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चित्र गूगल से साभार |
आदरणीय अमिताभ जी,
आज मेरे एक मित्र की कृपा से दिल्ली में रिलायन्स मेट्रो में बैठने का मौका मिला। इस पूरी मेट्रो ट्रेन के बाहर और अंदर गुजरात के बारे में आपके विज्ञापन बने हुए हैं। आप विज्ञापन में कह रहे हैं कि कुछ वक्त तो गुजारिये गुजरात में। अमिताभ जी मैं गुजरात में कुछ वक्त गुजारना चाहता हूं। परंतु नरेन्द्र भाई मोदी मुझे गुजरात में रुकने नहीं देते। मुझे गुजरात से बाहर फेंक देते हैं। आप पूछेंगे कि मेरी गलती क्या है? तो अमिताभ जी मुझसे गलती यह हो गई थी कि मैं गुजरात के साबरकंठा जिले के कुछ आदिवासियों के गांव में गया था और मैंने कुछ आदिवासियों से उनकी भयानक मुश्किलों के बारे में सुनने की गलती कर दी थी। अमिताभ जी आप एक देशभक्त इंसान हैं, इसलिए प्लीज गुजरात के इन आदिवासियों के पास सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता के वारिसों के पास जाइए और उनसे उनकी तकलीफें और साथ में मीडिया को भी ले जाइए, मेरा दावा है नरेंद्र भाई आपको भी पुलिस के मार्फत, उसी शाम गुजरात के बाहर जबरदस्ती फिंकवा देंगे। जैसे उन्होंने मुझे फिंकवाया था।
क्या आपको पता है? गुजरात में लाखों आदिवासी किसानों को सरकार द्वारा वन अधिकार के लाभ से वंचित किया गया है? गुजरात में आदिवासियों को वन भूमि के नए पट्टे देने के बजाए उन्हें उनकी पुश्तैनी खेती की जमीनों से भी पीट-पीट कर भगा दिया गया है। मैं इस तरह के अनेकों परिवारों से मिला और मैंने मीडिया को इस घटना के बारे में बताया। अख़बारों में मेरी यात्रा के बारे में एक लेख छाप दिया जिनका शीर्षक था स्वर्णिम नो साचो दर्शन। अर्थात गुजरात सरकार के स्वर्णिम गुजरात का सच्चा दर्शन, बस अगली सुबह पुलिस की तीन जीपें मेरे पीछे लग गयीं। पहले उन्होंने कहा कि मेरी हर मीटिंग में पुलिस मेरे साथ रहेगी, ऐसा उपर से हुकुम है। मैं सहमत हो गया लेकिन रात होते-होते एसपी भी आ गया और अंत में आधी रात में मेरी साइकिल पुलिस ने जीप में लादी और मुझे बरसते पानी में महाराष्ट की सीमा के भीतर ले जाकर फेंक दिया। मैं धन्यवाद देता हूं नरेंद्र भाई मोदी को कि उन्होंने मुझे जान से मरवाया नहीं।
आइए, अमिताभ जी कुछ वक्त असली गुजरात में चलते हैं। आइए अहमदाबाद के मुसलिम शरणार्थियों के शिविर में चलते हैं। यहां आपको कुछ माएं मिलेंगी। जिनकी छातियां का दूध सूख गया है, क्योंकि आंखों के सामने उनके बच्चों को काट कर फेंक दिया गया था और जो आज भी इस भयानक सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। उन लड़कियों से मिलते हैं जिनके पिता मारे जा चुके हैं। उन नौजवानों की जलती आंख में झांक कर देखेंगे, जिनके सामने उनके पूरे परिवार को हमने जय श्री राम के नारे के उद्घोष के साथ जानवरों की तरह काट दिया और जिन्हें इस देश के न्याय तंत्र ने, इस देश की सरकार ने और हमारे समाज ने अपनी स्मृति से हटा दिया है। देखिये, नरेंद्र भाई मोदी की तारीफ ने इस बात में है कि गुजरात में सोमनाथ का मंदिर है ना नरेन्द्र भाई मोदी की वजह से गिर में शेर होते हैं। और ना ही नरेन्द्र भाई मोदी के कारण कच्छ में सफेद रेत में चांदनी खूबसूरत होती है। हां, नरेन्द्र भाई मोदी के रहते हुए गुजरात के आदिवासी गांव में महिला भूख से मर जाये तो इसके लिए वो जिम्मेदार हैं। अगर गुजरात में आदिवासियों का जिन्दा रहने भर भी जमीन खेती करने के लिए ना दी जाये। लेकिन दो लाख एकड़ जमीन आदानी, टाटा, अंबानी को दे दी जाए जिसमें सिर्फ ईटीवी को एक लाख दो हजार एकड़ जमीन दे दी गई, तो इसकी जिम्मेदारी जरूर नरेन्द्र भाई मोदी की है।
अमिताभ जी इस बार आप गुजरात जाएं तो सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलिएगा। अमित जेठवा की मौत और अनेकों कार्यकर्ताओं को माओवादी कह कर जेल में डाल देने के कारण गुजरात में सामाजिक कार्यकर्ता दहशत में हैं। आप भी इस बार कुछ समय बिताईयेगा अहमदाबाद की झोपड़-पट्टी में। शहर चलाने वाले लाखों झोपड़ी वालों को साबरमती के किनारे से उनका घर तोड़कर मरने के लिए शहर से बाहर फेंक दिया गया है। उनके बच्चों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की थी कि प्लीज हमारे घर मती तोडि़ए, पर किसी ने नहीं सुना। तो अमिताभ जी क्या आप तैयार हैं असली गुजरात में कुछ वक्त बिताने के लिए?
(इतिहासबोध बुलेटिन से साभार)
संपादकः प्रो. लाल बहादुर वर्मा