इलाहाबाद। साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ के तत्वावधान में मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन इलाहाबाद स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्टृीय हिन्दी विश्वविद्यालय के शाखा में किया गया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि मुनेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने किया। मुख्य अतिथि डाॅ. अमिताभ त्रिपाठी थे, जबकि विशिष्ट अतिथि के तौर पर वरिष्ठ शायर सागर होशियापुरी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। इस अवसर पर ‘गुफ्तगू कैम्पस काव्य प्रतियोगिता’ के विजेताओं को डीवीडी और फोटो वितरित किया गया।
सबसे पहले अनुराग अनुभव ने तरंन्नुम में कविता पढ़कर महफिल में जोश पैदा कर दिया-
मैं हवा पुरवई,तुम महक सुरमई /आओ मिलकर के कर दें समा जादुई।
युवा कवि पंकज फराज ने कहा-
फूलों की खूश्बू चुराने लगे हैं/मेरे महबूब ख़्वाब में आने लगे हैं।
फूलों की खूश्बू चुराने लगे हैं/मेरे महबूब ख़्वाब में आने लगे हैं।
भानु प्रकाश पाठक की कविता यूं थी-
धीरे-धीरे कगना उतारा बहुरानी, सेंदुरा क खतम भइल तोहरे कहानी
कुमार विकास ने लय में गीत पढ़ा-
करीब आसमां के और ज़मीं से दूर होना है, जरा मगरूर हूं फिर भी बहुत मगरूर होना है
करीब आसमां के और ज़मीं से दूर होना है, जरा मगरूर हूं फिर भी बहुत मगरूर होना है
लवकुश कुमार आनंद की कविता भी सराहनीय रही-
आज हजारो के संग, संग अलख जगाने आया,रूप वतन का फिर वह नया दिखाने आया है।
आज हजारो के संग, संग अलख जगाने आया,रूप वतन का फिर वह नया दिखाने आया है।
नितीश कुमार कुशवाहा ने कहा-
हालात हुये हैं कुछ यूं हर वक्त/ खल्वत को खलाओ से लड़ते देखा है।
हालात हुये हैं कुछ यूं हर वक्त/ खल्वत को खलाओ से लड़ते देखा है।
नित्यानंद राय ने कहा-
तुम भी शांत रहो, मत चिल्लाओ, तुम्हारे खेतों में भी उगेंगे माल, मत घबराओ।
तुम भी शांत रहो, मत चिल्लाओ, तुम्हारे खेतों में भी उगेंगे माल, मत घबराओ।
रमेश नाचीज़ की ग़ज़ल काफी सराही गई-
दर्द हम अपने दिल का सुनाने लगे/लोग महफिल से उठ-उठ के जाने लगे।
क्या नसीहत मैं नाचीज़ देता उन्हें/ऐब मेरे ही जब तो गिनाने लगे।
दर्द हम अपने दिल का सुनाने लगे/लोग महफिल से उठ-उठ के जाने लगे।
क्या नसीहत मैं नाचीज़ देता उन्हें/ऐब मेरे ही जब तो गिनाने लगे।
पीयूष मिश्र ने कहा-
मैंने ये कैसी सजा पाई है, घर की मेरे रोशनी चुराई है।
दूर हो जाता है वो चुभ-चुभकर, और कहता है मेरा भाई है।
मैंने ये कैसी सजा पाई है, घर की मेरे रोशनी चुराई है।
दूर हो जाता है वो चुभ-चुभकर, और कहता है मेरा भाई है।
कवयित्री गीतिका श्रीवास्तव ने तरंन्नुम ने गीत पेश किया-
दुनिया के बेडि़यों को तोड़ते जाना/खुद से जो वादा है उसको निभाना।
पग-पग काटे हैं ये ना बिसराना/इन कांटों के ही आगे खुशी का खजाना।
दुनिया के बेडि़यों को तोड़ते जाना/खुद से जो वादा है उसको निभाना।
पग-पग काटे हैं ये ना बिसराना/इन कांटों के ही आगे खुशी का खजाना।
विमल कुमार ने कहा-
नहीं सिर्फ़ पत्थरों में, नहीं बस किताबों में,कण-कण में व्याप्त सर्वत्र चेतना हूं मैं।
नहीं सिर्फ़ पत्थरों में, नहीं बस किताबों में,कण-कण में व्याप्त सर्वत्र चेतना हूं मैं।
शुभ्रांशु पांडेय ने व्यंग्य लेख पढ़ा-
आप लोग हिन्दी में किसी से कहते हैं न बैठ जाओ, सो जाओ, और तो और आ जाओ, अब ये बताइये कि अगर कोई बैठ गया तो मतलब ये हुआ कि उसकी क्रिया की गति समाप्त हो गयी है, फिर अगर उसे चलना कहा जाये तो वो क्या चलेगा।
आप लोग हिन्दी में किसी से कहते हैं न बैठ जाओ, सो जाओ, और तो और आ जाओ, अब ये बताइये कि अगर कोई बैठ गया तो मतलब ये हुआ कि उसकी क्रिया की गति समाप्त हो गयी है, फिर अगर उसे चलना कहा जाये तो वो क्या चलेगा।
मंजूर बाकराबादी ने व्यंग्य कविता पढ़ा-
रिश्वत चाहे जितनी ले लो, बाबू हमको नौकरी दे दो
चाय के बदले पव्वा पी लो, बाबू हमको नौकरी दे दो।
रिश्वत चाहे जितनी ले लो, बाबू हमको नौकरी दे दो
चाय के बदले पव्वा पी लो, बाबू हमको नौकरी दे दो।
विपिन श्रीवास्तव ने कहा-
आइये मत शरमाइये बैठिये हुजूर नवाजि़श आपकी
शैलेंद्र जय ने कहा-
जीने की कला मैंने फूलों से उधार ली है, यूं ही नहीं जि़न्दगी कांटों में गुजार ली है।
जीने की कला मैंने फूलों से उधार ली है, यूं ही नहीं जि़न्दगी कांटों में गुजार ली है।
अजय कुमार ने कहा-
मर्यादा के भाव न जाने बनते रघुनंदन, कट्टा पिस्टल हाथों में हैं माथे पर चंदन।
मर्यादा के भाव न जाने बनते रघुनंदन, कट्टा पिस्टल हाथों में हैं माथे पर चंदन।
वीनस केसरी की कविता लोगों ने पसंद किया-
खूबसूरत दृश्य हम गढ़ते रहे, शब्द चित्रों की सफलता के लिए
शह्र धीरे-धीरे, बन बैठा महीन, दिख रहा हर कोई, कितना जहीन।गांव दंडित है सहजता के लिए।
खूबसूरत दृश्य हम गढ़ते रहे, शब्द चित्रों की सफलता के लिए
शह्र धीरे-धीरे, बन बैठा महीन, दिख रहा हर कोई, कितना जहीन।गांव दंडित है सहजता के लिए।
तलब जौनपुरी ने कहा-
मेरी वो सरबुलन्दी है कोई छू भी नहीं सकता,
मेरी वो सरबुलन्दी है कोई छू भी नहीं सकता,
मुकाबिल अपनी हस्ती के केाई हस्ती नहीं लगता
अखिलेश द्विवेदी की कविता यूं थी-
इस जग में सब कुछ सुंदर है, तुम सुंदरता की किताब हो।
कितना मैं चाहूं तुझको, तुम मेरी चाहत का खिताब हो।
इस जग में सब कुछ सुंदर है, तुम सुंदरता की किताब हो।
कितना मैं चाहूं तुझको, तुम मेरी चाहत का खिताब हो।
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की ग़ज़ल भी सराही गई-
जख़्म देगा न बद्दुआ देगा, ग़म मेरा तुझको आसरा देगा,
शाम को तेरा छत पे आ जाना, शह्र में हादसा करा देगा।
जख़्म देगा न बद्दुआ देगा, ग़म मेरा तुझको आसरा देगा,
शाम को तेरा छत पे आ जाना, शह्र में हादसा करा देगा।
सुषमा सिंह की ग़ज़ल सराहनीय रही-
कितने जज़्बात हमारे दिल में, धूप-बरसात हमारे दिल में।
बाहरी क़ैद न हथकडि़यां हैं, हैं हवालात हमारे दिल में।
कितने जज़्बात हमारे दिल में, धूप-बरसात हमारे दिल में।
बाहरी क़ैद न हथकडि़यां हैं, हैं हवालात हमारे दिल में।
सौरभ पांडेय ने कहा-
रुइया बादल कोना-कोना,परती धरती दौड़े छौना।
आस दुपहरी सोख गयी रे, हरिया तन की क्यारी-क्यारी।आओ गटकें पान-सुपारी।
रुइया बादल कोना-कोना,परती धरती दौड़े छौना।
आस दुपहरी सोख गयी रे, हरिया तन की क्यारी-क्यारी।आओ गटकें पान-सुपारी।
नायाब बलियावी की ग़ज़ल ने महफिल में जोश पैदा कर दी-
दिल लगा लीजिए कुछ देर को हंस ली जै मगर,
मुस्तकि़ल इसके लिए आप को रोना होगा।
दिल लगा लीजिए कुछ देर को हंस ली जै मगर,
मुस्तकि़ल इसके लिए आप को रोना होगा।
सागर होशियारपुरी ने कहा-
हमने किसी के इश्क़ में खुद को मिटा दिया,
मेयार आशिक़ी का यूं उंचा उठा दिया।
है पूजना तो पूजिए एक-इक किसान को,
मेहनत से जिसने मिट्टी को सोना बना दिया।
हमने किसी के इश्क़ में खुद को मिटा दिया,
मेयार आशिक़ी का यूं उंचा उठा दिया।
है पूजना तो पूजिए एक-इक किसान को,
मेहनत से जिसने मिट्टी को सोना बना दिया।
मुख्य अतिथि डा. अमिताभ त्रिपाठी ने कहा-
किसी को इतना न चाहो कि बदगुमां हो जाये
न लौ इतना बढ़ाओ के वो धुआं हो जाये।
किसी को इतना न चाहो कि बदगुमां हो जाये
न लौ इतना बढ़ाओ के वो धुआं हो जाये।
अध्यक्षता कर मुनेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा- मन में जहां दुराव हो हमका न ले चलो प्यार का अलगाव हो, हमका न ले चलो। हम भाव के गगन के, उड़ते हुए पंछी, जलता हुआ अलाव हो, हमको न ले चलो। | |||||||
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