जंगे आज़ादी के सिपाही ड़ॉ. सय्यद महमूद
- सरवत महमूद खान
ड़ॉ. सय्यद महमूद की गिनती गाजीपुर के महान विभूतियों में होती है, इनका जन्म वर्ष 1890 में ग्राम भीतरी में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर में पूरी हुई थी। इसके आगे की पढ़ाई क्वीन्स कालेज,वाराणसी और अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सम्पन्न हुई। इसके बाद पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गये, वहां से कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद जर्मनी गए। जर्मनी से ही इतिहास में पी.एच-डी. किए। आज़ादी आंदोलन के समय कांग्रेस द्वारा समय-समय पर जो नीति निर्धारण की जाती थी, उसमें इनकी अहम भूमिका होती थी। आपके पिता शेख मुहम्मद उमर बिहार के सिवान में कार्यरत थे। जौनपुर के खानकाहे रशीदीया से आप गहरी आस्था रखते थे। बचपन में ही नुरूद्दीनपुरा के प्रख्यात फकीर शेख मौलाना अब्दुल अलीम आसी गाजीपुरी के मुरीद बन गये थे। आपकी शादी बिहार के राष्ट्रवादी नेता मौलाना मजरूल हक की भतीजी से हुई थी।
ड़ॉ. सय्यद महमूद |
पढ़ाई पूरी करके भारत लौटकर इन्होंने पटना में वकालत शुरू किया। मगर, सन 1920 में गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर वकालत छोड़कर असहयोग एवं खिलाफत आन्दोलन में शामिल हो गए। अपनी प्रतिभा व प्रभावशाली भूमिका के चलते बिहार खिलाफत आन्दोलन के वजीरे आजम बनाये गये। इस पद पर रहते हुए पूरे भारत का भ्रमण किया। वर्ष 1922 बांकेपुर में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ जोरदार भाषण दिया, जिसकी वजह से इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस के हर आयोजन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे। सन 1929 से 1934 तक कांग्रेस के महासचिव रहे। सन 1933 में मनोनीत सभापति के साथ कलकत्ता अधिवेशन में जाते समय गिरफ्तार कर लिये गये। सन् 1930 में सरकारी अनुमति से यरवादा जेल में सन्धिदूत द्वय श्री जयकर और ड़ा स्प्रेू गांधी जी से मिले और जो सन्धि शर्तें लिखी गई उसमें महात्मा गांधी और पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ ड़ॉ. सय्यद महमूद के भी हस्ताक्षर थे। 30 और 31 अगस्त सन 1930 को मध्यस्थों ने नैनी जेल में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू के साथ ड़ॉ. सय्यद महमूद की लम्बी एवं गहन वार्तालाप हुई, जिसके बाद ही समझौते का प्रारूप तैयार हुआ।
गांधी जी ने यरवादा जेल से 5 सितंबर 1930 को मध्यस्थों को पत्र लिखा कि पंडित मोतीलाल नेहरू, ड़ॉ. सय्यद महमूद और जवाहर लाल नेहरू ने जो सहमति भेजी है, उससे मैं और मेरे साथी सहमत हैं। हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायिकता के साथ ही छुआछूत की बीमारी भी पूरे समाज में फैली हुई थी। इस समाजिक बुराई को दूर करने के लिए ड़ॉ महमूद ने सराहनीय प्रयास किया, इनके प्रयासों की प्रशंसा करते हुए गांधी जी ने 5 अक्टूबर सन 1933 को एक पत्र लिखा- ’प्रिय ड़ॉ. महमूद, मेरी कितनी इच्छा है कि अस्पृश्यता का यह समाधान हमे और अधिक एकता की दिशा में ले जाय। ईश्वर आपके प्रयत्न को सफल करे।’ ड़ॉ. सय्यद महमूद स्पष्ट वक्ता एवं पक्के वतन परस्त थे। सन 1948 में जमीयतुल उलेमाए हिन्द के इजलास में तत्कालीन उ. प्र के मुख्यमंत्री पं गोविंद बल्लभ पंत की मौजूदगी में एक ज्वलंत प्रश्न के उत्तर में ड़ॉ. सय्यद महमूद ने जोर देकर कहा कि ‘जो पाकिस्तान बनना देखना चाहते थे वह पाकिस्तान जा चुके। जो मुसलमान यहां हैं वह न केवल भारत के वफादार हैं बल्कि वह इस देश से उतना ही प्रेम करते हैं, जितना दूसरे लोग करते हैं।’
सन 1936-37 में प्रान्तीय धारा सभा के चुनाव में मुस्लिम बहुल क्षेत्र से चुनाव जीतने के कारण ड़ॉ. महमूद श्रीकृष्ण सिहं की मंत्रीमंडल में शिक्षा मंत्री बनाये गये। इसी प्रकार 1945-46 के धारा सभा के चुनाव में जीत दर्ज कराकर मंत्रीमंडल में विकास मंत्री बनाये गये। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रीमंडल में विदेश राज्यमंत्री बनाये गये थे। डॉ. महमूद साहित्यकार भी थे। आपने उर्दू और अंग्रेजी भाषा में दर्जनभर किताबे लिखी हैं। आप द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘कल का हिन्दुस्तान’ साहित्य जगत के लिए धरोहर है। ड़ॉ सैयद महमूद का इन्तकाल 28 सितंबर 1971 को दिल्ली में हुआ था। दिल्ली के मेहन्दीयान कब्रिस्तान मे आपको सुपुर्दे-ख़ाक किया गया है, जहां बड़े बड़े उलेमा, मुहद्दीसीन और मुजाहिदीन की भी कब्रें हैं।
(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2023 अंक में प्रकाशित)
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