-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
‘उनका जो काम है वो अहले सियासत जाने/मेरा पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे।’ जिगर मुरादाबादी का यह शेर रमजान के महीने में प्रासंगिक हो उठता है। तमाम सियासतदान वोट बैंक की राजनीति के तहत तोड़-जोड़ में लगे रहते हैं और जनता इन्हीं के जाल में फंसी रहती है। मगर रमजान के महीने में विभिन्न समुदायों द्वारा आयोजित की जाने वाली रोजा-इफ्तार पार्टियां इस भ्रम को तोड़ देती हैं कि इंसानों को अलग-अलग ग्रुपों एवं नामों से संबोधित किया जाए। रोजा इफ्तार पार्टियों के दौरान आपसी भाईचारे और सौहार्द की अनोखी मिसाल बन जाती है। विभिन्न सरकारी संस्थानों, राजनैतिक पार्टियों, व्यापार मंडलों और मुखतलिफ कौमो-मजहब के लोग न सिर्फ रोजा-इफ्तार पार्टियों में शामिल होते हैं, बल्कि पूरी लगन और मेहनत से इसका आयोजन भी करते हैं। दरअसल, रमजान का महीना इस्लाम मजहब के अनुसार बरकतों वाला महीना है, जिसमें मुसलिम समुदाय के लोग एक महीने तक रोजा रखते हैं, तरावीह की नमाज पढ़ते हैं, सुबह सहरी खाते हैं और शाम को सूरज डूबने के समय रोजा खोलते हैं। दिनभर भूखे-प्यासे रहने के बाद शाम के वक्त सूरज डूबने पर जलपान वगैरह किया जाता है, तब इसी जलपान को इफ्तार कहते हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो इफ्तार उन लोगों के लिए है, जो दिनभर रोजा रहते हैं। लेकिन रोजेदार के साथ पूरे सलीके से बैठकर रोजा खोलने यानि में शामिल होने को भी इस्लामिक विधान के सवाब (पुण्य) का काम बताया गया है। रोजेदार के साथ रोजा खोलने की परंपरा ने इतनी मकबूलियत हासिल कर ली है कि आज न सिर्फ गैर मुसलिम रोजा इफ्तार में शामिल होते हैं, बल्कि रोजा इफ्तार पार्टियों के मेजबान भी बनते हैं। रोजा इफ्तार पार्टी के मामले में पंडित मोतीलाल नेहरु का नाम सबसे पहले आता है। इलाहाबाद में रोजा-इफ्तार पार्टी का सबसे पहला आयोजन करने वाले गैर मुसलिम व्यक्ति पंडित मोती लाल नेहरु ही थे। उन्होंने सबसे पहले आनंद भवन में रोजेदारों के लिए इफ्तार का आयोजन किया था। इसमें शहर के तमाम छोटे-बड़े मुसलमानों ने शिरकत की थी और उस दौर में पंडित मोती लाल नेहरु का यह आयोजन पूरे देश में चर्चा का विषय बना।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाने और उसे जारी रखने में हेमवंती नंदन बहुगुणा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 1974 में प्रदेश की मुख्यमंत्री की बागडोर संभालने के साथ ही बहुगुणा जी ने रोजा इफ्तार की नींव अपने जेरे-एहतमाम कर डाली और वह जब तक जीवित रहे, रोजा-इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहे। पूरे इलाहाबाद शहर के साथ गांवों के लोग जिनमें हिन्दू-मुसलिम दोनों ही थे, इस इफ्तार पार्टी में शिरकत करते। बाद के प्रमुख राजनीतिज्ञों में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंह राव से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक रोजा इफ्तार का आयोजन करते रहे हैं।
बुजुर्ग मोहम्मद मुतुर्जा के मुताबिक ‘बहुगुणा जी के इस व्यक्तित्व से लगता था कि वह अपने घर और परिवार के व्यक्ति हैं। हिन्दू और मुसलिम का कोेई फर्क नहीं पता चलता था।’ साहित्यकार यश मालवीय कहते हैं, ‘राजाओं-महाराजाओं के जमाने में भी सामूहिक रोजे-इफ्तार का आयोजन होता रहा है, उस जमाने में समाज के मानिन्द बुद्धिजीवियों को खासतौर पर आमंत्रित किेया जाता था। आज इस तरह के आयोजनों में राजनैतिक लोग ज्यादा मौजूद रहते हैं। फिर भी यह भारतीय एकता को तो प्रदर्शित करता ही है।’ इलाहाबाद में खुल्दाबाद व्यापार मंडल प्रकोष्ठ के सरदार मंजीत सिंह भी खूब जोशो-खरोश से रोजा इफ्तार पार्टी का आयोजन करते हैं। कहते हैं ‘हमें ये नहीं लगता कि यह सिर्फ मुसलमानों का मामला है, यह भारतीय और इलाहाबादी कौमो-मिल्लत का पैगाम बन गया है। इफ्तार में जितने मुसलमानों भागीदारी होती है, उससे अधिक गैर मुसलमानों की होती है।’
रोजा इफ्तार पार्टी के एक अन्य आयोजक अरमान खान करते हैं कि त्योहार आपसी मिल्लत का पैगाम लेकर आते हैं, रोजा इफ्तार भी ऐसा ही एक त्योहार है। यह इलाहाबाद ही नहीं पूरे देश की तहजीब का अहम हिस्सा बन गया है, पूरे देश में इस तरह का आयोजन होने लगा है। हमारी देखा-देखी ही अमेरिका के राष्टृपति भी रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल हो रहे हैं, और मेजबानी भी करने लगे हैं। यह सिर्फ इस्लामी तहजीब नहीं बल्कि भारतीय तहजीब का हिस्सा बन गया है।’ इस मौके पर सभी धर्मों के लोगों का एक साथ रोजा इफ्तार में शामिल होना कौमी यकजहती का परिचय तो देता ही है। सलीम शेरवानी द्वारा आयोजित होने वाले इफ्तार पार्टी जिसमें मुलायम सिंह तक शिरकत करते रहे हैं, के अलावा फायर बिग्रेड, रेलवे, हाईकोर्ट के वकीलों, विभिन्न शहरों के व्यापार मंडल, तमाम अदबी तंजीमों द्वारा आयोजित होने वाले रोजा इफ्तार पार्टियां भारत के गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल हैं, जिसे नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं है।
हालांकि इसके एक बात यह भी उभरकर सामने आने लगी है कि रोजा निहायत धार्मिक मामला है, इसलिए इफ्तार पार्टी के आयोजन में यह जरूर देखा जाना चाहिए कि जिन लोगों या जिन संस्थाओं द्वारा ये आयोजन किए जा रहे हैं, उनकी आय स्रोत का जरिए जायज (हलाल की कमाई) है या नहीं है। कुछ शहरों में पुलिस विभाग द्वारा आयोजित होने वाले रोजा इफ्तार पार्टी में लोगों ने जाने से मना भी किया है।
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