नये रूप में प्रेम
कविता काव्य की एक शाखा है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने समस्त विचारों, अनुभवों और मनोभावों को सुस्पष्ट और सुन्दर ढंग से प्रस्तुत कर सकता है. वह भी बिना किसी रूकावट या बाधा के! कविता हर प्रकार के विषय को बड़े ही स्पष्ट रूप में अपने अन्दर समाहित कर लेती है. कविता का प्रचलन हर दौर में रहा है तथा इसमें अपने-अपने दौर की जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के साथ-साथ सांसारिक समस्याओं को प्रस्तुत किया जाता रहा है. इस प्रकार कवियों ने हर तरह के विषयों व भावों को कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है, किन्तु पुराने समय से लेकर आज के दौर तक ‘प्रेम’ ही एक ऐसा विषय रहा है जो हर दौर में कविता के विभिन्न अंगों के माध्यम से व्यक्ति किया जाता रहा है और पसन्द भी किया जाता रहा है.
कवयित्री डाॅ0 नन्दा शुक्ला ने भी अपने कविताओं के संग्रह ‘नेह निर्झर’ में इसी प्रेम को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है.कवयित्री प्रेम को ही जीवन का सार एवं सत्य मानती है परन्तु प्रेम की उत्पत्ति के विषय में उसका मन अत्यधिक जिज्ञासापूर्ण दृष्टिकोण रखता है और स्वयं ही इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास करती हुई दिखती है कि वह प्रेम जो जीवन का आधार है, जो इस दृष्टि की रचना का माध्यम है आखिर किस प्रकार उसकी उत्पत्ति हुई, वह कौन-सा आकर्षण था जिसने मनुष्यों को एक दूसरे के करीब कर रखा है! साथ ही कवयित्री प्रेम के प्रभाव से पूर्ण रूप से प्रभावित नजर आती है कि किस प्रकार प्रेमी-प्रेमिका को इस संसार में एक दूसरे के अतिरिक्त कोई दूसरा दिखाई नहीं पड़ता.
कवयित्री डाॅ0 नन्दा शुक्ला ने अपने मनोभावों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने हेतु काव्य संग्रह ‘नेह निर्झर’ को चार खण्डों में विभाजित किया है और प्रत्येक खण्ड प्रेम के भिन्न-भिन्न रूपों को अपने अन्दर समाये हुए है. ये तीनों ही खण्ड अलग-अलग होते हुए भी एक दूसरे से सम्बन्धित मालूम होते हैं और इनके अन्दर शामिल कविताएं एक सूत्र में बंधी हुई प्रतीत होती हंै.
‘नेह निर्झर’ के प्रथम खण्ड में कवयित्री ने प्रेमी-प्रेमिका की प्रथम भेंट के बाद उत्पन्न होने वाले एहसास व दोबारा मिलने की आस और अन्य दूसरी भावनाओं को प्रस्तुत किया है. इस खण्ड में दो कविताएं ‘वह मुस्कान’ और ‘वह तन्वी’ सम्मिलित है. ‘वह मुस्कान’ में कवित्री ने नारी की भावनाओं को प्रस्तुत किया हेै कि किस प्रकार प्रथम भेंट के बाद नारी को चहूं ओर अपना प्रिय ही दिखाई पड़ता है और उसमें ऐसी भावनाएं उत्पन्न होने लगती हैं, जिनसे आज तक वह पूरी तरह अन्जान थी. कवयित्री की प्रशंसा यहां पर करनी होगी कि उसने पुरुष की भावनाओं को भी उतनी आसानी और सहजता के साथ व्यक्त किया है जितनी कि स्त्री के भावों को व्यक्त किया है और इस खण्ड में शामिल दूसरी कविता ‘वह तन्वी’ पुरुष के अन्दर उत्पन्न होने वाले प्रेममयी अनुभवों और भावों को अपने अन्दर समाये हुए है.
प्रेम में जहां संयोग का हर्ष और उमंग होती है वहीं दूसरी तरफ रूठना, बिछड़ना और वियोग की टीस और आह भी होती है और इन समस्त भावों व अनुभवों से मिलकर ही प्रेम-रस पूर्ण होता है. कवयित्री इन समस्त बातों से भली भांति परिचित मालूम होती है. ‘नेह’ का दूसरा खण्ड इन्हीं भावों को अपने में समाहित किए हुए है. कवयित्री ने प्रेमी के रूठने पर प्रेमिका की कैसी मनोदशा होती है, वह किस प्रकार प्रेमी की एक-एक बात को याद करती है और प्रेमी के वियोग में किस प्रकार स्वयं को अकेला अनुभव करती है इस सबका बड़ा ही मार्मिक चित्रण कवयित्री ने किया है, साथ ही प्रेमी की मनोदशा को भी बड़ी सहजता से प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार प्रेमिका से रूठने के बाद भी वह अपनी प्रेमिका पर मुग्ध होता जाता है और उससे अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए व्याकुल रहता है. इस खण्ड में तीन कविताएं सम्मिलित हैं. जब हम अकेले थे, आशक्ति और चारू चंचल रूप इनमें से प्रथम दो कविताएं नारी की और अन्तिम कविता नर की मनोदशा से सम्बन्धित है.
कवयित्री ने जहां प्रेम में रूठने मनाने और अन्य भावनाओं को व्यक्त किया है वहीं वह वर्तमान समय से भी पूरी तरह परिचित है. वह जानती है कि आज का मानव भी प्रेम करता है, प्रेम में विश्वास रखता है लेकिन उसमें कुछ बनने की महत्वाकांक्षा उसको उसके प्रेम से दूर कर देती है और वह जो चाहता है वह पा भी लेता लेकिन बाद में उसे वह शान्ति नहीं मिल पाती है जिसकी वह अभिलाषा करता था, अब वह अपने प्रेम को ढूंढता है,, अब उसके हाथों में सिर्फ यादें ही शेष रह जाती है, और वह जीवन भर इन्हीं यादों व वियोग की आग में जलता रहता है और प्रेम को पुनः पा लेने की आशा करता रहता है. ‘नेह निर्झर’ की तीसरे खण्ड में सम्मिलित कविताएं इसी प्रकार के भावो को अपने अन्दर समेटे हुए है और इनका जहन पर ऐसा असर होता है कि पाठक सोचने पर मजबूर हो जाता है कि मनुष्य क्यों अपने प्रेम को समय रहते सफल नहीं कर लेता? वह अन्य दूसरी बातों को अधिक महत्व क्यों देता है? कवयित्री ने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेम के समस्त रूप, प्रेम में उत्पन्न होने वाले आर्कषण, प्रेम में उत्पन्न होने वाली समस्त भावनाओं, मिलने की आस, रूठने मनाने की प्रवृत्ति, वियोग का दुःख, प्रेम में असफलता और जीवन भर दिल में बसी उस असफलता की टीस को बड़े ही मार्मिक व दुखदायी रूप में व्यक्त किया है.
अपने इन भावों को व्यक्त करने के लिए कवयित्री ने जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है वह सभी उचित प्रतीत होते हैं. श्रृंगार रस के दोनों रूपों संयोग और वियोग का यथोचित प्रयोग हुआ है कवयित्री ने कविता के स्वतंत्र रूप का प्रयोग किया है जिसके कारण उसे अपने भावों को व्यक्त करे में किसी प्रकार की बांधा नहीं हुई है. कवयित्री ने कविताओं में अपने भावों को व्यक्त करने में किसी प्रकार की बांधा नहीं हुई है. कवयित्री ने कविताओं में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए छोटी व बड़ी पंक्तियों का प्रयोग किया है लेकिन जहां पर छोटी पंक्तियां प्रयोग की है वहीं पर कविताओं में जादू सा उत्पन्न हो गया है.
वस्तुतः कहा जा सकता है कि नेह निर्झर के माध्यम से कवित्री नन्दा शुक्ला ने अपने काव्य कौशल को अत्यधिक उपर्युक्त और सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने की चेष्टा की है और प्रेम को प्रेम के एक नये रूप में प्रस्तुत किया है. इनके इस काव्य संग्रह के लिए मैं डाॅ0 नन्दा शुक्ला को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं.
-सायमा नदीम3/6, अटाला काॅलोनी,
तुलसीपुर, इलाहाबाद
मानवीय रिश्ते को संदर्भित करता लगाव
कवयित्री डाॅ. नंदा शुक्ला का काव्य संग्रह ‘नेह निर्झर’ स्त्री ओैर पुरूष के बीच पनपने वाले मानवीय रिश्ते को संदर्भित करता रागात्मक लगाव के कई पट खोलता है.
आदम और हव्वा ने जिस सृष्टि की रचना की और उसके निर्माण की गाथा लिखी. नंदा जी भी अपनी काव्य अभिव्यक्ति से स्त्री पुरुष के सम्बन्धों के निर्माण की परिभाषा देती हैंः-
इस सृष्टि संरचना में
देा ही मानव का योग रहा
नर-नारी के मिलन योग में
जीवन निर्माण छुपा रहा।
कैसे दो मानव के भावों ने
बांधा खुद को एक बंधन में
था कौन-सा आकर्षक भाव उनमें
जो बंधे जीवन संगुफन में।
साहित्य में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों पर सदियों से विचार विमर्श किया जा रहा है. जयशंकर प्रसाद की कामायनी विनाश के बाद सृष्टि की रचना को संदर्भित करते हुए मनु, इड़ा और श्रद्धा के माध्यम से स्त्री-पुरुष के रागात्मक सम्बन्धों को विश्लेषित करने वाला मानक है.
नंदा जी ने भी एक काव्य गाथा रचने का प्रयास किया है. यद्यपि नंदा जी को अपनी कविताओं को पुख्ता बनाने के लिए अभी और अभ्यास की आवश्यकता है. कविताओं में दोहराव की स्थिति, जगह-जगह देखने को मिलती है. संयोग और वियोग के माध्यम से उन्होंने स्त्री-पुरुष के भावों का विवेचन किया है.
हर रचनाकार के भीतर एक बच्चा होना चाहिए जो निरन्तर सीख कर कुछ नया करने की चेष्टा करता है? नंदा जी को भी अपने भीतर उस बच्चे को जिलाए रखना चाहिए.
मैं इनके रचना कर्म की सफलता की कामना करती हूं. जीवन के क्लिष्ट और जटिल अनुभवों को इन्होंने सरलतम ढंग से प्रस्तुत किया है.
मेरी शुभकामनाएं नंदा जी के साथ है।
-ज्योतिर्मयीसहायक सम्पादक-हिन्दुस्तानी
ए-10, पत्रकार कालोनी, अशोक नगर, इलाहाबाद
पुस्तक का नाम- नेह निर्झर, ISBN.978.81.925218.0.0
कवयित्री- डा. नन्दा शुक्ला
पेज: 80, मूल्यः 100 रुपए सजिल्द, 60 रुपए पेपर बैक
प्रकाशकःगुफ्तगू पब्लिकेशन,इलाहाबाद
मानव-सृष्टि-संरचना
इस सृष्टि संरचना में,
दो ही मानव का योग रहा,
नर-नारी के मिलन योग में,
जीवन निर्माण छुपा रहा,
है आदि अनादि का सत्य यही,
भूधर में इसके आधार का अवलंब यही,
इस जीवन सार्थकता का साकार स्वरूप यहीं,
जीवन निर्माण की इस कला से ही,
निर्मित होती आ रही है सृष्टि यही।
कैसे दो मानव के भावों ने,
बांधा खुद को एक बंधन में,
था कौन-सा आकर्षक भाव उनमें,
जो बंधे जीवन संगुफन में।
है वह प्रेम का भाव जो हर कालों में,
दो मानव जीवन की काया में खिलता,
जो मधुर राग बन इस जीवन का,
हर सृष्टि में विकसित हो दो जीवन में मिलता।
है नर नारी का मिलन योग,
जीवन ही है उसका घटना योग,
यह सृष्टि अपरिमित और अपार,
उसी आदि भावों को लेकर निर्मित हुई आज।
यह भाव अनादि कालों से भी,
मानव जीवन का आधार रहा,
जिसके सुख-दुःख के भावों पर ही,
जीवन निर्माण कला चली रही।
यह कथा वही मुझको कहना,
कैसे दो मानव के संगम से,
कैसे जीवन इतिहास रचा,
कैसे निर्मित हुए वो भाव,
कैसे हुई वो आंखे चार,
कैसे वो दुख-सुख के भाव खिले,
कैसे विकलांत हुए वो भाव,
कैसे निर्मित हुआ मान-अभिमान,
कैसे जागा प्रेम अभाव,
फिर उसमें क्या-क्या भाव जगे,
इसकी ही कहनी है कथा,
फिर कैसे आया संगमकाल,
जिससे निर्मित हुई यह सृष्टि अपार,
है कथा वही है सत्य यही
उन ही भावों का है यह मायाजाल।
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