, जो हालात का सामना न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या तक के कदम उठा लेते हैं। प्रेमचंद ने जो प्रयास किया अपने साहित्य के माध्यम से समाज को एक नया दृष्टिकोण देने का समाज को बदलने की कोशिश की शायद आज के लेखकों को भी ऐसे प्रयास करने की आवश्यकता है ।
इसरार अहमद के मुताबिक मुंशी प्रेमचंद की कहानियां आज के आधुनिक दौर के सभ्य समाज को आईना दिखाने का कार्य करती हैं। इनके कहानियों के पात्र आज के समाज के जीवंत पात्रों पर सटीक प्रहार करते हुए नज़र आते हैं। आज के दौर की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में सामंतवादी सोच वाली पात्रों का इस समाज के दबे कुचले एवं वंचित समाज के प्रति किए जाने वाले व्यवहार एवं कार्य अंग्रेजों के द्वारा किए गए गणित कार्यों की याद दिलाते हैं। पूस की एक रात नामक कहानी में हल्कू का अपने कुत्ते जबरा के साथ पूस की ठंडी रात्रि में एक साथ सोना उस समय की गरीबी को दिखा रहा था, जो आज भी ऐसे बहुत से इस समाज में हल्कू मौजूद हैं। जिनकी तरफ आज के नेताओं की या सभ्य समाज के बुद्धिजीवियों की कोई नज़र नहीं जाती है। नमक के दरोगा में उस समय इंस्पेक्टर द्वारा नमक पर खुश खाना उस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा था जो आज के दौर में पुलिस एवं संबंधित विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है। वास्तव में कहानियों में प्रयुक्त पात्र आज के दबे कुचले समाज एवं वंचित समाज के लोगों की वास्तविक स्थिति को उजागर करते हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट कराती हैं की आज के दौर की सावंतवादी शक्तियां किस प्रकार से दबे कुचले एवं पंचित परिवार का शोषण कर रहे हैं।
रचना सक्सेना ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ऐसे साहित्य साधक थे जिन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों के पात्रों के माध्यम से जहां एक ओर अंध परम्पराओं पर चोट की, वहीं सहज मानवीय संभावनाओं और मूल्यों को भी खोजने का प्रयास किया। इसी वजह से उनकी कहानियां व उपन्यास हिन्दी साहित्य की अमर रचनाओं व कृतियों के रुप में अमिट धरोहर बन गयी। उनकी कहानियों को जब हम आज के परिप्रेक्ष्य में देखते है तो भी उनके चरित्र आज भी अपने इर्द-गिर्द किसी न किसी रुप में मिल जाते हैं। निर्मला के रुप में आज भी भारतीय नारी अपनी परिस्थितियों सें और अनेक विकट समस्याओं से जूझती हुई दिख जाऐगी। अतः इस दृष्टि से उनके कहानियों और उपन्यासों के चरित्र आज भी पूर्णतया प्रासंगिक हैं।
2 टिप्पणियाँ:
तो हम क्या मानें, साहित्यकारों का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि प्रेमचंद की विरासत को संभालने की बात तो दूर, समाज की तत्कालीन स्थिति में सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की बात तो दूर, वे प्रेमचंद के पात्रों को भी नहीं संभाल सके। लाल, केसरिया और हरे-पीले झंडों के नीचे खड़े साहित्यकार अपनी पताका हार आये हैं। डर है कि वे इतने अप्रासंगिक न हो जाये कि समाज से सिकुड़कर उनका वजूद चंद पन्नों में सिमट जाए। शुभकामना!!!
सुन्दर लेख
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