‘गुफ्तगू’ की तरफ से ‘याद-ए-बेकल उत्साही’ का आयोजन
इलाहाबाद। बेकल उत्साही स्कूल आॅफ़ poetry थे, उन्होंने अपनी मेहनत और फन से गीत जैसी विधा को मंच पर स्थापित किया है। उनकी शायरी में गांव, पगडंडी, किसान, खेत, खलिहान आदि का वर्णन जगह-जगह मिलता है। उर्दू को शहर की ज़बान माना जाता है, ऐसे में बेकल की शायरी बेहद ख़ास हो जाती है, उन्होंने उर्दू की शायरी में गांव के जीवन का वर्णन खूबसूरती से किया है। ये बातें प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने 25 दिसंबर की शाम साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ की तरफ से बाल भारती स्कूल में आयोजित ‘याद-ए-बेकल उत्साही’ कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने कहाकि नातिया शायरी में भी बेकल की शायरी एक ख़ास मकाम रखती है, उन्होंने नात में शायरी करके नातिया शायरी को भी मजबूत किया है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुलेमान अज़ीज़ी ने बेकल उत्साही के कई संस्मरण सुनाए, उनके गुजारे दिन को याद किया।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे इम्तियाज़ अहमद गा़ज़ी ने ‘गुफ्तगू’ के बेकल उत्साही विशेषांक की रूपरेखा का वर्णन करते हुए कहा कि आज से 11 साल पहले कैलाश गौतम के निर्देशन में वह अंक निकला था, तब मैं और अख़्तर अज़ीज़ बेकल साहब के घर बलरामपुर गए थे। नरेश कुमार महरानी ने गुफ्तगू के बेकल उत्साही विशेषांक में छपे मुनव्वर राना के लेख को पढ़कर सुनाया, कहा कि आज से 30 साल पहले जब भारत के शायर विदेश जाने की कोशिश में लगे रहते थे, तब बेकल उत्साही आधी दुनिया घूम चुके थे। हरवारा मजिस्द के पेशइमाम इक़रामुल हक़ ने बेकल उत्साही की नात को पढ़कर सुनाई। अख़्तर अज़ीज ने कहा कि बेकल उत्साही का जाना उर्दू और हिन्दी शायरी का ऐसा नुकसान है, जिसकी भरपाई करना मुमकिन नहीं है। असरार गांधी ने कहा कि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि बेकल साहब कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद बहुत अच्छी अंग्रेजी बोलते थे। डाॅ. पीयूष दीक्षित ने कहा कि एक छोटे से गांव से आने वाले बेकल उत्साही ने शायरी दुनिया की में इतना नाम और काम करके आज के नए लोगों के लिए नजीर पेश किया है, छोटे कस्बे और गंाव के नए कवियों-शायरों को उनसे सीख लेनी चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर बुद्धिसेन शर्मा ने कहा कि बेकल साहब उस दौर के शायर हैं, जब मुशायरों की शायरी को बहुत अधिक इज्जत हासिल थी, उन्होंने अपनी शायरी से सभी को प्रभावित किया है, उनका जाना बहुत बड़ा नुकसान है, उनके लिए अब सही मायने में अब काम करने की आवश्यकता है।
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसका संचालन शैलेंद्र जय ने किया।रितंधरा मिश्रा, फरमूद इलाहाबादी, प्रभाशंकर शर्मा, डाॅ. विनय श्रीवास्तव, भोलानाथ कुशवाहा, सागर होशियारपुरी, अजीत शर्मा आकाश, सीमा वर्मा ‘अपराजिता’, शिबली सना, विपिन विक्रम सिंह, शादमा जैदी शाद, शुभम श्रीवास्तव, डाॅ. महेश मनमीत, डाॅ. राम आशीष आदि ने कलाम पेश किया। अंत में प्रभाशंकर शर्मा ने सबके प्रति आभार प्रकट किया।
लोगों को संबोधित करते प्रो. अली अहमद फ़ातमी |
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुलेमान अज़ीज़ी |
कार्यक्रम का संचालन करते इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी |
लोगों को संबोधित करते डाॅ. पीयूष दीक्षित |
लोगों को संबोधित करते असरार गांधी |
लोगों को संबोधित करते अख़्तर अज़ीज़ |
काव्य पाठ करते डाॅ. विनय श्रीवास्तव |
नात प्रस्तुत करते एकरामुल हक़ |
अजीत शर्मा ‘आकाश’-
शायर ही क्यों आदमी भी बेमिसाल था।
दौलत से वो अदब की बहुत मालामाल था।
प्रभाशंकर शर्मा-
जब बसंत की कली खिलेगी भौंरा गुनगुनाएगा
मेरी परिचय मिल जाएगा, मेरा परिचय मिल जाएगा।
रितंधरा मिश्रा-
नारी से ही जन्म सभी का
नारी एक अभिलाषा है
एक शक्ति सी, एक मधुर सी
जीवन रूपी आशा है
शिबली सना-
खुदा सभी को रोजो-जवाल देता है
शजर जो धूप को साये में ढाल देता है।
शादमा ज़ैदी शाद-
हयात हमने गुजारी है इस उसूल के साथ
हमेशा हमने चूमा है कांटों का मुंह भी फूल के साथ।
शाहीन खुश्बू-
दिल इश्क़ में तेरा उनके जल जाए तो अच्छा
शोलों की लपक उन तलक जाए तो अच्छा।
डाॅ. राम आशीष-
आओ एक मधुमास लिखें नई कोंपलें नई कली
नये घोसले, नई डाली
संतलाल सिंह-
ईंट से ईंट बजाना होगा
कदम से कदम मिलाना होगा।
सीमा aparajita पराजिता-
तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी
तूने जो भी कहा भूमिका मैं बनी
प्रेम के इस अनूठे सफ़र में प्रिये
कृष्ण है तू मेरा राधिका मैं बनी
1 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-12-2016) को "शीतलता ने डाला डेरा" (चर्चा अंक-2573) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
बेकल उत्साही जी को नमन।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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