डा. मोनिका मेहरोत्रा ‘नामदेव’ खुशियां,सुख, प्रसन्नता.... क्या है इसकी परिभाषा...। शायद इन भावनाओं को शब्दों में या परिभाषा में पिरोया या बांधा नहीं जा सकता। समय बीतता जाता है वर्षों में गिनतियां बढ़ती जाती हैं लेकिन इन भावनाओं को सही मायने में व्यक्तिगत ही माना जाता है, ये व्यक्ति के अनुसार बढ़ती या घटती है, हां। परिस्थितियां और मानव या लिंग स्वभाव भी इनको प्रभावित कर सकता है। एक स्त्री के लिए खुशी उसके परिवार उसके अपने सगे-संबंधी, उसके अपने मित्रों तक ही सीमित होती है जो स्त्री अपने परिवार से प्रेम करती है उसकी खुशियां भी उसके परिवार की खुशी पर ही निर्भर करती है, लेकिन इन सबमें जिसे वह अपने से भी कभी भी अलग नहीं मानती है उसका प्रेम यानी उसका जीवन साथी। अपने प्रेम के सानिध्य में ही एक स़़़्त्री की खुशियां और सुख निहित होता है। पत्नी के प्रति उसके पति का स्नेह, अपनत्व और सानिध्यता पाकर कोई भी स्त्री जीवन के हर मुकाम को,सुख या दुःख को खुशी-खुशी पार करने की क्षमता प्राप्त कर लेती है। एक स्त्री और एक कवयित्री होने के नाते मैं डाॅ. नन्दा शुक्ला के उन विभिन्न भावनाओं की कद्र करती हूं और महसूस कर सकती हूं कि किस प्रकार उन्होंने अपने काव्य संग्रह ‘नेह निर्झर’ में मानव जीवन में आयी प्रेम वर्षा को उसमें मिलन के सुख को और विछोह के दुःख को कविताओं के माध्यम से प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। नेह निर्झर में चार खंड हैं, जिसमें तृतीय खण्ड और चतुर्थ खण्ड मुख्य रूप से प्रेम के दोनों रूपों संयोग और श्रृंगार रस और वियोग श्रृंगार रस को भली प्रकार से प्रदर्शित किया है। दरअसल, यह पूरा काव्य संग्रह जैसे एक पूरा जीवन है। यौवन अवस्था में प्रवेश कर जब नर-नारी एक अनदेखा सपना संजोने लगते हैं। सपनों का राजकुमार और सपनों की राजकुमारी एक अनदेखा अनछुआ एहसास... अक्सर सपने देखा करता, मिले नहीं फिर भी एक बार तन्हाइयों में बातें करता एक नहीं कई हजार। जब अनदेखा अक्स अक्सर तन्हाइयों में कभी हंसा जाता है तो कभी उसका अनछुआ एहसास गुदगुदा जाता है। ‘नेह निर्झर’ के प्रथम खंड की कविताओं में कुछ ऐसे ही एहसास वाली बात का चित्रण है। द्वितीय और तृतीय खण्ड की कविताओं का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि जीवन में कल्पनाओं का वास्तविकता का क्या महत्व है। एक स्त्री के मन का भाव कैसा होता है। नर द्वारा नारी का त्याग करना, न केवल उसके प्रेम, उसके समर्पण और उसके विश्वास का त्याग है बल्कि उसका अस्तित्व की इस भावना को स्वीकार नहीं कर पाता। कवयित्री स्वयं लिखती है- चाहती हूं बहुत भुलाना ये सब, नहीं विस्मृत हो पाती ये अब। स्त्री और पुरूष जब किसी संबंध में बंधते हैं तो उसमें विश्वास का होना बहुत आवश्यक है, विशेषकर विवाह बंधन में। प्रेम और संपूर्ण न्यौछावर करने की भावना दोनों पक्षों में समान होती है, लेकिन आज के भौतिकवादी युग में सबकुछ पाने की इच्छा में कई बार हम उसे नहीं प्राप्त कर पाते जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है और इसमें अपना हित करने के स्थान पर अहित करते जाते हैं। डाॅ. नन्दा शुक्ला ने परिवर्तन, एकांकी जीवन, वीरान पथ, साथी क्यों छूटा जैसी कविताओं में इन भावनाओं को समेटने का प्रयास किया है। हमसे नहीं गिला तुमको अपनो का है जो साथ हमारे उसकी कर शिकायत हमसे निज का बंधन तोड़ दिया निज हित भी न पहचाना अहं में आकर निज बंधन तोड़ा दिया। फिलहाल संपूर्ण काव्य संग्रह ‘नेह निर्झर’ भावनाओं से ओतप्रोत है। भावनाओं की अत्यधिक अधिकता के कारण कहीं-कहीं कविताओं में नीरसता भी आ गयी है लेकिन कविताएं हृदयस्पर्शी और मार्मिक हैं। डाॅ. शुक्ला को मेरी ओर से बधाई। पुस्तक का नामः नेह निर्झर कवयित्री: डा. नन्दा शुक्ला पेज: 80, मूल्यः 60 रुपये प्रकाशक: गुफ्तगू पब्लिकेशन, इलाहाबाद ISBN- 978-81-925218-0-0 डा. मोनिका मेहरोत्रा ‘नामदेव’ ए-306,जीटीबी नगर, करेली इलाहाबाद-211016 मोबाइल नंबर: 9451433526 |
डा. नन्दा शुक्ला |
शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013
भावनाओं से ओत-प्रोत काव्य संग्रह ‘नेह निर्झर’
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1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर समीक्षा की है आप दोनो को बधाई
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