
मैं तेरे डर की गुलामी का ताज पहने हूँ,
ज़माना मुझको शाहंशाह कहा फिरता है.
किताब की शुरुआत हम्दपाक से की गई है-
एनायत खुदा की है कुदरत खुदा की है
हर इक सिम्त ज़ाहिर है हिकमत खुदा की है
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मुफलिस को धनवान बनाया है तूने
मंगतो को सुलतान बनाया है तूने.
नाते नबी कहने का शरफ देकर मुझको,
मेरी बड़ी पहचान बनाया है तूने.
मस्त रहे जो इश्के-नबी में हर-हर पल,
मुझको वह मस्तान बनाया है तूने.
फिर नातेपाक में वारिस साहब फरमाते हैं-
ईमान हकीकी का,वफ़ा,प्यार का चेहरा.
कुरआन का कुरआन है सरकार का चेहरा.
फिर उनको ज़माने मैं कहीं लुत्फ़ न आया,
जो देख लिए आका के दरबार का चेहरा.
मिल जाए उसे दौलते दारैन जहाँ में,
जो ख्वाब में ही देख ले सरकार का चेहरा.
इस तरह यह किताब कई मायने में काफी महत्वपूर्ण है. १४४ पेज वाली इस किताब को गुफ्तगू पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है. किताब के पेपर बैक संस्करण की कीमत १२० रुपये और सजिल्द संस्करण की कीमत १५० रूपये है.
1 टिप्पणियाँ:
मित्रों,
'समीक्षा ब्लॉग' पर नई पोस्ट प्रकाशित की गई है,
इस अंक में हिन्दी साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका 'गुफ़्तगू' की समीक्षा प्रस्तुत कि गई है
आप आमंत्रित हैं, आवलोकन करें व रचनाओं पर अपने विचार प्रस्तुत करें
http://sameekshablog.blogspot.com/2011/06/blog-post_15.html
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