मंगलवार, 11 सितंबर 2012

अकबर इलाहाबादी की पुण्यतिथि पर मुशायरा

इलाहाबाद। मशहूर हास्य-व्यंग्य शायर अबकर इलाहाबादी की पुण्यतिथि पर ‘गुफ्तगू’ के तत्वावधान में महात्मा गांधी अंतरराष्टृीय हिन्दी विश्वविद्यालय परिसर में मुशायरे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि अशोक कुमार स्नेही ने किया, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. के.एन. भट्ट मौजूद रहे। फिल्म ‘थ्री एडीएट’ में मंत्री जी का अभिनय करने वाले अभिनेता एवं कवि अतुल तिवारी तथा वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र विशिष्ट अतिथि के रूप मौजूद रहे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। इस अवसर पर युवा ग़ज़लकार व स्वरूपरानी मेडिकल कालेज के प्रोफेसर डा सूर्या बाली ‘सूरज’ के एम्स भोपाल में एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त किये जाने पर ‘गुफ्तगू’ द्वारा सम्मानित किया गया।

फिल्म ‘थ्री एडीएट’ में मंत्री जी का अभिनय करने वाले अभिनेता एवं कवि अतुल तिवारी

अशोक कुमार स्नेही -
कहना महल दुमहले सूने सूनी जीवन तरी हो गई,
प्रिया तुम्हारे बिना मिलन की सूनी बारादरी हो गई।


फरमूद इलाहाबादी -
पहले के जैसे गाल हमारे न तुम्हारे/अब होंठ लाल लाल हमारे न तुम्हारे।
चांदी सा जिस्म और न मोती के जैसे दांत/सोने के जैसे बाल हमारे न तुम्हारे।

तलब जौनपुरी -
कब तक रहेगी यह सियासत आज़माने के लिये,
मेम्बर कहां से लाये हम संसद चलाने के लिये।
वह तमन्ना कर उठ खड़ा होता है अपनी कब्र से,
क़ातिल पहुंचता जब कभी चादर चढ़ाने के लिये।

डा. अमिताभ त्रिपाठी
हम अपने हक़ से जि़आदा नज़र नहीं रखते,
चिराग़ रखते हैं शम्सो-क़मर नहीं रखते।

सौरभ पांडेय -
रात की ऐय्यारियां हैं, दिन चढ़ा परवान है
एक शहज़ादा चला बनने नया सुल्तान है।
आदमी या वस्तु है, या आंकड़ों का अंक भर,
या, किसी परियोजना का तुक मिला उन्वान है।

 
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी -
सच को सच से मिलाके छोडूगा/इस ज़मी को हिला के छोडूगा।
वो जो छल बल से बना है शायर/उसको घर पे बिठा के छोडूगा।

आसिफ़ ग़ाज़ीपुरी -
जी के देखो ये जिन्दगी क्या है, हाथ कंगन को आरसी क्या है।
सुब्ह से शाम करना मुश्किल है, तेरे वादे की उम्र ही क्या है।

नजीब इलाहाबादी -
अपने अंजाम से बेख़बर जि़न्दगी।
रात दिन कर रही है सफ़र जि़न्दगी।


अजीत शर्मा ‘आकाश’-
जंग जारी ही रहे साथी अंधेरे के खिलाफ़,
रात लम्बी हो भले, दिन अपना आएगा दिन।

रमेश नाचीज़ -
वह मुझे खुश देखकर जलता रहा, मैं निरंतर फूलता-फलता रहा।
एक मैं अपना समझता था उसे, एक वो मुझको सदा छलता रहा।


मोहम्मद शाहिद सफ़र -
अगर मेरी खुशियों ग़म तोड़ देता, ग़ज़ल कहके अपनी कलम तोड़ देता।
ज़रा और कुछ देर साहित पे होता, समुन्दर का सारा भरम तोड़ देता।

शुभा्रंशु पांडेय ने हास्य व्यंग्य लेख पढ़ा-

केशव सक्सेना -
हमारी संस्कृति को
विदेशी तक करते हैं नमन
आज रो रहा इस तरह चरित्र हनन

 
गुलरेज़ इलाहाबादी -
नन्ही कोपल बढ़ने दो तुम, हमको पढ़ने लिखने दो तुम।
फिर देखो के कैसी हैं हम, जैसी मां है वैसी हैं हम।
फरहान बनारसी -
फ़क़त गुलों में ही मत ढूंढ़ रंग व बू चमन
ये ख़ार ए गुल भी हैं ए दोस्त आबरु ए चमन।

वीनस केसरी -
हम जो कह दें उसे मान जाया करो, आइना से जुबां मत लगाया करो।
मैं भी तुमको परेशां करूं रात दिन, तुम भी भी मुझको बराबर सताया करो।

डा. सूर्या बाली ‘सूरज’ -
बादे सबा के झोके सा आकर चला गया,
आंखों से कोई नींद चुराकर चला गया।
मैं देखता ही रह गया इक ख़्वाब सा उसे,
वो जि़न्दगी को ख़्वाब बनाकर चला गया।



 विमल वर्मा ने -
हर पल सिक्का है विमल, और समय टकसाल
सोच-समझकर खर्च कर, हो जा माला-माल।

दिव्या सिंह -
मंजिल पाकर तो सभी खुश होते हैं
पर तुम कुछ ऐसा करना
मंजि़ल खुश हो पा के तुम्हें।


नित्यानंद राय-
चलो जी माना मैं ख़्वाब देखता हूं, दिन रात देखता हूं बेहिसाब देखता हूं।
गोली बारूद नहीं, कीनू अंजीर लाया है, पड़ोस से आया ऐसा, कसाब देखता हूं।

 
कार्यक्रम को संबोधित करते प्रो. के एन. भट्ट

कार्यक्रम को संबोधित करते वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र

अजय कुमार -
बड़े-बड़े सब कवियों ने मां भारत का गौरव गाया।
वो रवि शशि बना चमक गये, जन-जन का जिसने अपनाया।
सुनकर कहीं मायूस न होना ऐ मेरे दोस्त
कुछ हद तक दीवाने हम भी कहलाते हैं।

अंत में कार्यक्रम के संयोजक शिवपूजन सिंह ने सबके प्रति आभार प्रकट किया।

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