मंगलवार, 22 जनवरी 2013

‘गुफ्तगू’ के उर्दू ग़ज़ल विशेषांक का विमोचन और मुशायरा

सुरेंद्र राही, शिवपूजन सिंह, फरमूद इलाहाबादी, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, रविनंदन सिंह, प्रो. अली अहमद फ़ातमी, एसएमए काज़मी, एहतराम इस्लाम, मुनेश्वर मिश्र, अखिलेश सिंह, कृष्ण बहादुर सिंह और हसीन जिलानी
इलाहाबाद। ‘गुफ्तगू’ का उर्दू ग़ज़ल विशेषांक कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है, इस अंक में भारत के उर्दू ग़ज़ल इतिहास का पूरा विवरण संक्षिप्त रूप में दिख रहा है। यह एक दस्तावेजी अंक है। यह बात पूर्व महाधिवक्ता एसएमए काज़मी ने 19 जनवरी को लूकरगंज में आयोजित परिचर्चा एवं विमोचन समारोह में कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री काज़मी ने की, मुख्य अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता एवं शायर एम.ए. क़दीर थे, संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। सबसे पहले इस अंक का विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि एम ए कदीर ने कहा कि गुफ्तगू के इस प्रयास की हमें प्रशंसा करनी चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए आने वाले दिनों में इनका और अच्छा अंक सामने आएगा। प्रो. अली अहमद फातमी ने कहा कि इस अंक का प्रकाशन करके गुफ्तगू ने ख़ासतौर हिन्दी पाठकों के लिए बहुत अच्छी सामग्री उपलब्ध करा दी है, उर्दू में तो इस तरह के बहुत से अंक प्रकाशित हुए हैं, लेकिन हिन्दी में यह पहला प्रयास है, हमें ऐसे प्रयासों की सराहना करनी चाहिए। रविनंदन सिंह ने अपने वक्तव्य में हिन्दी-उदू ग़ज़ल के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ग़ज़ल आज के समय की सबसे लोकप्रिय विधा बन गई है, हर भाषा ने इसे अपना लिया है। वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र का कहना था कि टीम गुफ्तगू हमेशा कोई न कोई नया कार्य करती रही है, इलाहाबाद में इस तरह के साहित्यिक कार्य का किया जाना हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। कृष्ण बहादुर सिंह ने कहाकि इस अंक को पढ़कर हमें उर्दू ग़ज़ल के संपूर्ण इतिहास की जानकारी हो जाती है, जोकि अधिकतर हिन्दीभाषी लोगों को नहीं है। कार्यक्रम के दौरान शिवपूजन सिंह, नरेश कुमार ‘महरानी’,वीनस केसरी, अजय कुमार, नायाब बलियावी,सबा खान, संजय सागर, शाह महमूद रम्ज, एहतराम इस्लाम, असरार गांधी आदि मौजूद रहे। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें अजय कुमार, नरेश कुमार ‘महरानी’, शैलेंद्र जय, शाहिद अली शाहिद, सबा ख़ान, हसनी जिलानी, जयकृष्ण राय तुषार,वीनस केसरी,रमेश नाचीज़, फरमूद इलाहाबादी, ख़्वाजा जावेद अख़्तर, नायाब बलियावी, एहतराम इस्लाम और एम.ए.क़दीर ने कलाम पेश किया।
विचार व्यक्त करते एसएमए काज़मी
विचार व्यक्त करते मुनेश्वर मिश्र
विचार व्यक्त करते अखिलेश सिंह
विचार व्यक्त करते रविनंदन सिंह
विचार व्यक्त करते कृष्ण बहादुर सिंह
 एम.ए. क़दीर-
आंख वह नीली-पीली होती रहती है।
मौसम में तब्दीली होती रहती है।

 एहतराम इस्लाम-
अक्स को धूल-धूल मत करना।
आइने को मलूल मत करना


ख्वाज़ा जावेद अख़्तर-
बहुत कुछ दिया है ज़माने को हमने,
ज़माने ने हमको दिया कुछ नहीं है।

 फरमूद इलाहाबादी-
आप उल्लू कहें या उल्लू-ए-सानी मुझको।
मुस्तनद कर दें कोई दे के निशानी मुझको।
अकबरो,आदिलो, सागर या दिलावर क्या हैं,
डिक्लेयर कीजे हज़लगोई का बानी मुझको।

शाहिद अली ‘शाहिद’-
मुंह छिपा के रो रहा था एक तारा रातभर।
पारा-पारा हो रही थी माहोपारा रातभर।


जयकृष्ण राय तुषार-
नये साल में
नई सुबह में
ओ मेरे दिनमान निकलना
अगर राह में
मिले  बनारस
खाकर मघई पान निकलना


इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी-
इश्क़ की राह पर आप चलिए मगर,
शह्र है हादसों का ज़रा देखकर।
नाज़ करते थे कल अपनी अंगड़ाई पर,
आज रोने लगे आईना देखकर।

 हसीन जिलानी-
निगाह में जो मोहब्बत का इक शरारा हो,
तो क़ायनात का दिलकश हर इक नज़ारा हो।

 रमेश नाचीज़-
हदों को पार करने का नतीज़ा देख लेना तुम।
किसी पर वार करने का नतीज़ा देख लेना तुम।
हमारे धैर्य की सीमा जहां पर खत्म होती है,
वहां तकरार करने का नतीजा देख लेना तुम

 सबा ख़ान-
जाओ आज़ाद हो तुम मेरे गमगुसार,
रूह ने कर लिया अब सुकूत अखि़्तयार।

शैलेंद्र जय-
ऋतुओं की ऋतु और शान है बसंत।
प्रकृति की खूबसूरत मुस्कान है बसंत।


नरेश कुमार ‘महरानी’-
गाड़ी दौलत जल दिखत, सड़कें दौड़े नाव।
अन्नाजी अनशन करें, साथी फेंकत दांव।
 वीनस केसरी-
खूब भटका है दर-ब-दर कोई।
ले के लौटा है तब हुनर कोई।
धंुध ने ऐसी साजिशें रच दी,
फिर न खिल पाई दोपहर कोई।

 अजय कुमार-
मीर ग़ालिब मैं खुद को समझता तो हूं,
शेर खुद का कभी एक कह ना सका।


धन्यवाद ज्ञापित करते शिवपूजन सिंह

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