- शहाब ख़ान गोड़सरावी
कैप्टन अब्दुल गनी खां |
कहा जाता है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु जापान में एक प्लेन क्रेस में हुई थी, उसी विमान में उनके साथ सवार रहे कैप्टन अब्दुल गनी की भी मौत हो गई थी। कैप्टन गनी नेताजी के ख़ास लोगों में से एक थे, जो हर वक़्त उनके साथ रहते थे। जिस तरह से नेताजी की मौत पर तरह-तरह की बातें सामने आती रहती हैं, उसी तरह कैप्टन गनी की मौत के कारण भी सवाल खड़े होते रहे हैं। वर्ष 2010 में कैप्टन अब्दुल गनी खां के बड़े बेटे अब्दुल कादिर खां ने बताया था कि उनकी बूढ़ी आंखें आजतक अपने पिता के आने की इंतजार में हैं, लेकिन आजतक उनका कोई संदेश नहीं आया, उनकी मौत के विषय में कोई अधिकारिक सूचना आज तक नहीं है।
अब्दुल गनी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित मिर्चा गांव में सन 1904 को सूबेदार सुल्तान खां के घर हुआ था। उनकी माता अजमत बीबी घरेलू नेक खातून थीं। गनी खां को पढने का बहुत शौक था, उन्होंने ग्रेजुएशन कर लिया था, उनका कद-काठी काफी लंबी-चैड़ी थी। विक्टोरिया क्रॉस विजेता हुमैल खान बारावी की सिफारिश पर अंग्रेजों ने सीधे उन्हें कमांडिग आफिसर के पद पर तैनात कर दिया। सिकंदराबाद से ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पहली पोस्टिंग पंजाब में हुई। मेहनत और ईमानदारी के बल पर बहुत जल्द कैप्टन के पद पर आसीन हो गये। उस वक़्त आज़ादी की लडाई जोर पकड रही थी। उसी वक़्त सुभाष चंद्र बोस इंडियन नेशनल आर्मी का गठन कर रहे थे उनका नारा था ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’। नेताजी उस वक्त गांव-गांव जाकर जवानों को सेना में भर्ती के लिए प्रेरित कर रहे थे।
सन 1941 में ग़ाज़ीपुर में फारवर्ड ब्लाक की स्थापना हुई, जिसके लिए नेता जी कलकत्ता से ग़ाज़ीपुर आये और उसी वक्त गनी खां भी छुट्टी पर घर आये हुए थे। जहां इनकी मुलाकात नेता जी से हुई। नेताजी के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुए की ब्रिटिश सेना की नौकरी को छोड़कर कमसारोबार के कई साथियों के साथ नेता जी के साथ हो लिए। अपनी कार्यशैली के आधार पर वे नेताजी के बहुत करीबी साथियों में शुमार हो गए। अपनी फ़ौज़ की ताक़त बढ़ाने के लिए जापान और फिर आदमपुर मलाया पहुंचे। इसके बाद जब वे दुबारा टोक्यो के लिए ताइपे हवाई अड्डे से रवाना हुए तो उनके साथी पायलट हबीबुर्रहमान के साथ जहाज में कैप्टन अब्दुल गनी खां, डॉ. अब्दुल रसीद भी सवार थे, वहीं प्लेन क्रेस हो गया था। इतिहासकारों के मुताबिक 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस का विमान जापान स्थित ताइपे हवाई अड्डे पर ईंधन लेने के लिए उतरा, आगे की सफर टोक्यों के लिए उड़ान भरते समय क्रेश हो गया।
इस जाबाज की मौत की सूचना के बाद तत्कालीन सरकार न तो अब्दुल गनी खां का ही पता लगा पाई और न ही आजतक उन्हें शहीद का दर्जा दिया गया। फिलहाल कैप्टन गनी से जुड़ी ठोस रेकॉर्ड प्राप्ति के लिए सोसाइटी फार हिस्टोरिकल एंड कल्चरल स्टडीज, सुभाष भवन, वाराणसी की संस्था पिछले 31 वर्षों से नेताजी पर शोध कार्य कर पुस्तकें प्रकाशित करती आ रही है। कैप्टन अब्दुल गनी खां को भी इस शोध का हिस्सा बना रही है। ‘समसामयिक हिंदी जनरल नॉलेज’ नामक पुस्तक में इस बात का जिक्र किया गया है कि जिस विमान के क्रेस होने से सुभाषचंद्र बोस की मौत हुई थी, उसी में गनी खां भी मौजूद थे। कैप्टन गनी के पोते वर्तमान मिर्चा गांव के वर्तमान ग्राम प्रधान जावेद खान के मुताबिक आठ साल पहले तक अब्दुल गनी खां की विधवा फातमा बीबी को 145 रूपये का पेंशन मिलता रहा, जो उनकी मौत के बाद बन्द हो चुकी है। उनका कहना है कि कैप्टन के नाम पर इलाके में शिक्षण संस्थान और अस्पताल खोले जाने चाहिए।
(गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2020 अंक में प्रकाशित )
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