बुधवार, 11 मार्च 2020

आखि़र कब तक ?, भास्कर राव इंजीनियर, खेत के पांव और लफ़्ज़ों का लहू



                                                                              - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे एक सक्रिय रचनाकार हैं। रेलवे में नौकरी करते थे, वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद उनके लेखन में और तेज़ी आयी है। खुद एक साहित्यिक पत्रिका ‘माध्यम’ का संपादन भी कर रहे हैं। अब तक लगभग आधा दर्जन पुस्तकें आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल में इनकी नई पुस्तक ‘आखि़र तक तक ?’ प्रकाशित हुई है। इस काव्य संग्रह में छोटी-छोटी कविताओं को एकत्रित किया गया है। देश, समाज, त्योहार, प्राकृतिक सौंदर्य, प्रेम आदि का वर्णन अलग-अलग कविताओं में किया गया है। पुस्तक की भूमिका में अरुण कुमार श्रीवास्तव ‘अर्णव’ कहते हैं-‘कवि के शब्दों में मौन एक साधना है और शब्द माध्यम है, सुनता रहा घड़ियों की टिकटिक, टूट जाते हैं रक्त संबंध, क्योंकि राजनीति साध्य नहीं है, लड़नी है लड़ाई अंधेरों के खिलाफ़ लेखनी के उद्घोष को नये आयामा देता है। प्रणय और श्रृंगार को भी कवि मन एक नये रूप में परिभाषित करते हुए स्वतः कह  उठता है रहती मन में, अंतस्थल में, फिर सच है हार गया मैं, वह कैसे आती नारी मन की दुविधा का शानदार विश्लेषण करता हुआ सृजन है।’ इनकी कविताओं में कुछ अलग आयाम भी दिखते हैं, जैसे एक कविता में कहते हैं-‘टूट जाते हैं रक्त संबंध/पर नहीं टूटते मित्रता के बंधन/अहसास कराते अपने पन का/दिल में रहते, दिल में बसते/जीवन का ये सच है/ मानो या न मानो/ हिसाब नहीं करते लेने देन का/ विश्वास का, आशाओं का/ मन निर्मल, सहज सरल है।’ इसी तरह के अलग किस्म बिंब और प्रतीक इनकी कविताओं में कहीं-कहीं पढ़ने को मिल जाते हैं। कुल मिलाकर यह एक सार्थक काव्य संग्रह है। 112 पेज के इस पेपर बैक संस्करण को प्रेरणा प्रकाशन, नाशिक ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 175 रुपये है।
अरुण अर्णव खरे एक वरिष्ठ रचनाकार हैं। कई विधाओं में लिखते हैं, खेल पर लिखने की विशेष रूप से अभिरुचि रही है, तमाम पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। अब तक आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल में आपकी कहानी संग्रह ‘भास्कर राव इंजीनियर’ प्रकाशित हुई है। इस किताब में कुल 14 कहानियां संग्रहित की गई हैं। कहानियों की ख़ासियत यह है कि लेेखक ने जो महसूस किया, देखा, समझा है उसी को कथा का बिंब और उससे जुड़े हुए लोगों को कथा का पात्र बनाया है। यही वजह है कि कहानियों को पढ़ते समय कथा का परिदृश्य चलचित्र की तरह सामने चलते हुए दिखाई देते हैं। पुस्तक की पहली कहानी ‘दूसरा राज महर्षि’ बाल मन की मानसिकता और दुविधा को बड़ी खूबी से चित्रित करती है, वहीं शीर्षक कहानी ‘भास्कर राव इंजीनियर’ एक भले और नेकदिल इंसान की कहानी जो अपने कैरियर की कीमत पर लोगों की भलाई करता है। इसी तरह सभी कहानियों में के परिदृश्य रोचक और तार्किक हैं। इस पुस्तक के लिए अरुण अर्णव खरे बधाई के पात्र हैं। 100 पेज की इस पुस्तक के इस पेपर बैक संस्करण को लोकोदय प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 130 रुपये है।  

उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के रहने वाले अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ उत्तर प्रदेश सरकार में आबकारी आयुक्त हैं, वर्तमान समय में हापुड़ जिले में कार्यरत हैं। ग़ज़ल, कविता, व्यंग्य, एकांकी आदि लिखते हैं, अब तक कई पुस्तकें आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। ग़ज़ल पर आपकी ख़ास पकड़ है, पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रायः इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। पिछले दिनों ‘खेत के पांव’ नाम से इनका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है। इनकी ग़ज़लों के बारे में डाॅ. कुंअर बेचैन की इस टिप्पणी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है- ‘सचमुच आज का हर इंसान जो आदमी की हैसियत से अपनी ज़िन्दगी जी रहा है, वह अपनी समस्याओं के बोझ से पूरी तरह दबा हुआ है, जो उसकी आशाएं और आकांक्षाएं हैं, उसके स्वप्न हैं, उन्हें वो अपने सीमित साधनों में पूरा नहीं कर पा रहा है। लेकिन कविता का काम निराश व्यक्ति के मन में भी किसी आशा की किरण को जगाने का काम है। यही सकारात्मक सोच व्यक्ति की जिजिविषा को जीवित रख पाता है। अनुराग मिश्र ‘ग़ैर’ जी को इस बात का ध्यान है, इसी कारण उनके मन से अचानक यह सकारात्मक शेर निकल आता है- ‘वो घर फिर से हुआ आबाद शायद/ दिया दहलीज पर जलने लगा है।’ इस कथन से भी आगे हैं अनुराग की  ग़ज़लें, जिनमें तरह-तरह के नई उपमाएं और परिदृश्य देखने को मिलती हैं। कहते हैं-‘बज़्म में मुस्कुराओगे, लेकिन/ दिल में तुम इंतिक़ाम रखोगे। चांद तारों को तोड़ने का सनम/आप कितना इन्आम रखोगे।’ एक और ग़ज़ल के दो अशआर देखिए-‘है तग़ाफुल उनके ही किरदार में/ वो हमीं से बेख़बर होने लगे। ओस टपकी थी फ़लक से बस ज़रा/ फूल सारे तरबतर होने लगे।’ इस तरह के तमाम शानदार शेर पूरी किताब में जगह’-जगह मौजूद हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद सहज ही कहा जा सकता है कि ‘खेत के पांव’ एक शानदार ग़ज़ल संग्रह है, जिसके लिए शायर बधाई का पात्र है। 192 पेज के इस सजिल्द पुस्तक को गगन स्वर बुक्स पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 250 रुपये है।



दरभंगा, बिहार के रहने वाले सलमान अब्दुस समद एक युवा कलमकार हैं, वर्तमान समय में दिल्ली में रहते हैं। लेखन को लेकर काफ़ी सक्रिय और उत्साहित हैं। आलोचना और उपन्यास लेखन में तल्लीन इस युवा रचनाकार ने धीरे-धीरे अपनी एक अलग सी पहचान बना ली है। ‘लाडली मीडिया एवार्ड-2012’ और यूपी उर्दू एकेडेमी से आपको एवार्ड मिल चुके हैं। ‘लफ़्ज़ों का लहू’ नाम इनका उपन्यास प्रकाशित हुआ है, जो चर्चा में भी है। इसमें देश के वर्तमान माहौल और पीत पत्रिकारिता की घुटन का शानदार ढंग से वर्णन किया गया है। मशहूर लेखिका नासिरा शर्मा इनकी इस किताब के बारे में कहती हैं-‘नए उभरते लेखन सलमान अब्दुस समद का उपन्यास ‘लफ्ज़ों’ का लहू’ उर्दू और हिन्दी में नज़रों से गुज़रा। उपन्यास से गुज़रते हुए जगह-जगह इस बात का एहसास हुआ कि युवा लेखक और पत्रकार अपने देश में फैली हुई फ़िज़ा में अजीब घुटन महसूस कर रहा है जो पीत-पत्रकारिता से भी उपजी है और भौतिकता की तरफ भागते इंसान काी बदहवास और बेहिसी से भी। इस उपन्यास नई पीढ़ी का दर्द है और ऐसी छटपटाहट का ब्यान है जो हर संवेदनशील नागरिक के दिल की बात है।’ इस वर्णन से उपन्यास के बारे में सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 124 पेज के इस सजिल्द संस्करण को स्वराज प्रकाशन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 295 रुपये है।
(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2019 अंक में प्रकाशित)

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