गुरुवार, 16 जनवरी 2014

नज़र कानपुरी को ‘गुफ्तगू’ ने दिया फिराक गोरखपुरी सम्मान

 
नज़र कानपुरी को यह पुरस्कार देना सही कदम
इलाहाबाद। नज़र कानपुरी की शायरी पढ़ने के बाद यह बात बिना किसी संकोच के कही जा सकती है कि इनको ‘फिराक गोरखपुरी सम्मान’ दिया जाना एक सही कदम है। जिस तरह की शायरी फ़िराक़ साहब ने की है, उसी सिलसिले को नजर साहब आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में ‘गुफ्तगू’ का यह कदम बेहद सराहनीय है। ये बातें वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार अजामिल व्यास ने 22 दिसंबर को गुफ्तगू द्वारा आयोजित फिराक गोरखपुरी सम्मान समारोह में महात्मा गांधी अंतरराष्टीय हिन्दी विश्वविद्यालय में बतौर मुख्य अतिथि कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर इकबाल दानिश ने की जबकि संचालन इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। विशिष्ट अतिथि यश मालवीय ने कहा कि नज़र साहब की शायर का फलक बहुत ही बड़ा है, इन्होंने कसे हुए शिल्प में मोहब्बत की शानदार शायरी की है।पुलिस अधिकारी होने के बावजूद इनकी शायरी बेहद कोमल है। वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि नजर साहब ने पुलिस विभाग में बेहद सराहनीय कार्य किए हैं, जो एक अच्छे इंसान की पहचान है, जो अच्छा इंसान होता है वही अच्छा शायर भी होता है। नजर की शायरी पढ़ने के बाद यह सहज ही एहसास हो जाता है। अध्यक्षता कर रहे इक़बाल दानिश ने कहा कि नजर कानपुरी मेरे सबसे होनहार शार्गिदों में से हैं। ऐसे दौर में जब लोग साहित्य से दूर भाग रहे हैं, ऐसे में नजर साहब बेहतरीन शायरी का नमूना पेश कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि वे उर्दू की शायरी करते हैं। दिनेश चंद्र पांडेय उर्फ नज़र कानपुरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुफ्तगू ने मुझे सम्मानित करके और मेरे उपर अंक निकालकर मेरी बड़ी हौसलाअफजाई की है। इम्तियाज अहमद गाजी का कहना था कि हम पिछले 11 वर्षों गुफ्तगू का संचालन और प्रकाशन कर रहे हैं, लोगों के सहयोग से ही यह सिलसिल चला रहा है, आपकी हौसलाअफजाई होती रही तो यह सफर अभी बहुत आगे तक जाएगा। इस मौके पर संजय सागर शिवाशंकर पांडेय,संजय सागर,शुभ्रांशु पांडेय राजेंद्र श्रीवास्तव, एलखाक सिद्दीकी,रेहान खान, जयकृष्ण राय तुषार, शैलेंद्र जय आदि मौजूद रहेI
अनुराग अनुभव-
मैं हवा पुरवई, तुम महक सुरमई,
आओ मिलकर के कर दें समा जादुई
अजय कुमार-
गालियों से भरी ज़बान भी क्या,
सुन रहे मुग्ध हो ये कान भी क्या

शब्दिता संजू-
                                                            दर्द की इंतिहा हुई यारो,
मुझसे अब ये सहा नहीं जाता।


अमित कुमार दुबे-
                                                          अजब ही बात थी उसकी गली में,
अभी तक मैं वहां जाता रहा हूं।

डॉ.शाहनवाज़ आलम-
                                              आओ वक़्त रहते एक ऐसे खुदा की तलाश करें,
जो सभी इंसानों का खुदा हो


प्रभाशंकर शर्मा-
                                                      होंठ खामोश है दिल परेशान है,
लिख रहा हूं ग़ज़ल बस तुम्हारे लिए।


शिवपूजन सिंह-
पतझड़ में बहार बनके आयी एक नन्हीं परी,
अंधेरे में रोशनी बनके आयी एक नन्हीं परी।

कविता उपाध्याय-
                                                   लोग कहते हैं अंधेरों को उजाला कर दो,
                                                    शबनमी रात के पहलू में कई सपने हैं
छेड़ो न छेड़ो न रहने दो, अभी सजने दो।


इम्तियाज़ अहमद गा़ज़ी-
                                     जिसकी आंखों में पानी नहीं, उसके हक़ में दुआ कीजिए।
                                      प्यार करते हैं गर आप भी, एसएमएस कर दिया कीजिए।
भानु प्रकाश पाठक-
लक्ष्य पाना है तुम्हें अविरल चलो चलते रहो,
लाख आये मुश्किलें पर तुम सदा बढ़ते रहो।

पीयूष मिश्र-
साथ मेरा तुम दे न सकोगे होता है आभास,
दूर तुम उतना हो जाओगे, जितना मेरे पास।

मनमोहन सिंह तन्हा-
क्यूं खफ़ा हो कि तेरी राह में कांटे आये,
किसी की राह में कब फूल बिछाये थे तुमने।

शाहीन खुश्बू-
दिल इश्क़ में मेरा उनके जल जाय तो अच्छा।
शोलों की लपक उन तलक न जाय तो अच्छा।

डॉ.नईम साहिल-
   
                                              तुमने मुहैया मौत का हर सामान किया,
अव्वल-आख़िर अपना ही नुकसान किया।
 

अख़्तर अज़ीज़-
                                                              ज़ह्र दे कर वो सोचता होगा,
कहीं उल्टा असर न हो जाए।


रमेश नाचीज़-
                                                            नफ़रत से पूछते हैं मुहब्बत से पूछिए,
जो पूछना है आपको इज़्ज़त से पूछिए।


यश मालवीय-
तुम्हारी याद की तस्वीर लेकर, कि हम बैठे पुरानी पीर लेकर।
हवा खुद रक्स करने आ गयी है, कि पैरों में बंधी जंजीर लेकर।

नज़र कानपुरी-
                                                        सुहानी रात हो या धूप का सफ़र कोई।
वो साथ है तो मुझे ख़ौफ़ है न डर कोई।


इक़बाल दानिश-
                                                     दिल का ज़ख़्म महकता है गुलाबों की तरह,
सुर्खरु हैं तेरी नामूस पे मरने वाले।



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