रविवार, 23 दिसंबर 2012

नंदा शुक्ला का काव्य सृजन बहुत अच्छा संकेत

काव्य संग्रह ‘निशीथ’ के विमोचन अवसर पर बोले प्रो. लाल बहादुर वर्मा


इलाहाबाद। पुलिस विभाग कार्य करते हुए डा. नन्दा शुक्ला ने कविताओं का सृजन किया है और अपनी कविताओं का प्रकाशन करके उसका विमोचन भी करा दिया है। पुलिस विभाग में कार्यरत एक महिला का सृजन बहुत अच्छा संकेत है, हमें ऐसे प्रयासों का तहेदिल से स्वागत करना चाहिए। यह बात प्रसिद्ध साहित्यकार लाल बहादुर वर्मा ने डा. नन्दा शुक्ला के काव्य संग्रह ‘निशीथ’ के विमोचन अवसर पर कही। हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सभागार में गुरुवार की शाम ‘गुफ्तगू’ द्वारा विमोचन समारोह और कवि सम्मेलन का आयोजन किया, इस, जिसकी अध्यक्षता श्री वर्मा ने की। कार्यक्रम का संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। मुख्य अतिथि के रूप मौजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह ने कहा कि नन्दा शुक्ला ने अपने सृजन में बेबाकी से अपनी बात रखी है, समाज के कई पहलुओं का चित्रण अपनी कविताओं के माध्यम से किया है, गुफ्तगू पब्लिकेशन ने ऐसी नई प्रतिभाओं का सामने लाकर अच्छा उदाहरण पेश किया। मशहूर कवियों के रचनाओं का प्रकाशन तो सभी कर देते हैं, लेकिन नए लोगों को सामने लाना वाकई बेहतरीन काम है। वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि डा. नन्दा शुक्ला ने अपनी कविताओं में कई बिम्बों का बेहतरीन ढंग से चित्रण किया है और समाज के सामने उसका आईना पेश कर दिया है, इसके लिए नन्दा शुक्ला के साथ ही गुफ्तगू की टीम भी बधाई की पात्र है। इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि हमलोग ख़ासतौर पर नई प्रतिभाओं को सामने लाने का काम शुरू से ही करते आये हैं, आगे भी यह काम जारी रहेगा। लेकिन इस काम में आपसभी का सहयोग अपेक्षित है।
 हिन्दुस्तानी एकेडेमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने कहाकि ‘निशीथ’ में शामिल कविताएं वाकई साहित्य जगत के लिए शुभ संकेत हैं, पुलिस विभाग में कार्यरत होने के बावजूद नन्दा शुक्ला के अंदर समाज और मानवीयता के प्रति भरपूर संवेदना है, जो उनकी रचनाओं में यका-कदा दिखाई पड़ रही हैं। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में नंदा जी की कविताओं में और अधिक निखार आएगा। प्रसिद्ध गीतकार यश मालवीय ने निशीथ में सम्मिलित कविताओं की सराहना करते हुए कहा कि डा. नंदा का प्रयास बेहद सराहनीय है, ऐसे प्रयासों का हर स्तर पर स्वागत किया जाना चाहिए। डा. नन्दा शुक्ला ने अपने वक्तव्य में कहा कि निशीथ में शामिल कविताएं मेरे छात्र जीवन से लेकर नौकरी में आने तक की हैं, मैंने बिना किसी दिशा निर्देश के अच्छा सृजन करने का प्रयास किया है, किताब आपके हाथ में है, अब फैसला आपको ही करना है। इस अवसर पर शिवपूजन सिंह, वीनस केसरी, नरेश कुमार ‘महरानी’, जय कृष्ण राय तुषार, स्नेहा पांडेय, संजय सागर,रीतंधरा मिश्रा, राजेंद्र कुमार सिंह, अनुराग अनुभव, फरमूद इलाहाबादी, आसिफ गा़ज़ीपुरी, राजकुमार चोपड़ा, विपिन श्रीवास्तव, सुशील द्विवेदी आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी के सभागार में मौजूद साहित्यप्रेमी
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी, डा. नन्दा शुक्ला के भाई प्रणव शुक्ला और डा. नन्दा शुक्ला
कार्यक्रम का संचालन करते गुफ्तगू के संस्थापक इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

न्यायूमूर्ति रवीन्द्र सिंह का स्वागत करते जय कृष्ण राय तुषार
प्रो. लाल बहादुर वर्मा का स्वागत करते अजय कुमार
मुनेश्वर मिश्र का स्वागत करते नरेश कुमार ‘महरानी’
विचार व्यक्त करते न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह
विचार व्यक्त करते प्रो. लाल बहादुर वर्मा
विचार व्यक्त करते मुनेश्वर मिश्र
विचार व्यक्त करते रविनंदन सिंह
विचार व्यक्त करते यश मालवीय
विचार व्यक्त करतीं रीतंधरा मिश्रा
 दूसरे चक्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया।  
शुरूआत अजय कुमार की कवितओं से हुआ-
मर्यादा के भाव में न जाने बनते रघुनंदन,
कट्टा पिस्टल हाथों में है माथे पर चंदन।

विमल वर्मा ने की कविता सराहनीय रही-
निज स्वरूप को भूल के मानव क्यों आपस में लड़ते,
प्राणिमात्र में बसे राम, तज भूमि की खातिर मरते।

युवा कवि शैलेंद्र जय ने कहा-   
मुमकिन है कि वो नज़रों से उतार दे।
पर करता हूं वहीं जो दिल को करार दे।


रमेश नाचीज़ की ग़ज़ल सराही गई-
दर्द हम अपने दिल का सुनाने लगे, लोग महफि़ल से उठ-उठ के जाने लगे।
उनके तेवर मुझे क्यों सताने लगे, ये समझने में मुझको ज़माने लगे।
 अजीत शर्मा ‘आकाश‘ ने कहा-
ज़ंग जारी ही रहे साथी अंधेरे के खिलाफ़,
रात लंबी हो भले, दिन आए दिन आएगा।




 नायाब बलियावी की ग़ज़ल ने महफि़ल में जोश पैदा कर दिया-
दिल लगा लीजै कुछ देर का हंस लीजै मगर,
मुस्तकिल इसके लिए आपको रोना होगा।




 तलब जौनपुरी ने कहा-  
मेरी वो सरबुलंदी है कोई छू भी नहीं सकता,
मुक़ाबिल अपनी हस्ती के कोई हस्ती नहीं लगती।




अशोक कुमार स्नेही का गीत सराहनीय रहा-
कहना महल दुमहले सूने सूनी जीवन तरी हो गई।
प्रिया तुम्हारे बिना मिलन की सूनी बारादरी हो गई।

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