!! एकल काव्यपाठ के दौरान बोले पूर्व महाधिवक्ता एसएमए काज़मी !! इलाहाबाद। अरुण आदित्य की कवितायें हिन्दुस्तानियत को बखूबी ढंग से रेखांकित करती हैं। इनकी कविताओं में भारत के गांव
और संस्कारों का जिक्र होता है तो हम कहीं भी शर्मसार नहीं होते बल्कि
गौरव का अनुभव करते हैं। श्री आदित्य ने अपनी कविताओं में देशकाल और
सांप्रदायिकता विरोधी चित्रों को बहुत शानदार तरीके से उकेरा है, ऐसी
कविताओं से ही हमें वास्तविकता का अनुभव होता है। ये बातें पूर्व
महाधिवक्ता एसएमए काज़मी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर साहित्यिक संस्था
‘गुफ्तगू’ द्वारा लूकरगंज में आयोजित कवि अरुण आदित्य (संपादक-अमर उजाला,
इलाहाबाद) के एकल काव्यपाठ कार्यक्रम के दौरान कही। वे बतौर कार्यक्रम
अध्यक्ष बोल रहे थ,े कार्यक्रम में वक्ता के रूप में प्रो. अली अहमद फ़ातमी,
मुनेश्वर मिश्र और डॉ. पीयूष दीक्षित मौजूद थे, संचालन इम्तियाज अहमद गाजी
ने किया। श्री काज़मी ने कहा कि आज हम उपभोक्तावादी संस्कृति में जी रहे
हैं, अब लोग व्यक्तिगत अनुभूतियों का भी विज्ञापन चाहते हैं, लेकिन वैचारिक
मतदेभ स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, यही वजह है कि हमारी संस्कृति नष्ट हो
रही है, ऐसे में श्री आदित्य की कवितायें बेहद प्रासंगिक हो रही हैं, इनकी
कविताओं से यर्थाथ का बोध हो रहा है, कहीं भी बनावट महसूस नहीं होेता।
मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद उर्दू साहित्य के प्रख्यात आलोचक प्रो. अली
अहमद फातमी ने कहा कि श्री आदित्य ने अपनी कविताओं में भारत के उन परंपराओं
और प्रतीकों को रेखांकित किया है, जिन्हें हम भूलते जा रहे हैं। डिबिया,
चक्का-चूल्हा, अम्मा, चौकी, गमछा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए
इन्होंने अंतरराष्टीय मामलों को रेखांकित किया है, यही इनकी कविताओं का
सबसे बड़ा कमाल है। कहा जाता है कि असली भारत गांव में निवास करता है, इस
बात को अरुण आदित्य ने अपनी कविताओं में बखूबी ढंग से रेखांकित किया है,
हमारे लिए अच्छी बात यह है कि ऐसी सूझ-बूझ वाला व्यक्ति एक अच्छे अख़बार का
संपादक है। अपने वक्तव्य में वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि
जिस प्रकार प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में गांव के पिछड़े-दलितों के दुख का
बयान किया है, ठीक उसी अरुण आदित्य ने अपनी कविताओं में लोगों के दुखों को
बेहतर ढंग से उकेरा है, साथ ही सुखद अनुभूतियों का भी एहसास कराया है।
डॉ.पीयूष दीक्षित ने कहा कि अरुण आदित्य की कविताओं को सुनने के बाद भारत
के उन परंपराओं का सुखद एहसास होने लगता है, जिन्हें हम भूलते जा रहे
हैं।कार्यक्रम के शुरू में अरुण आदित्य ने अपनी कविताओं का पाठ किया।इस
मौके पर शिवपूजन सिंह,नरेश कुमार महरानी, डॉ. शाहनवाज आलम, सीआर यादव, अजीम
सिद्दीक़ी, राजेंद्र श्रीवास्तव, जयकृष्ण राय तुषार, शैलेंद्र जय, अनुराग
अनुभव, सफ़दर काज़मी, हसीन जिलानी, दिनेश अस्थाना आदि मौजूद रहे।
|
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें