इलाहाबाद। 7 फरवरी को सीएमपी डिग्री कालेज का प्रांगण शेरो-शायरी के माहौल से खुशरंग हो गया। ‘गुफ्तगू’ और सीएमपी कालेज के तत्वावधान में मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ शायर एहतराम इस्लाम ने की, मुख्य अतिथि आरबीएल श्रीवास्तव थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।
युवा कवि अजय कुमार ने महाकुंभ का समर्पित कविता पेश किया-
कोई गंाव से आया गंगा नहाने
कोई मनकामेश्वर चला सिर झुकाने
कोई अस्था में बहा जा रहा है
कोई गंाव से आया गंगा नहाने
कोई मनकामेश्वर चला सिर झुकाने
कोई अस्था में बहा जा रहा है
कहां कुंभ नगरी कहां जा रहा है।
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी के अशआर काफी सराहे गये-
रंजो-ग़म से मुझे आशना देखकर।
खुश हुआ किस कदर बेवफ़ा देखकर।
नाज़ करते थे कल अपनी अंगड़ाई पर,
रंजो-ग़म से मुझे आशना देखकर।
खुश हुआ किस कदर बेवफ़ा देखकर।
नाज़ करते थे कल अपनी अंगड़ाई पर,
आज रोने लगे आईना देखकर
।
वीनस केसरी के अशआर यूं थे-
जब से सब खुद्दार हुए हैं बस्ती में,
नेताजी बीमार हुए हैं बस्ती में।
एक गुलाब ने खिलने की गुस्ताखी की,
जब से सब खुद्दार हुए हैं बस्ती में,
नेताजी बीमार हुए हैं बस्ती में।
एक गुलाब ने खिलने की गुस्ताखी की,
सौ सौ दोवदार हुए हैं बस्ती में।
नरेश कुमार ‘महरानी’ ने दोहा पेश किया-
राग रंगों की दुनिया, फैशन डूबी जोत
मौर रंग की डुबती, ज्यों ज्यों श्यामल होत।
राग रंगों की दुनिया, फैशन डूबी जोत
मौर रंग की डुबती, ज्यों ज्यों श्यामल होत।
शायरा सबा खान के कलाम काफी सराहे गये-
जि़न्दगी जब भी किसी मोड़ पे दुश्वार हुई,
जि़न्दगी जब भी किसी मोड़ पे दुश्वार हुई,
ये मेरा अज्म है मैं और भी खुद्दार हुई।
एहतराम इस्लाम के अश्आर काबिले तारीफ थे-
मर्द होने की भूल मत करना।
मर्द होने की भूल मत करना।
जुर्म अपना कबूल मत करना।
नायाब बलियावी ने कहा-
दिल लगा लीजै कुछ देर को हंस लीजै मगर,
दिल लगा लीजै कुछ देर को हंस लीजै मगर,
मसतकिल इसके आपको रोना होगा।
मखदूम फूलपुरी ने तरंनुम कलाम पेश कर महफिल में जोश पैदा कर दिया-
मुसाफिर अब कोई घर चाहता है, ये दरिया है समुंदर चाहता है।
हटा दो पत्थरों केा शीशा लाओ, कहीं पत्थर को पत्थर चाहता है।
मुसाफिर अब कोई घर चाहता है, ये दरिया है समुंदर चाहता है।
हटा दो पत्थरों केा शीशा लाओ, कहीं पत्थर को पत्थर चाहता है।
रमेश नाचीज़ के अशआर यूं थे-
जिसका ख़्याल जिसका इरादा अटल नहीं,
मक़सद में अपने होगा कभी वो सफ़ल नहीं।
केवल समाजवाद का नारा उछालिये,
आना समाजवाद का इतना सरल नहीं।
जिसका ख़्याल जिसका इरादा अटल नहीं,
मक़सद में अपने होगा कभी वो सफ़ल नहीं।
केवल समाजवाद का नारा उछालिये,
आना समाजवाद का इतना सरल नहीं।
सौरभ पांडेय ने कहा-
नदी में उतरना हुनर मांगता है
चले हैं तभी वो किनारे बदलते
न मद है, न मत्सर सुनूं हर तरफ पर
नदी में उतरना हुनर मांगता है
चले हैं तभी वो किनारे बदलते
न मद है, न मत्सर सुनूं हर तरफ पर
जहां देखता हूं मठाधीश पलते।
सुशील द्विवेदी की कविता यूं थी-
प्रेम है खुली किताब/समझ सके समझ ले तू
यहां शब्द-शब्द अनंत है/न आदि है, न अंत है
हर एक-एक शब्द का/अनंत-अनंत अर्थ है
पढ़ सके तो पढ़ ले तू/प्रेम है खुली किताब।
प्रेम है खुली किताब/समझ सके समझ ले तू
यहां शब्द-शब्द अनंत है/न आदि है, न अंत है
हर एक-एक शब्द का/अनंत-अनंत अर्थ है
पढ़ सके तो पढ़ ले तू/प्रेम है खुली किताब।
रोहित त्रिपाठी ‘रोगश्वर’ ने कहा-
तेरी चोटो का हर इक जख़्म मेरे काम आया
मेरी खातिर हजारो तोहफे और इनाम लाया।
कब्र पे बैठकर ग़ज़लें लिखा करता हूं मैं अब
कब्र का रास्ता मुझको तुम्ही ने था दिखाया।
तेरी चोटो का हर इक जख़्म मेरे काम आया
मेरी खातिर हजारो तोहफे और इनाम लाया।
कब्र पे बैठकर ग़ज़लें लिखा करता हूं मैं अब
कब्र का रास्ता मुझको तुम्ही ने था दिखाया।
कु. गीतिका श्रीवास्तव ने तरंनुम में कलाम पेश किया-
दुनिया के बेडियों को तोड़ते जाना
खुद से जो वादा है उसको निभाना
पग-पग काटे हैं ये ना बिसराना
दुनिया के बेडियों को तोड़ते जाना
खुद से जो वादा है उसको निभाना
पग-पग काटे हैं ये ना बिसराना
इन कांटों के ही आगे खुशी का खजाना।
प्रो.एस.एन. श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापन किया |
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