शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

एशिया के सबसे बड़े गांव में ऐसा उपद्रव



                       - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
18 फरवरी की रात गाजीपुर जिले के गहमर गांव में जो हुआ उस उपद्रव को किसी भी सूरत में जायज तो नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन उसके परिदृश्य और लोगों के जज्बात को बहुत गहराई और शालीनता से समझने की जरूरत है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचा जा सके। इस जिले से वर्तमान प्रदेश सरकार में तीन मंत्री और केंद्र में एक राज्य मंत्री हैं। इसके बावजूद हद से ज्यादा बदहाल हुई सड़कों और रोज-रोेज लगने वाली जीटी रोड के जाम और हादसे के कारण लोगों का गुस्सा इतना अधिक बढ़ा कि थानाध्यक्ष की जीप तक फूंक डाली गयी, क्यों।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का गहमर गांव पूरे एशिया का सबसे बड़ा गांव है। इस गांव के अधिकतर घरों से कोई न कोई सदस्य भारतीय सेना में है, कारगिल युद्ध में भी पूरे देश के मुकाबले सबसे अधिक लोग इसी गांव से शहीद हुए थे। कई अन्य इतिहास इस गांव से जुड़े हैं, जिसकी किसी अन्य गांव से तुलना प्रायः असंभव है। इसी गांव के सांसद थे, विश्वनाथ सिंह गहमरी। 1956 में विश्वनाथ सिंह गहमरी ने संसद में जो वक्तव्य दिया उसे सुनकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू लाल रोने लगे थे। विश्वनाथ गहमरी ने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का उनके संसदीय क्षेत्र वाला यह हिस्सा इस कदर गरीब है कि लोग गाय-भैंस के गोबर से अनाज निकालकर खाने को विवश हैं, उनके सामने और कोई चारा नहीं है। इसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पटेल कमीशन बिठाया और कई योजनाओं लागू की गईं, और फिर पूर्वांचल विकास निधि का गठन किया गया, कई अन्य योजनाओं शुरू की गईं। आज भी इस निधि के जरिए काम होता है। इसी गांव के एक बहुत बड़े भोजपुरी कवि हुए हैं, जिनकी कविताएं पूरे पूर्वांचल में घर-घर में गाई जाती रही हैं, उन्होंने अपनी कविताओं में गंवईं जीवन का शानदार चित्रण किया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है और भोजपुरी में ऐसा कवि होने का उदाहरण दिया जाता है। उनके कई गीत भोजपुरी फिल्मों में शामिल किए गए। आज अगर भोजपुरी कविताओं का इतिहास लिखा जाए तो भोलानाथ गहमरी से ही शुरूआत करनी पड़ेगी, उनको शामिल किए बिना भोजपुरी काव्य का इतिहास को पूरा करना संभव नहीं है। इसी गंाव की एक और शख्सियत हुए हैं गोपाल गहमरी। इनके लिखे उपन्यास खूब पढ़े जाते रहे हैं। उपन्यास लिखने की शुरूआत होते ही उसकी बुकिंग शुरू हो जाती थी। पूरे देश में उन्हें खूब पढ़ा जाता था। ऐसे में इस तरह का आक्रोश और उपद्रव हो तो इसे सामान्य घटना नहीं कहा जा सकता।
इस गहमर गांव से गुजरने वाली जीटी रोड एक तरफ बिहार राज्य को पहुंचती है तो दूसरी तरफ वाराणसी से होती हुई लखनउ और इलाहाबाद को जाती है। इस सड़क की हालत यह है कि जगह-जगह तालाब जैसी सूरतेहाल है। रोज़ वाहन फंस रहे हैं, जिसकी वजह से लोगों का आना-जाना बेहद कठिन हो गया है। काम-काज हो, रिश्तेदारियां के शादी-विवाह में जाना हो या बच्चों को स्कूल-कालेज। इस राह से गुजर कर समय पर पहुंच जाना किसी युद्ध जीतने से कम नहीं है। इसे लेकर इलाके के लोग बार-बार धरना-प्रदर्शन जैसे आंदोलन करते रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। 18 फरवरी की शाम एक ट्रक पलट गया, जिसमें तीन लोग दब गए। हादसा होते ही लोग चिल्लाने लगे ट्रक को हटाने के लिए, गांव के लोगों ने थाने में सूचना दी, घंटों बाद भी थाने से कोई नहीं आया। लोगों ने किसी तरह से ट्रक को हटाया तो ट्रक की नीचे दबे बच्चे की मौत हो चुकी थी और दो लोगों की हालत बेहद गंभीर है। इस पर गांव के लोगों का गुस्सा फूटा। जिसका अंजाम यह हुआ कि थाने पर हमला कर आग लगा दी गई, थानाध्यक्ष की जीप फूंक दी गई, पुलिसकर्मी थाना छोड़कर भाग गए। घंटों उपद्रव हुआ। तब जाकर पुलिस सक्रिय हुई, पीएसी बुलाई गई। अब लोगों पर उपद्रव का मुकदमा हुआ, तमाम लोग हिरासत में लिए गए हैं। फिलहाल पूरा गांव छावनी में तब्दील हो, तमाम लोग हिरासत में लिए गए। इससे ज़्यादा लोग हिरासत में लिए जाने से बचे हुए गांव के पुरूष दूसरे गांवों में शरण लिए रहे। शहीदों, क्रांतिकारियों और साहित्यकारों के गांव के मौजूदा सूरतेहाल के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? क्या जनप्रतिनिधि और शासन-प्रशासन इसके लिए बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं है?


1 टिप्पणियाँ:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन डॉ. अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

एक टिप्पणी भेजें