गुरुवार, 22 मार्च 2012
मंच पर इलाहाबाद के अगुवा कवि
------- इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी -------
साहित्य चाहे हिन्दी का हो या उर्दू का। दोनों ही भाषाओं के प्रमुख साहित्याकर इलाहाबाद से हुए हैं। मंचों की बात की जाए तो इस मामले में भी यह सरज़मीन काफ़ी जरखेज़ रही है। एक समय था जब निराला,महादेवी, फि़राक़, बच्चन,पंत और राज़ इलाहाबादी जैसे कवि मंचों पर विराजमान होते थे। तब देश का कोई बड़ा कवि सम्मेलन इलाहाबाद के कवियों को शामिल किए बिना असंभव था। ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा ज्ञान, निकलकर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अंजान’ जैसी कालजयी कविता का सृजन सुमित्रानंदन पंत ने इलाहाबाद की सरज़मीन पर बैठककर की थी। आज भी इस शहर की पहचान साहित्य और संस्कृति के रूप में ही होती है। वर्तमान में भले ही राष्टृीय स्तर के कवियों का इलाहाबाद में कमी दिखती हो, लेकिन यहां होने वाले कवि सम्मेलनों और मुशायरों की सरगर्मियों में ज़रा भी कमी नहीं आयी है। वैसे तो अब वर्षभर इस शहर में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और मुशायरे होते रहते हैं, लेकिन होली के मौके पर होने हास्य-व्यंग्य कवि सम्मेलनों ने देशभर में अपनी पहचान बनाई है। दूसरे शहरों और प्रांतों के कवि-शायर आज भी होली के मौके पर हेाने आयोजनों में खुद के बुलावे का इंतज़ार करते रहते हैं। महामूर्ख, महालंठ, हुड़दंग और ठिठोली आदि नामों से होने वाले आयोजनों ने इलाहाबादी परंपरा को जारी रखने का काम अब भी जारी रखा है। ये और बात है कि इनमें से कुछ आयोजनों की बागडोर, ख़ासतौर पर कवि को आमंत्रित करने की जिम्मेदारी ग़लत हाथों में सौंप दी गई है। जब तक कैलाश गौतम और अतीक इलाहाबादी जैसे लोगों के हाथों में यह कमान थी, जब तक अपेक्षाकृत आयोजन अधिक स्तरीय हुआ करते थे। बदलते दौर के साथ कुछ बदलाव आएं हैं, लेकिन यह उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि गलत चीज़ें बहुत अधिक दिनों तक जारी नहीं रह सकतीं। इलाहाबाद के कवि सम्मेलनों और यहां की सरज़मीन से रची गई शायरी की बात की जाय तो अकबर इलाहाबादी से होता हुआ कारवां निराला, महादेवी, फि़राक़, बच्चन,पंत,राज इलाहाबादी, अतीक इलाहाबादी और कैलाश गौतम तक पहुंचा है। इसके आगे की कड़ी को जोड़ने का प्रयास जारी है, मगर अभी इलाहाबाद से ऐसा कोई नाम नहीं दिख रहा जो इन महान रचनाकार की अगली कड़ी से जुड़ सके। हां, इतना अवश्य है कि प्रयास जारी है तो एक न एक दिन कामयाबी ज़रूर मिलेगी। बहरहाल, अकबर इलाहाबादी की बात की जाए तो उर्दू हास्य-व्यंग्य के कवियों में इतना बड़ा नाम अब तक नहीं हुआ। अकबर ने न्यायालय जैसे गंभीर और जिम्मेदार विभाग में नौकरी की, मगर उनकी कलम अपने विभाग से लेकर अपने कौम तक पर तंज करने में जरा भी नहीं हिचकी। वे फरमाते हैं
बेपर्दा कल जो आयीं नज़र चंद बीवियां।
अकबर जमीं पे गैरते-कौमी से गड़ गया।
पूछा जो उनसे आपका पर्दा वो क्या हुआ,
कहने लगीं कि अक्ल पे मर्दो के पड़ गया।
बात जब अपनी शर्तों और गरिमा के साथ काव्य धर्म निभाने की आती है तो सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का नाम सबसे पहले लिया जाता है। निराला ने जीवनभर काव्य सृजन ही नहीं किया बल्कि काव्यधर्म को जिया भी है। उन्होंने व्यक्ति लाभ के लिए कभी किसी हुक्मरान के आगे अपने को नीचे नहीं होने दिया। मंच पर उनके साथ महादेवी वर्मा और फि़राक़ गोरखपुरी जैसे लोग हुआ करते थे, लोग वास्तविक कविताओं का भरपूर आनंद लिया करते थे। ये और बात है कि अब इस तरह के मंचों की सिर्फ़ कल्पना ही की जा सकती है। निराला की काव्य सृजन का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक मजदूरनी को जेठ की भरी दुपहरी धूप में पत्थर तोड़ते हुए देखा और कालजयी रचना का सृजन कर डाला-
वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई
स्वीकार श्याम तन,भर बंधा यौवन, नख नयन,
प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार सामने तरु-मालिका
अट्टालिका, प्रकार चढ़ रही थी धूप गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप उठी झुलसाती हुई
लू सई ज्यों जलती हुई भू गई
चिनगीं छा गई प्रायः हुई दुपहर
वह तोड़ती पत्थर।
हिन्दी साहित्य में महिला रचनाकारों का जब भी जिक्र होता है तो सबसे पहले महादेवी वर्मा का नाम लिया जाता है। और यह इलाहाबाद का सौभाग्य है कि महादेवी वर्मा की कर्मभूमि भी यही शहर रहा है। महादेवी को मंचों का ‘स्वर कोकिला’ कहा जाता रहा है। उनकी मौजूदगी कवि सम्मेलनों की सफलता की जमानत हुआ करती थी। उनकी एक मशहूर कविता-
कहां रहेगी चिडि़या?
आंधी आई जोर-शोर से
डाली टूटी है झकोर से
उड़ा घोंसला बेचारी का
किससे अपनी बात कहेगी
अब यह चिडि़या कहां रहेगी?
फि़राक़ गोरखपुरी ने अदब के चाहने वालों के लिए ऐसी शायरी पेश की है, जिसका जिक्र किए बिना कम से कम उर्दू शायरी का इतिहास तो पूरा नहीं हो सकता। उनकी नफ़ासत और शायरी का अंदाज़ उन्हें तमाम शायरों अलग खड़ा कर देती है। कवि सम्मेलनों और मुशायरों के मंच पर उनकी मौजूदगी भी विशेष महत्व रखती थी। वे फरमाते हैं-
बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं।
तुझे ऐ जि़न्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
तबीयत अपनी घबराती है जब सूनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं।
सुमित्रानंदन ‘पंत’ छायावादी युग के प्रवर्तक कवियों में से हैं। इलाहाबाद की सरज़मीन से उन्होंने अपने सृजन को देशभर के कोने-कोने में पहुंचाया है। लिखते हैं-
चंचल पग दीप-शिखा-से धर ग्रह मग,
वन में आया वसंत।
सुलगा फाल्गुन का सूनापन,
सौंदर्य-शिखाओं में अनंत सौरभ की
शीतल ज्वाला से फैला उर-उर में
मधुर दाह आया वसंत,
भर पृथ्वी पर स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह।
‘मधुशाला’ नामक कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हुए कवि हरिवंश राय बच्चन की कर्मभूमि भी इलाहाबाद ही रहा है। उन्होंने शिक्षा से लेकर काव्य सृजन का हुनर यहीं सीखा है।
बड़े-बड़े परिवार मिटें यों,
एक न हो रोने वाला
हो जाएं सुनसान महल वे,
जहां थिरकती सुरबाला।
राज्य उलट जाएं,
भूपों का भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीने वाले,
जगा करेगी मधुशाला
मुशायरों की दुनिया में राज़ इलाहाबाद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता रहा है। आज भी उनकी ग़ज़लें और नात पाकिस्तान तक में बेहद मक़बूल है और गायी जाती है। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और हेमामालिनी तक उनकी शायरी के फैन रहे हैं-
लज्जते ग़म बढ़ा दीजिए, आप फिर मुस्कुरा दीजिए।
मेरा दामन बहुत साफ है,कोई तोहमत लगा दीजिए।
एक समुंदर ने आवाज़ दी, मुझको पानी पिला दीजिए।
हैरत इलाहाबादी का यह शेर पूरी दुनिया में मुहावरों की तरह इस्तेमाल होता है-
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं,
सामान सौ बरस का पहल की ख़बर नहीं।
मंचों पर चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी,उमाकंात मालवीय, कैलाश गौतम और अतीक़ इलाहाबादी का नाम भी बड़ी इज्जत से लिया जाता रहा है। जब तक ये लोग जीवित रहे इलाहाबाद की विरासत को मंच के माध्यम से देश-विदेश में पहुंचाते रहे। कैलाश गौतम की कविताओं की मक़बूलियत तो मंत्री से लेकर संत्री तक के बीच आज भी। आम आदमी में अपनी कविताओं की वजह से मक़बूल होने वाले कैलाश गौतम इलाहाबाद के अेकेल कवि हैं। मंचों पर सक्रिय रहने वाले इलाहाबाद के प्रमुख कवियों में असलम इलाहाबादी, यश मालवीय, फरमूद इलाहाबादी, नायाब बलियावी,अख्तर अज़ीज़, ख़्वाजा जावेद अख़्तर, इक़बाल दानिश, जमीर अहसन, बुद्धिसेन शर्मा,सुरेंद्र नाथ नूतन, एहतराम इस्लाम, सुधांशु उपाध्याय,शकील गा़ज़ीपुरी,मखदूम फूलपुरी, शरीफ़ इलाहाबादी, नजीब इलाहाबादी, अरमान ग़ाजीपुरी, गुलरेज इलाहाबादी,जयकृष्ण राय तुषार,श्लेष गौतम,वाकिफ़ अंसारी, नईम साहिल,सुनील दानिश,अशोक कुमार स्नेही, गोपीकृष्ण श्रीवास्तव, जमादार धीरज,अखिलेश द्विवेदी,रविनंदन सिंह,नंदल हितैषी,मुनेंद्र नाथ श्रीवास्तव,हरीशचंद्र पांडे,जोवद शोहरत,तश्ना कानपुरी, अरविंद वर्मा आदि शामिल हैं।
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