मंगलवार, 30 जुलाई 2019

समाज के लिए समर्पित हैं डाॅ. कृष्णा मुखर्जी

डाॅ. कृष्णा मुखर्जी


                                                         - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
 20 सितंबर 1941 को कोलकाता में जन्मी डाॅ. कृष्णा मुखर्जी चिकित्सा और समाज सेवा में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं, वे प्रयागराज के सोहबतिया बाग मुहल्ले में रहती हैं। उन्होंने अपनी चिकित्सीय सेवा से एक अलग मुकाम बनाया है। आपने आगरा से एमबीबीएस, लंदन से एम.एस., यूएसए से एफएसीएस. और वियना से एमएसएच किया। लंदन में एसोसिएट मेम्बर आॅफ रायल कालेज रही हैं। सन 2000 से वर्तमान समय तक कमला नेहरु मेमोरियल अस्पताल में चिकित्सा अधीक्षक और चीफ कन्सल्टेंट हैं। 1968 से 2000 तक मोती लाल नेहरु मेडिकल काॅलेज, इलाहाबाद में स्त्री रोग एवं प्रसूति विभाग की विभागाध्यक्ष और प्रधानाचार्य रही हैं। आज भी आपको पढ़ाने की विशेष रुचि है, इसीलिए एमबीबीएस, एमएस और डीएनबी के छात्र-छात्राओं को पढ़ाती हैं। बांझ औरतों के इलाज के तहत इन विट्रोर्फार्टलाइजेशन/आईवीएफ और लोप्रोस्कोपिक सर्जरी एवं कैंसर सर्जरी के लिए आप एक दक्ष शल्यक हैं और कई शोध कार्य किया है। इनके काम को देश-विदेश की गोष्ठियों में और अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय जर्नलों में प्रस्तुत किया गया है। 
 आप 1991 से 1993 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय और फ़ैज़ाबाद विश्वविद्यालय में सदस्य एकेडमिक काउंसिल, 1991 से 1994 तक आनरेरी कन्सटेंट फैमिली प्लानिंग एसी आॅफ इंडिया और डिविजनल अस्पताल उत्तर भारत रेलवे इलाहाबाद मंडल रही हैं। इंडियन काॅलेज आॅफ आब्सेट्रेटिक व गाइनकोलाॅजी, नेशनल एसोसिएशन आॅफ वालेंट्री स्टरिलाइजेशन एवं फैमिली वेलफेयर गवर्निंग काउंसिल सदस्य रही हैं। 1996 से 1997 तक एसोसिएशन आॅफ आॅन्कोलोजिकल आॅफ इंडिया की उपाघ्यक्ष रहीं हैं। फेडरेशन आॅफ आब्सट्रेटिक व गाइनोकोजिकल सोसाइटी की अध्यक्ष, अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन की उत्तर प्रदेश महिला समिति की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के प्रांतीय अलंकरण समिति की अध्यक्ष रही हैं।
 डाॅ. कृष्णा मुखर्जी की अब तक एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें स्वास्थ्य ही जीवन, कैंसर से कैसे बचें, सुरक्षित मातृत्व की तैयारी, कुछ परिचर्चा स्वास्थ्य संबंधी, मातृत्व एक सुखद अहसास, भारतीय संस्कृति एवं एड्स, गर्भकाल एवं प्रसव संबंधित आवश्यक जानकारियां, एड्स सिनरियो इन इंडिया एंव भारतीय संस्कृति, एवरनेस आॅफ कैंसर, रिव्यू आॅफ गाइनोकोलाॅजी, ए हैंडबुक आॅफ गाइनोकोलाॅजी, भारतीय संस्कति-मधुमेह तथा अन्य पद्धतियों से इसका इलाज और आपातकालीन विपत्तियों का समाधान एवं बचाव आदि शामिल हैं। पत्रिकाओं और अख़बारों में स्वास्थ्य संबंधी लेख प्रायः प्रकाशित होते रहते हैं।
 सन् 2000 से ‘आसरा’ केयर प्रोजक्ट से जुड़कर मलिन बस्तियों में समय-समय पर मुफ्त मेडिकल कैम्प में मरीजों को स्वास्थ्य सेवा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की जानकारी, परिवार नियोजन, टीकाकरण करवाती हैं। साथ ही ‘आशा तथा बेसिक हेल्थ वर्कर’ द्वारा बस्तियों को साफ़ सुथरा रखना, हरी सब्जियां उगवाना, स्वच्छ पीने के पानी की उपलब्ध करवाना, महिलाओं को विभिन्न प्रकार की ट्रेनिंग जैसे सिलाई, लाख का सामान बनवाना, बेत-बांस का सामान बनवाने का प्रशिक्षण करवाकर रोजगार के लिए सक्षम करवाती है।
 अब तक आपको ‘डाॅ. बीसी राय नेशनल एवार्ड फाॅर ऐनीमेन्ट’, 1995 में परिवार कल्याण मंत्रालय दिल्ली से ‘कुछ परिचर्चा स्वास्थ्य संबंधी’ पुस्तक पर 25000 रुपये का नगद पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से ‘सौहार्द सम्मान’, ‘कैंसर से कैसे बचें’ और ‘सुरक्षित मातृत्व की तैयारी’ नामक पुस्तकों पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नगद पुरस्कार, ‘साहित्य महोपाध्याय’, ‘मदर मेटेसा एवार्ड’, ‘सुमन चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘भारत भूषण सम्मान’ समेत अनके पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। आज भी आप समाज सेवा से तत्परता से जुड़ी हुई हैं।  
 
(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून: 2019 अंक में प्रकाशित )

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