जो खालिक़े अकबर है वह क़ुर्बे रगे जां है,
हर आन वही सब का हाफि़ज़ है निगहबां है।1
अगर चाहे कोई हक़ आश्ना का मरतबा देखे।
उसे चाहिए सूये बहारे करबला देखे। 2
है नूर जिस जगह वहां ज़ुल्मत का क्या सवाल,
शामिल नहीं ग़ुरूर कभी इनकेसार में।3
हम तो है राह में आंखें को बिछाये अपने,
जाने क्यों मुझसे वह बेज़ार नज़र आते हैं।4
लाख वह नमाज़ी हो पारसा नहीं होगा।
मां को जो अज़ीयत दे बावफ़ा नहीं होगा।5
कहना पड़ेगा रहमतों वाला हुसैन को,
नाना इन्हीं का रहमतुललिल आलमीन है।6
आज भी सिलसिलये जौरो जफ़ा बाक़ी है,
हैं गले आज भी मज़लूमों के खंजर बदले।7
हो मुख़्तसर हयात मगर आगही के साथ,
सदियां भी कम हैं गर हो बशर गुमरही के साथ।8
बख़्शी हुई जहां को है कुदरत की आबरु,
है हुस्ने कायनात से फितरत की आबरु।9
सिर्फ़ दावये मुहब्बत हो नहीं सकती दलील,
है वही महबूब जो रखे मुहब्बत का भरम।10
अज़मते रोज़ा है या शाने करीमी उसकी,
रोज़े में सोना इबादत के बराबर निकला।11
रोज़ा ये पैरों का है ये न ग़लत उठे कभी,
वरना रोज़ा भी चला जायेगा रफ़तार के साथ।12
जहां में बाप का साया अजीब होता है,
जो उठ गया तो कहां फिर नसीब होता है।13
मुसतहिक़ की जो मदद करने को तैयार न हो,
ग़ौर से देखिए वह कोई रेयाकार न हो।14
रुख़ मिलाता नहीं जब हाथ में आता है क़लम।
बा अदब सर को झुकाये हुए चलता है क़लम।15
दुनिया का भी नेेज़़ाम अजीबो गरीब है,
किस्मत का है धनी तो कोई बदनसीब है।16
कमाले फन की करो आगही की बात करो।
जो जि़न्दगी है तो फिर जि़न्दगी की बात करो।17
है ज़रूरत इसमें किरदारों अमल के तेल की,
जब नहीं सकता कभी भी दौलतो ज़र का चराग़।18
किस क़दर साबित क़दम है ज़ुल्मो इसतेबदाद पर,
मुनहसिर है ये किसी इंसां की इसतेदाद पर।19
उंगली पकड़ के राह दिखाते रहे जिसे,
देखा उसी के हाथ में पत्थर लिए हुए।20
होगा क्या अंजाम इसका ये खुदा पर छोड़ दो,
राहे हक़ में हर क़दम बढ़कर उठाना चाहिए।21
मूसा के आशिकों का हर सू है बोलबाला,
फि़रऔनियत जहां में हाथों को मल रही है।22
बेहतर का जि़क्र कीजिए बेहतर के सामने,
खोलो ज़ंबां हमेशा बराबर के सामने।23
कमज़र्फ खोलता है ज़बां के बेमेहल मगर,
खोली ज़बां तो नस्ल की पहचान हो गई।24
इस दौर बेहाई का ये हाले ज़ार है,
है जिस्म पर लेबास मगर तार-तार है।25
क़त्ल और ग़ारतगरी का शोर आलमगीर है।
इसलिए सहमा हुआ हर एक जवानो पीर है।26
क्या बताउं बेरुखिये हुस्न क्या-क्या कर गई।
उनको भी रुसवा किया मुझको भी रुसवा कर गई।27
खेल बिल्कुल इस सदी में दोस्ताना हो गया।
एक घिरौंदे का बनना और मिटाना हो गया।28
दुनियाओ आखि़रत में हुआ है वही ज़लील,
जिसकी ज़बान चलती है तलवार की तरह।29
कल भी हम थे अम्न के हामी हैं हामी आज भी,
ज़ुल्म परवर जे़हन में फितनागरी है आज तक।30
क़दम को सोच कर रखना ज़रूरी है जवानी में,
सफ़र पुरखार राहों में बहुत दुश्वार होता है।31
कोई हसनैन न हमदर्द ग़रीबों का मिला,
यंू तो इस शह्र में रातो को मैं अकसर निकला।32
बेझिझक वह ग़ैर की महफि़ल में बैठे थे मगर,
देखते ही बज़्म में मुझको हया आने लगी।33
शब में पड़ती है मुसीबत तो ये आता है ख़्याल,
क्या खुशी की भी ज़माने में सहर होती है।34
जो मसलहतन भी कुछ कहते नहीं वह सुन लें,
हक़ बात न कहना भी ज़ालिम की हिमायत है।35
बाली में आ के बैठ गये मंुह को फेरकर,
क्या ये भी कोई रस्मे अयादत का नाम है।36
मेरी वफ़ा की झलक मेरी बात बात में है।
तुम्हारे ज़ुल्म का चर्चा तो कायनात में है।37
राह में उल्फ़त की जो कांटा गड़ा वह रहा गया,
हंू तो मंजि़ल पर मगर वह चुभ रहा है आज भी।38
अब मेरे आंसू भी मेरा साथ दे पाते नहीं,
सामना है रोज़ मेरा एक नई उफ़ताद से।39
राह दुश्वार है हर गाम पे दुश्वारी है,
फिर भी सहराये मुहब्बत का सफ़र जारी है।40
वह उलझ जाते हैं मुझसे छोटी-छोटी बात पर,
मैं समझता हूं कि ये भी हुस्न के जौहर में है।41
कूये जानां में हमारी आबलापाई न देख,
थक के बैठा था मगर अज़्मे सफ़र पैदा हुआ।42
देश प्रेमी बन गये हैं आज सब अहले नज़र,
बेखुदी छायी है ऐसी कुछ नहीं अपनी ख़बर।43
क्या जियाले थे वतन पर मिट गये एक आन में,
फ़कऱ् पर आने न पाया शाने हिन्दुस्तान में।44
वह अपनी बज़्म में करते हैं तज़किरा मेरा,
यक़ी है इल्म उन्हें मेरे हाले ज़ार का है।45
लाख अगि़यार की कसरत सही हसनैन मगर,
हो भरोसा जो खुदा पर तो है कि़ल्लत काफी।46
महलों से सिमटे गोशये तुरबत में आ गये,
अब पूछिए कि दौलतो कसरत को क्या हुआ।47
गेसूये ख़म हैं चेहरये अनवर पे इस तरह,
दोनों के दरमियान दिले ज़ार आ गया।48
मेरी आवाज़ पे जब कोई न इमदाद मिली,
तब समझ में मेरे आया कि से सहरा होगा।49
जो लिखा है मिरी कि़स्मत में मिलेगा वह ज़रूर,
फ़ायदा क्या सर को दीवारों से टकराने में है।50
कुछ नहीं है हैरत उसमें फेदाकारी न हो।
जिस बशर के भी दिमागो-दिल में खुद्दारी न हो।51
दिलो-दिमाग की एकसानियत भी है दरकार,
बहुत ज़रूरी है ये रब्तबाहमी के लिए।52
मैं तो रुसवा ही हुआ आप भी महफ़ूज नहीं,
क्या कहें आपके कूचे से मैं क्योंकर निकला।53
हर एक काम की ख़ातिर है वक़्त बंदे का,
नहीं है वक़्त तो ख़ालिक की बंदगी के लिए।54
परदे में दोस्ती के है नफ़रत भरी हुई,
अब तो मुनाफक़त भी मुहब्बत का नाम है।55
इब्तेदा मुझसे मुहब्बत की ज़माने में हुई,
सच अगर पूछो हमीं पर इन्तेहा आज भी।56
वह नहीं करता कभी फिरदौस बनवाने का शौक़,
हाल जिसने भी सुना है जन्नते शद्दात का।57
राहे उल्फ़त की अज़ीयत झेलना आसां नहीं,
वह मुहब्बत ही कहां है जिसमें दुश्वारी न हो।58
काश कोई पूछता मेरे दिले नाशाद से,
फ़ायदा हासिल हुआ कुछ नालओ फ़रयाद से।59
राह दुश्वार है हर गाम पे दुश्वारी है,
फिर भी सहराये मुहब्बत का सफ़र जारी है।60
क़तरा वह बस है समा जाये समुन्दर जिसमें,
आग पानी में लगा दे वही चिन्गारी है।61
उनके दरदे इश्क़ का सौदा हमारे सर में है।
वहशते दिल का असर सहरा में दश्तो दर में है।62
दामन का चाक चाके गरेबां से मिल गया,
इतना बढ़ा जुनूं दिले ख़ाना खराब का।63
आंखें बचा के आये अयादत के वास्ते,
क्यों जल गया हसद से कलेजा जनाब का।64
इम्तेहां राहे मुहब्बत में कदम वह क्यों रखे,
जिसकी राहे हक़ में सर देने की तैयारी न हो।65
चल रहे है कूचये जानां में बेखौफ़ो खतर,
जो रहे उल्फ़त में चल सकते नहीं दो गाम भी।66
आग का दरिया है एक जिसमें गुज़रना है ज़रूर,
काश ग़ाफि़ल जान लेता इश्क़ का अंजाम भी।67
तश्नागने वादिये उल्फ़त को प्यासा देखकर।
पानी पानी हो गया ये हाल दरिया देखकर।68
वाये नाकामी की साहिल जब नज़र आने लगा,
डगमगाई नाव दरिया का कनारा देखकर।69
दोस्तों से इतने खाये धोखे हमने बार-बार,
अब तो डर लगता है मुझको अपना साया देखकर।70
जुनूं में कूचे जानां जब नहीं मिलता बाआसानी,
मेरे हमराह हो जाती है मेरी चाक दामानी।71
बिछाये दुश्मनों ने लाख मेरी राह में कांटे,
मैं उसको रौंद कर पहुंचा सरे मंजि़ल बा आसानी।72
अजल से लेके अबद तक हर किसी के लिए।
खुलूस शर्त है माबैन दोस्ती के लिए।73
इश्क़ में तब है मज़ा जब कि हो एक़रार के साथ।
‘हां’ का मफ़हूम भी हो लहजये इन्कार के साथ।74
पहुंचे बाज़ारे मुहब्बत में मगर उस लम्हा,
जब खरीदार चले जा चुके बाज़ार के साथ। 75
वह संभल सकता नहीं है राह में ठोकर के बाद।
पैर फैलाता है जो भी कामते चादर के बाद।76
कोई भी ऐसा न था देता जो मंजि़ल का पता,
बढ़ न पाये एक क़दम हम तेरे संगे दर के बाद।77
जो लोग यूं तो मुहब्बत की बात करते हैं।
वही तो हर घड़ी नफ़रत की बात करते हैं।78
बजोर रिश्वतो असरात आज मिलती है,
कहीं ये जाती है अब बात मुनसिफी के लिए।79
बिजलियों की ज़द पे मेरा आशियाना आ गया।
इस बहाने ख़ैर उनको मुस्कुराना आ गया।80
जुनूने इश्क़े ले जाता है सहरा की तरफ़ ज़बरन,
मेरा रुख़ जब भी सूए कूचए दीदार होता है।81
मतलब की दोस्ती जो किसी को किसी से है।
देखा गया है बाद में नफ़रत उसी से है।82
मुल्क से उल्फ़त का किस्सा खुद नुमायां हो गया।
लब पे जब ‘हसनैन’ के कौमी तराना आ गया।83
मेरे नालों में कम अज़ कम ये असर पैदा हुआ।
नींद उनकी उड़ गई और दर्द सर पैदा हुआ।84
तोहमत किसी पे इसकी लगाना फुजूल है,
बदनामी जब भी होती है अपनी कमी से है।85
इस दौर में सच्चाई ढूंढे से नहीं मिलती,
अफ़वाहों की दुनिया में नायाब सदाक़त है।86
राह में उल्फ़त की जो कांटा गड़ा वह रह गया,
हूं तो मंजि़ल पर मगर वह चुभ रहा है आज भी।87
हर ऐब हुनर अब है ये दौरे सियासत है।
ना अहल रक़ीबों के हाथों में हुकूमत है।88
पहलू बदलना छोडि़ए मक्कार की तरह।
जिसकी तरफ़ भी रहिए तरफ़दार की तरह।89
सूये मंजि़ल जो नहीं चलते हैं रस्ता देखकर।
ठोकरें हमराह हो जाती हैं अन्धा देखकर। 90
एक बेकसी शिकवए बेदाद भला क्या करती,
रंग बदले हुए हालात थे खंज़र की तरह।91
क़ैस और फरहाद के किस्से हमें बतला गए,
कुए जानां का लगाना रोज चक्कर चाहिए।92
तिफ्ल मतकब न कीजै फलसफे की गुफ्तगू,
फलसफे की बात करिए फलसफी की देखकर।93
दर्द की तरह उठे दिल की तरह बैठ गए,
पास उल्फ़त किया मैंने लबे जां होकर।94
अल्लाह का करम है ये अक्सर ज़मीन पर।
अब्रे करम बरसता है बंज़र ज़मीन पर।95
मोहब्बत में है क्या लज़्ज़त इसे मुश्किल है समझाना,
कोई तो बात है जो जान दे देता है परवाना।96
ज़माना सुन रहा था शौक़ से इसका नहीं शिकवा,
हमें नींद आ गई खुद कहते-कहते अफ़साना।97
किरदार आदमी की है पहचान देखिए।
मत दूसरों का अपना गिरेबान देखिए।98
जहां में बुझ गए कब से मुरव्वतों के चिराग़,
है नफ़रतों का अंधेरा खुलसे यार कहां।99
किस तरह से गुजरते हैं फुरकत में रात दिन,
पूछे ये कोई लज़़्ज़ते दिल बेक़रार से।100
गुफ़्तगू के सितम्बर 2012 अंक में प्रकाशित
- हसनैन मुस्तफ़ाबादी
155-सी/1सी/1ए, अली नगर, करैलाबाग़
इलाहाबाद-211016
मोबाइल नंबर: 9415215064, 8004904872
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