इलाहाबाद। मशहूर गीतकार डा. बुद्धिनाथ मिश्र के सम्मान में साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ द्वारा 02 फरवरी को महात्मा गांधी अंतरराष्टीय हिन्दी विश्वविद्यालय के शाखा परिसर में कवि सम्मेलन का अयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर एहतराम इस्लाम ने किया, मुख्य अतिथि डा. बुद्धिनाथ मिश्र थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। |
बायें से: अजय कुमार, वीनस केसरी, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, डा. बुद्धिनाथ मिश्र, सौरभ पांडेय, नरेश कुमार ‘महरानी’ |
एहतराम इस्लाम-
मर्द होने की भूल मत करना।
जुर्म अपना कबूल मत करना।
मर्द होने की भूल मत करना।
जुर्म अपना कबूल मत करना।
डा. बुद्धिनाथ मिश्र-
मैंने जीवन भर बैराग जिया है, सच है।
लेकिन तुमसे प्यार किया है ये भी सच है।
मैंने जीवन भर बैराग जिया है, सच है।
लेकिन तुमसे प्यार किया है ये भी सच है।
यश मालवीय-
गंगा के तट पर जगा, ऐसा जीवन राग,
तन तो काशी हो गया, मन हो गया प्रयाग।
गंगा के तट पर जगा, ऐसा जीवन राग,
तन तो काशी हो गया, मन हो गया प्रयाग।
राधे श्याम भारती-
आपभी बाप हैं बेटी के ठीक है माना,
आपकी बेटी का किस बसर से है आना-जाना।
हमारी बेटियां बाज़ार से लाती हैं दवा,
आपके घर में खुद आ जाता है दवाख़ाना।
आपभी बाप हैं बेटी के ठीक है माना,
आपकी बेटी का किस बसर से है आना-जाना।
हमारी बेटियां बाज़ार से लाती हैं दवा,
आपके घर में खुद आ जाता है दवाख़ाना।
सुषमा सिंह-
खुशी पर दर्द का पहरा हुआ है।
खुशी पर दर्द का पहरा हुआ है।
ये ताज़ा ज़ख़्म कुछ गहरा हुआ है।
अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’-
खिलौने देख के अब भी खरीद लेता हूं,
खिलौने देख के अब भी खरीद लेता हूं,
मेरे ख़्यालों की बेटी बड़ी नहीं होती।
फ़रमूद इलाहाबादी-
सेहत ही नहीं रहती मेरी ठीक आजकल
महसूस कर रहा हूं बहुत वीक आजकल।
जीना हराम कर दिया खांसी-जुकाम ने,
आती है एक सांस में दो छींक आजकल।
सेहत ही नहीं रहती मेरी ठीक आजकल
महसूस कर रहा हूं बहुत वीक आजकल।
जीना हराम कर दिया खांसी-जुकाम ने,
आती है एक सांस में दो छींक आजकल।
तलब जौनपुरी-
नहीं इब्तिदा है नहीं इन्तिहा है
ये दुनिया रवानी का इक सिलसिला है।
किसी के सहारे नहीं है कोई भी,
नहीं इब्तिदा है नहीं इन्तिहा है
ये दुनिया रवानी का इक सिलसिला है।
किसी के सहारे नहीं है कोई भी,
सभी का सहारा वही इक खुदा है।
जयकृष्ण राय तुषार-
फ़क़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिये साहब
तबीयत से यहां गंगा नहाकर देखिये साहब।
यहां पर जो सुकूं है वो कहां है भव्य महलों में,
फ़क़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिये साहब
तबीयत से यहां गंगा नहाकर देखिये साहब।
यहां पर जो सुकूं है वो कहां है भव्य महलों में,
ये संगम है यहां तंबू लगाकर देखिये साहब।
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी-
रंजो-ग़म से मुझे आशना देखकर।
खुश हुआ किस कदर बेवफ़ा देखकर।
नाज़ करते थे कल अपनी अंगड़ाई पर,
रंजो-ग़म से मुझे आशना देखकर।
खुश हुआ किस कदर बेवफ़ा देखकर।
नाज़ करते थे कल अपनी अंगड़ाई पर,
आज रोने लगे आईना देखकर।
अजीत शर्मा ‘आकाश’-
एक तिनके का सहारा चाहता है,
और क्या गर्दिश का मारा चाहता है।
नोंच खायेगा उसे जिसको कहोगे,
एक तिनके का सहारा चाहता है,
और क्या गर्दिश का मारा चाहता है।
नोंच खायेगा उसे जिसको कहोगे,
पालतू कुत्ता इशारा चाहता है।
रमेश नाचीज़-
जिसका ख़्याल जिसका इरादा अटल नहीं,
मक़सद में अपने होगा कभी वो सफ़ल नहीं।
केवल समाजवाद का नारा उछालिये,
आना समाजवाद का इतना सरल नहीं।
जिसका ख़्याल जिसका इरादा अटल नहीं,
मक़सद में अपने होगा कभी वो सफ़ल नहीं।
केवल समाजवाद का नारा उछालिये,
आना समाजवाद का इतना सरल नहीं।
नरेश कुमार ‘महरानी’-
राग रंगों की दुनिया, फैशन डूबी जोत
राग रंगों की दुनिया, फैशन डूबी जोत
मौर रंग की डुबती, ज्यों ज्यों श्यामल होत।
शाद इलाहाबादी-
गंगा की औ जमुना की जब गुफ्तगू हुई।
मिलने की उनमें एक अजब आरजू हुई।
इतना बढ़ा ये प्यार कि संगम बना दिया,
उल्फ़त ये उनकी हिन्द की भी आबरू हुई।
गंगा की औ जमुना की जब गुफ्तगू हुई।
मिलने की उनमें एक अजब आरजू हुई।
इतना बढ़ा ये प्यार कि संगम बना दिया,
उल्फ़त ये उनकी हिन्द की भी आबरू हुई।
वीनस केसरी-
जब से सब खुद्दार हुए हैं बस्ती में,
नेताजी बीमार हुए हैं बस्ती में।
एक गुलाब ने खिलने की गुस्ताखी की,
जब से सब खुद्दार हुए हैं बस्ती में,
नेताजी बीमार हुए हैं बस्ती में।
एक गुलाब ने खिलने की गुस्ताखी की,
सौ सौ दोवदार हुए हैं बस्ती में।
मंजूर बाकराबादी-
जब मुसीबत पड़े मुस्कुराया करो
जब मुसीबत पड़े मुस्कुराया करो
दर्द अपना खुदा को बताया करो।
शाहिद अली ‘शाहिद’-
मुंह छुपा रहो रहा था एक तारा रातभर
मुंह छुपा रहो रहा था एक तारा रातभर
पारा पारा हो रही थी माहपारा रातभर।
विपिन श्रीवास्तव-
ए शुभांगी तेरा सौंदर्य मुझमें हृदयंगम हो गया
तेरी तिरछी चितवन से परिदृश्य मनोरम हो गया।
ए शुभांगी तेरा सौंदर्य मुझमें हृदयंगम हो गया
तेरी तिरछी चितवन से परिदृश्य मनोरम हो गया।
सौरभ पांडेय-
नदी में उतरना हुनर मांगता है
चले हैं तभी वो किनारे बदलते
न मद है, न मत्सर सुनूं हर तरफ पर
नदी में उतरना हुनर मांगता है
चले हैं तभी वो किनारे बदलते
न मद है, न मत्सर सुनूं हर तरफ पर
जहां देखता हूं मठाधीश पलते।
अवधेश यादव ‘अनुरागी’-
हमारे दर्द से कोई अंजान नहीं था।
मगर दिलासा देने वाला भी कोई इंसान नहीं था।
मुझे यहां तक लाने वालों ए रास्तों
क्या तुम्हें मालूम नहीं था
हमारे दर्द से कोई अंजान नहीं था।
मगर दिलासा देने वाला भी कोई इंसान नहीं था।
मुझे यहां तक लाने वालों ए रास्तों
क्या तुम्हें मालूम नहीं था
कि इस सड़क पर मेरा मकान नहीं था।
अजय कुमार-
कोई गंाव से आया गंगा नहाने
कोई मनकामेश्वर चला सिर झुकाने
कोई अस्था में बहा जा रहा है
कोई गंाव से आया गंगा नहाने
कोई मनकामेश्वर चला सिर झुकाने
कोई अस्था में बहा जा रहा है
कहां कुंभ नगरी कहां जा रहा है।
ग्रुप फोटो, बायें से खड़े हुए: शुभ्रांशु पांडेय, अजय कुमार, अवधेश यादव, रोहित त्रिपाठी ‘रागेश्वर’,रमेश नाचीज़, विपिन श्रीवास्तव, राधेश्याम भारती, वीनस केसरी, सुशील द्विवेेदी, विमल वर्मा बाये से बैठे हुए: शाद इलाहाबादी, सौरभ पांडेय, अमिताभ त्रिपाठी, सुषमा सिंह, बुद्धिनाथ मिश्र, एहतराम इस्लाम, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, नरेश कुमार ‘महरानी’, यश मालवीय और अन्य |
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