रविवार, 27 मई 2018

जागती आंखें, मंज़िल, अक्कासिये दिल और खुला आकाश


                    -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी



 मुरादाबाद  की रहने वाली मीना नक़वी देश की जानी-मानी उर्दू ग़ज़लकारा हैं, काफी समय से लेखन के प्रति सक्रिय हैं। पत्र-पत्रिकाओं के अलावा साहित्यिक आयोजनों में शामिल होती रही हैं। उर्दू में प्रकाशित इनके दो मजमुए ‘जागती आंखें’ और ‘मंज़िल’ मेरे सामने हैं। इन दोनों ही पुस्तकों को पढ़ते हुए शानदार ग़ज़लों से सामना होता है। जगह-जगह ऐसी ग़ज़लों से सामना होता है, जिन्हें पढ़कर ‘वाह-वाह’ कहना ही पड़ता है। ‘जागती आंखें’ में शायरी की शुरूआत ‘हम्द’ से की गई है। हम्द में कहती हैं ‘तेरी ज़मीन तेरा आसमां जहां भी तेरा/मकान भी है तेरा और लामकां भी तेरा। मेरे करीम कर तो अपनी मीना पर/कि ये हयात भी एहसाने बेकरां भी तेरा।’ आमतौर पर ग़ज़ल मजमुओं की शुरूआत लोग हम्द अथवा नात से करते हैं, मीना नक़वी ने भी यही किया है। हम्द से आगे बढ़ते ही एक से बढ़कर एक ग़ज़लें पढ़ने को मिलती हैं, जिनमें रिवायती और जदीदियत दोनों तरह की शायरी है। पहली ग़ज़ल में कहती है- ‘यूं गुलों के दरमियां हैं जागती आंखें मेरी/जैसे खुश्बू में निहां हैं जागती आंखें मेरी।’ इनकी ग़ज़लोें के बारे में नज़ीर फतेहपुरी लिखते हैं कि- ‘ज़िन्दगी एक ऐसी कहानी है, जिसमें किसी तन्हा किरदार के लिए गुंजाइश कम ही होती है और अगर उस कहानी में हालात का मारा हुआ कोई किरदार तन्हा है तो वह अपने आपमें इज्तराब का शिकार है। ऐसे हालात में इसे किरदारशानी की तलाश होती है। जब किरदारेशानी किरदारे अव्वल से मिल जाता है तो दास्तान मुकम्मल हो जाती है। लेकिन कुछ कहानियां ऐसी भी होती है जिनमें मुअवद्द किरदार जिसको कहानी के सारे किरदार तलाश कर रहे हों वह किरदार आएं तो दास्तान मुकम्मल हो’- कहां तुम हो वफ़ा तलाश में/तुम्हें किरदार सारे ढूंढ़ते है।’



इनके दूसरे मजमुए ‘मंज़िल’ की बात करें तो इस किताब में भी इसकी तरह की शायरी से सामना होता है। इस किताब की शुरूआत में हम्द के बाद नात में वह कहती हैं-‘ वह नूरे हक़ रहमतों के पैकर, सलाम उन पर दरूर उन पर/ है जिनके दम से जहां मुनव्वर, सलाम उनको दरूर उनको। शउर  उनको यूं ज़िन्दगी का आया, तमाम आलम पे नूर छाया/करम है उनका ये आगही पर, सलाम उनपर दरूर उन पर।’ फिर एक ग़ज़ल में कहती हैं-‘क्या अजब दिल का हाल है जानां/बस तबीयत नेढाल है जानां। कुरबतों से नवाज़ दे मुझको/मेरे लब ने सवाल है जानां।’ इस तरह कुल मिलाकर मीना नक़वी की शायरी में आज के समाज और इसमें गुजरती ज़िन्दगी और इसके हालात की तर्जुमानी मिलती है, जो शायरी का सबसे अहम पहलू होना चाहिए। ऐसी शायरी के लिए मीना नक़वी मुबारकबाद की हक़दार हैं।
 महामहिम श्री केशरी नाथ त्रिपाठी जी वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं। इलाहाबाद के रहने वाले श्री त्रिपाठी राजनीतिज्ञ के अलावा अधिवक्ता और कवि भी हैं। उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके काव्य संग्रह ‘मनोनुकृति’ का उर्दू अनुवाद ‘अक्कासिये दिल’ नाम से डाॅ. यासमीन सुल्ताना नक़वी ने किया है। डाॅ. यासमीन ने इस अनुवाद के जरिए उर्दू दां तक इस किताब को पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया है। उनके इस काम पर टिप्पणी करते हुए प्रेम शंकर गुप्त जी लिखते हैं-‘ डाॅ. यासमीन को उर्दू मादरी ज़बान की शक़्ल में हासिल हुई, वह गंगा-जमुनी तहज़ीब की मुकम्मल शक़्ल की नुमाईंदा हैं। मैं सालों से उन्हें मुसलसल कामयाबी की सीढ़ी पर आगे बढ़ते देखकर खुश होता रहा हूं।’ स्वयं महामहिम केशरी नाथ त्रिपाठी जी कहते हैं-‘मुझे उर्दू नहीं आती। दिन-प्रतिदिन की बोल-चाल में प्रयुक्त, या न्यायालय कार्य से संबंधित दस्तावेज़ों में लिखे उर्दू के शब्दों तक ही मेरा ज्ञान है, परंतु इतना मैं अवश्य कहूंगा कि उर्दू भाषा में भी सम्प्रेषण शक्ति बहुत अधिक है। यदि अनुवाद के माध्यम से मेरी रचनाओं के भाव उर्दू-भाषी पाठकों के पास पहुंच जाय तो यह मेरा सौभाग्य है।’ ‘तलाश’ शीर्षक की कविता अनुवाद डाॅ. यासमीन ने यूं किया -‘ अभी भी मुझे तलाश है/उस अनमोल  पेंसिल-काॅपी की/जो मुझे मिली थी इनआम में/जब मैं काॅलेज का तालिब-इल्म था और साथ में मिली थी/ज़ोरदार तालियों की गड़गड़ाहट/ और पीठ पर शफ्क़त भरी थपथपाहट/जो बन गई मेरे लिए/मील का संगे-अव्वल।’ कुल मिलाकर डाॅ. यासमीन के इस कार्य की जितनी सराहना की जाए कम है। 164 पेज के तर्जुमे की किताब को उर्दू लिपी के अलावा देवनागरी में प्रकाशित भी किया गया है। किताब महल ने इसे प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 300 रुपये है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की रहने वाली मंजू यादव अध्यापिका हैं, पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं, कई सहयोगी संकलनों में रचनाएं छपी हैं। कुल मिलाकर काफी समय से साहित्य के प्रति सक्रिय हैं, ख़ासकर कहानी और काव्य लेखन को लेकर। हाल ही में उनका कहानी संग्रह ‘खुला आकाश’ प्रकाशित हुआ है, पुस्तक का संपादन डाॅ. हरिश्चंद्र शाक्य ने किया है। इस संग्रह में कुल 10 कहानियां शामिल की गई हैं। इनकी कहानियों में आम आदमी की पीड़ा, घुटन, गरीबी, लाचारी, भुखमरी, शोषण, नारी मुक्ति आदि का चित्रण हैं, जो समाज की स्थिति का वर्णन कर रही हैं। पुस्तक की पहली कहानी ‘खुला अकाश’ जो कि पुस्तक का नाम भी है, इसमें महिला के जीवन की तुलना पिंजड़े में बंद चिड़िया के जीवन से की गई है। कहानी में बाल मनोविज्ञान के साथ-साथ नारी स्वतंत्रता की भावना का वर्णन है। छोटे बच्चे देव को उसके चाचू जन्म दिवस पर उपहार में रंग-बिरंगे चिड़िया से भरा पिंजड़ा देते हैं। चिड़िया पहले तो रिहाई की गुहार लगाती प्रतीत होती है, लेकिन जब उन्हें पिंजड़े में ही सुख-सुविधाएं मिलती हैं तो वे फिर पिंजड़े में ही रहने की आदि हो जाती हैं और पिंजड़ा खोल देने पर भी नहीं उड़ती हैं। जिस प्रकार खुला पिंजड़ा होने पर भी चिड़िया उड़ती नहीं है, उसी प्रकार औरत को भी खुला आकाश त्यागकर घर रूपी पिंजड़े में अपनों के साथ रहकर सारे सुख मिल जाते हैं। इसी प्रकार अन्य कहानियों में समाजी सरोकार को जोड़ते हुए औरत की स्थिति का वर्णन किया गया है। 80 पेज वाले इस सजिल्द पुस्तक को निरूपमा प्रकाशन, मेरठ ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 160 रुपये है।

गुफ्तगू अप्रैल-जून 2018 अंक में प्रकाशित

1 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-05-2018) को "सहते लू की मार" (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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