रविवार, 17 मार्च 2019

स्त्रियों का साहित्य सृजन बेहद खास: एडीआरएम

महिला दिवस पर गुफ्तगू की ओर से हुआ आयोजन
‘आखिर मैं हूं कौन’, ‘किसकी रचना’ और ‘प्रेम विरह में आलोकित’ का विमोचन


इलाहाबाद। एक दौर था जब हम अपने घरों में फिल्मी गाने नहीं गा सकते थे, इसे बहुत ही खराब माना जाना था, अंताक्षरी के खेल में भी हम रामचरित मानस और देशभक्ति गीत ही गा सकते थे। मगर आज बेहद खराब से लेकर अश्लील गीत गीत गाये और गुनगुनाए जा रहे हैं। इसके विपरीत इस दौर में भी आज की स्त्रियां साहित्य सेवा कर रही हैं, कविताएं गढ़ रही हैं, समाज को दिशा दे रही हैं। आज महिला दिवस पर तीन कवयित्रियों की किताबों का विमोचन होना साबित करता है कि स्त्री समाज और देश के प्रति सजग हैं और साहित्य का सृजन कर रही हैं। ये तीनों की कवयित्रियों बेहद बधाई की पात्र हैं। यह बात एडीआरएम अनिल कुमार द्विवेदी ने ‘गुफ्तगू’ द्वारा 09 मार्च की शाम सिविल स्थित बाल भारती स्कूल में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर तीन पुस्तकों के विमोचन करते हुए कही। कार्यक्रम के दौरान ऋतंधरा मिश्रा की पुस्तक ‘आखिर मैं हूं कौन’, रचना सक्सेना की पुस्तक ‘किसकी रचना’ और कुमारी निधि चैधरी की पुस्तक ‘प्रेम विरह में आलोकित’ का विमोचन किया गया।

गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि इन तीनों पुस्तकों की कवयित्रियों ने अथक परिश्रम करके कविता का सृजन किया और इसके बाद पुस्तक प्रकाशित कराया, यह एक बहुत बड़ा काम है। इसके लिए तीन ही कवयित्रियां बधाई की पात्र हैं, लेकिन इन्हें ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिए, अभी इससे भी बेहतर रचनाएं की जा सकती हैं, क्योंकि और बेहतर करने की संभावना हमेशा बनी रहती है। गलतफ़हमी बनी रहने से और बेहतर सृजन की संभावना समाप्त हो जाती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. राम नरेश त्रिपाठी ने कहा कि कविता का सृजन ईश्वर की देन है, ईश्वर द्वारा जो मनुष्य को प्रदान किया जाता है, उसे ही मनुष्य सृजन के रूप में अपने अंतर्मन से बाहर निकालता और लोगों के समाने प्रस्तुत कर देता है। आज जिन महिलाओं की पुस्तकों का विमोचन हुआ है, इन्होंने भी इसी तरह का सृजन करके लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। महिला दिवस पर पुस्तकों का विमोचन होना ख़ास मायने रहता है। उन्होंने कहा कि यह निराला, फिराक, महादेवी, पंत और अकबर इलाहाबादी की सरज़मीन है, यहीं पर इस तरह के सराहनीय काम हो सकते हैं। नंदल हितैषी, शिवाशंकर पांडेय, डाॅ. ताहिरा परवीन, नेरश महरानी, डाॅ. राम लखन चैरसिया, प्रदीप बहराइची, संपदा मिश्रा और शैलेंद्र जय ने इन तीन पुस्तकों पर विचार व्यक्त किया, और पुस्तकों की प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया।    
                                  
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें शिवपूजन सिंह, अनिकेत चैरसिया, अनिल मानव, कविता उपाध्याय, उर्वशी उपाध्याय, ललिता पाठक नारायणी, गीता सिंह, शांभवी, असद गाजीपुरी, अशोक कुमार स्नेही, महक जौनपुरी, मीरा सिन्हा, प्रकाश तिवारी पुंज, अजीत शर्मा आकाश आदि ने कलाम पेश किया।


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