शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

दोहा विशेषांक: साहित्य क्षितिज में खिला चांद


                                              - शिवाशंकर पांडेय
                                           
 साहित्य में प्रयोग का सकारात्मक और पुरजोर असर देखना हो तो ‘गुफ़्तगू’ का दोहा विशेषांक देखना मुफीद होगा। सीमित संसाधन के बीच निकलने वाली हिन्दुस्तान साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका गुफ़्तगू ने अपनी लगातार प्रयोगधर्मिता के चलते ही बहुत कम समय में पाठकों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। कैलाश गौतम, बेकल उत्साही विशेषांक, महिला विशेषांक, ग़ज़ल विशेषांक, ग़ज़ल व्याकरण विशेषांक आदि इसके खास उदाहरण हैं। बहरहाल, प्रयोग विधा को आगे बढ़ाते हुए गुफ्तगू का मार्च 2019 का ताजा अंक दोहा विशेषांक पर केंद्रित है। दोहा जैसे विषय पर विशेषांक निकालना और उसे समृद्धिवान बना देना काबिल-ए-तारीफ तो हो ही जाता है। इस अंक में परिशिष्ट के रूप में रामचंद्र राजा और राम लखन चैरसिया को शामिल किया गया है। इस अंक में कबीरदास, गोवामी तुलसीदास, रहीम, रसखान, अमीर खुसरो, बिहारी हैं तो दूसरी तरफ बाबा नागार्जुन निदा फाजली, बेकल उत्साही, गोपालदास नीरज, कैलाश गौतम, बुद्धिसेन शर्मा, बुद्धिनाथ मिश्र, यश मालवीय, अशोक अंजुम, हस्ती मल हस्ती, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी से लेकर पुष्पलता शर्मा, अंजलि सिफर, पीयूष मिश्र, देवी नागरानी, अमन चांदपुरी, विकास भारद्वाज, सोनिया वर्मा जैसे नये नवेले किन्तु काबिल रचनाकार तक के दोहों को पाठकों से परिचित कराया गया है। इसमें तो कई ऐसे रचनाकार हैं जो एकदम नये तो हैं पर सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभर के सामने आये हैं। कहा जा सकता है कि नये-पुराने रचनाकारों का बेहतर प्लेटफार्म भी बन गयी है। हरे राम समीप का साक्षात्कार, शिल्प ज्ञान में डाॅ. बिपिन पाण्डेय और गुलशन-ए- इलाहाबाद में नीलकान्त के अलावा तब्सेरा, चैपाल जैसे स्तम्भ अपनी अलग छवि छोड़ते हैं। सालेहा सिद्दीकी का लेख उर्दू शायरी में दोहे का चलन, डाॅ. विभा माधवी का आलेख, दोहाः प्राचीन काल से आधुनिक काल तक, पवन कुमार का लेख हिन्दी और अन्य भाषाओं में दोहा की स्वीकार्यता, प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’् की दोहे के जरिए मानवता की बात, डाॅ. अनुराधा चंदेल ‘ओस’ की कवि रामचन्द्र राजाः बसू संगम तीर, शिवाशंकर पांडेय, भोला नाथ कुशवाहा की रोशनी डालती टिप्पणी भी गुफ़्तगू को पठनीय और संग्रहणीय दोनों की कैटेगरी में ला देते हैं। 136 पेज के इस विशेषांक की कीमत मात्र 30 रुपये है।
( गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2019 अंक में प्रकाशित )

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