-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
dr, jagannath pathak |
डॉ. जगन्नाथ पाठक इलाहाबाद के झूंसी मुहल्ले में रहते हैं। 02 फरवरी 1934 को सासाराम, जिला रोहताश, बिहार में आपका जन्म हुआ। वृद्ध अवस्था में भी आज बेहद सक्रिय हैं लेखन-पठन के प्रति। अब तक अपने जीवन में इन्होंने जितना लिखा-पढ़ा है, वह आज के लोगों के लिए मिसाल है, विरले लोग ही ऐसा कर पाते हैं। इनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए सन् 2005 में तत्कालीन राष्टपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दिल्ली में इन्हें सम्मानित किया था। इसके बावजूद इतनी सहजता कि जिसका उदाहरण मिलना बेहद कठिन। पिता का नाम विश्वनाथ पाठक और माता का नाम सुरता देवी है। स्नातक के बाद वाराणसी चले आए, बीएचयू से 1957 में साहित्य शास्त्राचार्य, 1964 में हिन्दी से एमए, 1965 में संस्कृत से एमए किया। बीएचयू से ही 1968 में संस्कृत विषय में ‘धनपालकृत तिलककमंजरी का आलोचनात्मक अध्ययन’ पर पीएचडी किया। हिन्दी, संस्कृत के अलावा आपको उर्दू, अंग्रेजी, बांग्ला, मैथिली और पर्सियन भाषाओं का ज्ञान है। संस्कृत के आर्या छंद पर विशेष रूप से काम किया है, जिसके चार चरणों में से प्रथम और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएं, दूसरे में 18 और चौथे में 15 मात्राएं होती हैं।
इन्होंने अब तक अलंकार शास्त्र, संस्कृत साहित्य, हिन्दी साहित्य, उर्दू साहित्य और फारसी साहित्य में अध्ययन और लेखन किया है, कर रहे हैं। स्वामी महेश्वरानंदजी सरस्वती, आचार्य, बलदेव उपाध्याय, प्रो. वासुदेव अग्रवाल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और प्रो. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य के सानिध्य में अध्ययन करने का अवसर आपको मिला, जिसका भरपूर लाभ मिला।
आपका कार्यक्षेत्र अध्यापन रहा है। विभिन्न शिक्षण संस्थानों में अध्यापन करते हुए गंगानाथ झा केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ से बतौर प्राचार्य सेवानिवृत्त हुए। संस्कृत भाषा में प्रकाशित आपकी पुस्तकों में ‘कापिशायनी ( आधुनिक भावधारा से प्रभावित मुक्तक संस्कृत पद्यों का संग्रह, 1980 में), मृद्विका (मधुशाला वाद से प्रभावित मुक्तक काव्य, 1983 में), पिपासा (संस्कृत ग़ज़ल गीतियों का संग्रह, 1987 में), विच्छित्तिवातायनी (दो हजार मुक्तक आर्याओं का संग्रह, 1992 में), आर्यासस्राराममृ (हजार संस्कृत आर्याओं का मुक्तक काव्य, 1995 में) और विकीर्णपत्रलेखम् (लधुनाटिका) हैं। हिन्दी में प्रकाशित कृतियों में थेरी गीत गाथा (बौद्ध भिक्षुणियाओं के जीवन पर आधारित लधु कथाओं का संग्रह, 1978 में), बाणभट्ट का रचना संसार, आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास और पत्रलेखा के पत्र (बाणभट्ट द्वारा कादम्बरी में उपेक्षित एक नारी का पात्र, पत्रलेखा की व्यथाकथा पर आधारित एक पत्रात्मक उपन्यास, 1981 में) हैं। कुछ संस्कृत ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद आपने किया है, जिनमें हर्षरचित (बाणभट्ट), ऋग्वेदभाष्यभूमिका (सायण) और कुट्टनीमतम् (दामोदर गुप्त) हैं। जयशंकर की कृतियों कामायनी और आंसू का संस्कृत पद्य में, मिलिन्दप्रश्न का पाली भाषा से संस्कृत में और उर्दू शायर ग़ालिब के दीवान ‘ग़ालिबकाव्यम्’ का संस्कृत पद्य मंें आपने अनुवाद किया है। दाराशिकोह की ‘मज्मउलबहरैन’ (समुंदसंगम) का संपादन और हिन्दी अनुवाद, चिराग़े दैर (देवालयदीपम्) ग़ालिब द्वारा फारसी में रचित बनारस वर्णन का संस्कृत पद्यानुवाद भी किया है। तीन संस्कृत गं्रथों का हिन्दी में अनुवाद किया है, इनके नाम रसमंजरी (भानुदत्त), ध्वन्यालोक-लोचन और गाथासप्तशी (हाल सातवाहन) हैं। आचार्य गोविन्दचंद्र पांडे की जिन तीन ग्रंथों का अनुवाद हिन्दी में किया है, उनके नाम सौंदर्य दर्शन विमर्श, एक सद् विप्रा बहुधा वदंति और भक्ति दर्शन विमर्श हैं। संपादित संस्कृत ग्रंथों में जानराजचम्पू (कृष्णदत्त विरचित, 1979 में), काव्यप्रकाश (तीन टीकाओं सहित, 1976 में), जातकमाला (आर्यशूर, 1977 में), जहांगीरविरुदावली (हरिदेव, 1979 में), शाहजहांविरुदावली (रधुदेव मिश्र, 1979 में), वाणीविलासितम् (कुछ आधुनिक संस्कृत कवियों की रचनाओं का संग्रह 1978 में), पद्यरचना (सुभाषित संग्रह, 1979 में), दुर्मिलाशतकम् (त्रिलोकीनाथ मिश्र, 1980 से), सुभाषितहारावली सुभाषित संग्रह और रतिममन्मथनाटक (जगन्नाथ विरचित, 1983 में) शामिल हैं। उत्तर हिन्दी ंसंस्थान लखनउ द्वारा प्रकाशित भोजपुरी-कोष और उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की तरफ से प्रकाशित आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास का संपादन कार्य आपने ही किया है।
from left : ravinandan singh, ajit pushkal, dr. jagannath pathak, imtiyaz ahmad ghazi |
अब तक आपको मिले पुरस्कार एवं सम्मान में राष्टपति द्वारा पुरस्कृत होने के साथ कई सम्मान और पुरस्कार हैं। इनमें कापिशायनी के लिए साहित्य अकादमी नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी का विशिष्ट पुरस्कार, मृद्विका पर केके बिड़ला फाउंडेशन का वाचस्पति और उत्तर प्रदेश संस्कृति अकादमी का विशिष्ट पुरस्कार, पिपासा पर उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी का विशिष्ट पुरस्कार, विच्छिात्तिवातायनी पर राजस्थान संस्कृत अकादमी का अखिल भारतीय काव्य पुरस्कार एवं उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी का विशिष्ट पुरस्कार, आर्यसहस्रारामभृ पर उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का कालिदास पुरस्कार, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान से ‘ग़ालिबकाव्यम्’ पर विशेष पुरस्कार और ‘ग़ालिबकाव्यम्’ पर साहित्य अकादमी नई दिल्ली से अनुवाद पुरस्कार, रांची संस्कृत सम्मेलन द्वारा ‘संस्कृतरत्नम्’ की उपाधि, हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘संस्कृत महामहोपाध्याय’ की उपाधि, पं. हेरम्भ मिश्र स्मृति द्वारा ‘शब्द शिखर’ सम्मान और आशादीप परिवार की तरफ से ‘साहित्य शिखर’सम्मान शामिल है। इनके अलावा देशभर की विभिन्न संस्थानों की पुरस्कार चयन समिति, शोध प्रबंध चयन समिति आदि से समय-समय पर जुड़े रहे हैं।
(गुफ्तगू के जून-2015 अंक में प्रकाशित)
1 टिप्पणियाँ:
मुझे इनसे सम्बन्धित विस्तार में जानकारी चाहिए।क्या इनका मिलिंदपन्हो और कामायनी का संस्कृत अनुवाद प्रकाशित हुआ है?यदि हाँ तो किस प्रकाशन से?
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